(अखंड ज्योति जनवरी १२८८ से उध्द्रीत पूज्यवर की; लेखनी से लिखे कुछ अंश )
"अखंड ज्योति की अनेक प्रेरणाओं और स्थापनाओं में से एक है शांतिकुंज, जिससे तीर्थपरंपरा का-ऋषियुग की रीति-नीति का सार-संक्षेप समझा जा सकता है। यहाँ वे सभी प्रवितियां चलती है, जिनके आधार पर इन दिनों भी इन्हीं कारणों से ऋषियुग का साक्षात्कार किया जा सकता है।" "गंगा की गोद,हिमालय की छाया,सप्तधाराओं वाले क्षेत्र में इस छाया,सप्तऋषियों की तपोभूमि, सप्तधाराओं वाले क्षेत्रों में इस गायत्री तीर्थ का निर्माण किया गया। संस्कारित भूमि में गायत्री के तत्वद्रष्टा विश्वामित्र की पुरातन संस्कार चेतना अभी भी देखी जा सकती है।
"दिव्य विभूतियों से सुसंपन्न ऋषिकल्प हिमालय के सिद्धपुरुषों का संयुक्त वरदान-सम्मिलित अनुदान गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में कार्यान्वित करने का प्रयास किया गया है,जो अब तक आशा जनक परिणाम में सफल एवं अग्रगामी होता रहा है। "
"गंगा की गोद,हिमालय की छाया,सप्तऋषि की तप वाली सप्तधाराएं यही है। यह पुरातन है। आधुनिक यह है की यहाँ लंबे समय से जलती चली आ रही है। 'अखंड ज्योति 'की स्थापना है। नित्य लाखों की संख्या में गायत्री जप इसके समक्ष होता है। तीर्थसेवनों,अन्नक्षेत्र,अतिथि-सत्कार,गुरुकुल,दातव्य चिकित्सालय जैसे पुण्यकार्यों से इस भूमि की पवित्रता निरंतर बढ़ती ही जाती है।"
"आश्रम के संचालकों की सूक्ष्मसत्ता को प्रखर प्रज्ञा और सजल श्रद्धा के रूप में जाना जाता है। इनका प्राण−प्रवाह आश्रम के कर्ण -कर्ण में छाया-अनुभव किया जा सकता है।" "प्रशिक्षण के जितने भी तंत्र है,उनमें वातावरण की प्रभावशीलता को सर्वोपरि माना गया है? शांतिकुंज का वातावरण ऐसा ही है,जिसमें व्यक्तित्व के परिष्कार की साधना ठीक प्रकार बन पड़ती है। यह कार्य घर के लोकव्यवहार सम्बन्धी उतार-चढ़ाव के बीच रहकर संभव नहीं हो सकता।"
"शांतिकुंज के सम्बन्ध में आरम्भ से ही यह कल्पना और योजना थी की इसे नालंदा एवं तक्षशिला स्तर का विश्वविद्यालय बनाया जाये। भले ही उनके जैसे इतने भव्य भवन न बने। भले ही इसमें इतने अधिक छात्रों,अध्यापकों के लिए स्थान तथा निर्वाह की व्यवस्था न हो,पर प्रशिक्षण का आधार एवं स्तर वही हो? इनमें कल्पनाओं ने अपना साकार स्वरूप बनाया है और शुभारंभ के दिनों उपजी योजना ने अपना व्यवहारिक ढांचा खड़ा किया है।"
"अखंड ज्योति के पौत्र शांतिकुंज ने वनौषधि अनुसन्धान का जो कार्य हाथ में लिया है,उसकी अपनी विशेषता है। इसलिए उसे अपने ढंग का अनोखा भी कह सकते है। कारण की यह इस उत्पाद के साथ प्रयोग-परीक्षण भी चलता रहता है। उसे एक शब्द में आरोग्य का पुनर्जीवन भी कह सकते है।"
"सतयुग की साम्यवाद की चर्चा ने लोगों ने सुनी है,पर उनका प्रत्यक्ष स्वरूप देखा नहीं। किन्तु शांतिकुंज में आकर उसे व्यवहार में उतरते देखा जा सकता है। यही है वह प्राण-प्रेरणा जो संचालकों के व्यक्तित्व से लेकर आश्रम की रीति-नीति तक तथा अखंड ज्योति के लेखों में प्रादुर्भूत होती देखी जा सकती है।"
"सतयुग की,साम्यवाद की चर्चा लोगों ने सुनी है,पर उनका प्रत्यक्ष स्वरूप देखा नहीं। किन्तु शांतिकुंज में आकर उसे व्यवहार में उतरते देखा जा सकता है। यही है वह प्राण- प्रेरणा जो रीति -नीति तक तथा अखंड ज्योति के लेखों में प्रादुर्भूत होती देखी जा सकती है।"
"शांतिकुंज में कार्य करने वाले कार्यकर्ता प्रायः दो सौ पचास से अधिक बड़ी संख्या में इतने ऊँचे स्तर के नर रतन कदाचित ही कही एकत्रित दिख पड़े। अधिकाँश गृहस्थ है,पर ब्रह्मचारी की तरह जीवनयापन करते है, पुरुषों की तरह स्त्रियां भी निरंतर मशीन के कार्यों में कंधे -से कंधे मिलाकर जुटी रहती है। न इन्हें कभी अवकाश लेने की आवश्यकता पड़ती है और न छोड़े गए सम्बन्धी की याद सताती है। उनके पास जाने या उन्हें बुलाने के लिए सामान्यजनों की तरह मन नहीं भटकता। इनकी उत्कृष्ट आदर्शवादिता ही इन्हें खींचकर यहाँ लायी है।किसी प्रलोभन के कारण यह यहाँ नहीं आये। स्वयं को आदर्श लोकसेवी के रूप में प्रस्तुत करने और अपनी सेवा-साधना से जनचेतना को उभारने, सत्प्रवृत्तियों के उद्यान लगाने, दुष्प्रवृत्तियों के विपक्ष को उखाड़ने की श्रद्धा ही इन्हें अहर्निश काम में लगाये रखती है।'
"यों हम लोगों के शरीर शांतिकुंज में रहते है। पीछे भी वे इस परिसर के कर्ण -कर्ण में समाये हुए रहेंगे। इसकी अनुभूति निवासियों-आगंतुकों को सामान रूप से होती रहेगी।"
"शरीर परिवर्तन की वेला आते ही यों हमें साकार से निराकार होना पड़ेगा,पर क्षणभर में उस स्थिति में अपने को उभार लेंगे और दृश्यमान प्रतीक के रूप में इसी अखंड दीपक की ज्वलंत ज्योति में समा जायेंगे,जिसके आधार पर अखंड ज्योति नाम से संबोधन दिया गया है। शरीरों के निष्प्राण होने के उपरान्त भी जो चर्मचक्षुओं से हमें देखना चाहेंगे,वे इसी अखंड दीपक की जलती लौ में हमें देख सकेंगे।इस तेल- बाती की प्रथक सत्ताओं की एक लौ में समावेश होने की तरह अद्वैत रूप में गंगा-यमुना के संगम,प्रज्ञा और श्रद्धा के एकीकरण के रूप में देखा जा सकेगा।"
"हमारे वास्तविक स्वरूप समझने वाले परिजनों को जानना चाहिए की मिशन तीरे की तरह सनसनाता हुआ अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ेगा। हम लोगों की स्थिति प्रत्यंचा की तरह अभी तनी है और भविष्य में भी वैसी ही बनी रहेगी 'ज्योति कभी बुझेगी नहीं।'
*समाप्त*