अभ्यास की दृष्टि रही तो साधन काम आते हैं। अभ्यास की दृष्टि न रही तो उत्तम साधन भी निकम्मे हो जाते है। उत्तम साध्य के लिए उत्तम साधन भी होना चाहिये। सुगंध की प्राप्ति चंदनादि सुगंधित द्रव्यों से ही संभव है। घटिया तेल जलाकर हवन की सुगंध नहीं पैदा की जा सकती