आज फांसी लगने वाली है। "भगतसिंह ने विचार किया इससे अच्छा दिन कौन-सा आएगा।आज तो किसी महापुरुष के दर्शन करने चाहिए। कहा जेल में?नहीं,वहां कहा संभव?"वसीयत के बहाने मुझे लेनिन की जीवनी दे जाना।"कारागार के भीतर से सरदार भगतसिंह ने अपने वकील के पास खबर भेज दी। वकील ने पुस्तक भगतसिंह को पहुंचा दी। उधर फांसी की तैयारी होने लगी,इधर आजाद लेनिन का जीवन -वृत्तांत पढ़ने में निमग्न हो गए।
जेल अधिकारी उन्हें फँसी के लिए आये,उस समय वे अंतिम अध्याय पढ़ रहे थे।उन्होंने अपना ध्यान पन्नों पर रखे हुए हाथ उठाकर कहा- "महाशय,अभी ठहरिये,एक क्रांतिकारी दूसरे क्रांतिकारी से मिल रहा है।"अधिकारी स्तब्ध रह गए, मौत के सन्नाटे में भी जीवन की निश्चलता। जहां थे वही रुक गए। पुस्तक का अंतिम अध्याय समाप्त कर हर्ष से उछलते भगतसिंह उठ खड़े हुए और फांसी के लिए झूमते हुए चल पड़े। फांसी के फंदे में झूलने तक वीरवर भगतसिंह का मनोबल आकाश की भांति ऊँचा ही उठा रहा।