परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी

June 1999

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गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ,

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियो, भाइयो १ अब हमारा जीवन एक नया मोड़ लेकर आया है। इतनी लंबी जिंदगी हमने अपने मित्रों से, भाइयों से, कुटुम्बियों से, भतीजों से, बच्चों से मिल−जुलकर साथ-साथ में व्यतीत की है। ऐसा नहीं हुआ की हम कभी अकेले रहे हों। रात को भी सोते रहे हैं, तो आप लोगों का चिंतन बराबर करते रहे हैं। समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का ख्याल करते रहे हैं। जनता के साथ हम बराबर रहे हैं। हमने अब अपने जीवन में एक नया मोड़ दिया है। नया मोड़ क्या है? अब आपके और हमारे मिलने-जुलने का क्रम बंद हो जायेगा। अब आप यह उम्मीद करें की आप हमसे बात करेंगे, हमारी बात सुनेंगे, कठिनाइयों की अथवा जिज्ञासाओं की कोई बात हमारे सामने रखेंगे और हम उनका समाधान करेंगे। नहीं, अब यह संभव नहीं हो सकेगा। हमने अपना एक नया कार्यक्रम बना लिया है।

मित्रो, हमारे गुरु ने जो आदेश भेजा, उसी के आधार पर ही हमारा सारा-का-सारा जीवनक्रम चला है। अब तक की जिंदगी को हमने अपनी मर्जी से व्यतीत किया है अपने कार्यक्रम स्वयं नैन बनाये है। हमारे मास्टर, हमारे गुरु जिस ढंग से हमसे जो करते है, हम करते है। इसी तरीके से हमारी साड़ी जिंदगी की गतिविधियाँ चलती रही हैं। अभी-अभी हमारा जो एक नया कार्यक्रम बना है, उन्हीं के आदेश के अनुसार बना है। क्या बना है? अब हमारा आपका संपर्क नहीं रहेगा। रहेंगे, तो हम जमीन पर ही, आसमान में थोड़े ही जायेंगे, लेकिन आप लोगों से संपर्क की जो जरूरत है, वह संभव नहीं हो सकेगी। आप लोग नीचे बैठे होंगे, हम ऊपर बैठे होंगे, तो क्या बातचीत नहीं करेंगे? नहीं, अब यह संभव नहीं हो सकेगा। यह हमारे जीवन का नया मोड़ है।

आप लोग यह ख्याल कर सकता है की इसका किया कारण हो सकता है? आमतौर से कारण ऐसे ही होते हैं। कोई आदमी डर जाते हैं, भयभीत हो जाते हैं, शर्म के मारे बोलना बंद हो जाता है। कुछ व्यक्ति आलसी होते हैं जगे पड़े रहते हैं। जब घर वाले आवाज देते हैं की उठो भाई, कुछ करो, तब भी वे झूठमूठ खर्राटे लेते रहते हैं। ऐसे होते हैं आलसी और डरपोक आदमी। सुना है की जो मिलेट्री में भर्ती होते हैं, उनमें से कुछ व्यक्ति ऐसे भी होते हैं की जब लड़ाई का मौका अता है, दनादन गोलियां चलती हैं, तो कोई न कोई बहाना बनाते हैं, जैसे पेट दर्द हो गया, पुट्ठे में दर्द हो गया। चला नहीं जाता है, ये बात हो गयी है आदि दुनिया भर की बातें बना लेते हैं और युद्ध से भागने की कोशिश करते हैं। इन्हें पलायनवादी कहा जाता है। इस तरह आलसी एक, डरपोक दो और पलायनवादी तीन श्रेणी के व्यक्ति हुए।

तो क्या हम भी इन्हीं में से हैं? नहीं, हम इनमें से कोई भी नहीं हैं? जिन लोगों ने हमको नजदीक से देखा है, उनके स्पष्ट मालूम हैं की उन तीनों में से एक भी ऐब गुरूजी के भीतर नहीं हैं। इन खराबियों को हमने शुरू से ही अपने भीतर से उखाड़ फेंका है। अब तो पचहत्तर साल होने को आयें हैं। तो किया इतने लम्बे समय में वह बुराइयाँ कहीं छिपकर बैठ गयीं होंगी? नहीं हमने उन्हें कहीं छिपकर बैठने नहीं दिया है। फिर किया कारण है की हमको अलग एकांत में रहना पड़ा? अगले दिनों संकटों के घटाटोप और अधिक सघन होंगे, इसलिए उन्हें निरस्त करने और उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करने के लिए हमको अपने शक्तियों के फैलाव को रोककर एक जगह इकट्ठा करना पड़ रहा है, ताकि वह इकट्ठी हुई शक्तियां आपके ज्यादा काम आ सकें। आप से मतलब है - समाज से, धर्म से, देश से, मानव जाती से, संस्कृति से। इसलिए फैलाव को- बिखराव को हमने बंद कर दिया है।

बिखराव को रोककर एक दिशा में सुनियोजन

मित्रों, आपने देखा होगा की सूर्य की किरणें जब एक आतिशी शीशे के ऊपर एकत्रित कर देती हैं, तो वो कितने पैनी हो जाती हैं। हमारी शक्ति भी वैसी ही हो जाएगी। इस सन्दर्भ में आप कहेंगे की गुरुजी! आप तो फिर कमजोर हो जायेंगे? नहीं, बेटे! हम कमजोर नहीं होंगे। मान लीजिए, अगर हम कमजोर हो गए तो जो भी हमारे बच्चे होने वाले हैं, वे बहुत ताकतवर होंगे। आपने महाभारत पड़ा होगा की कुन्ती तो कमजोर हो गयी थी और अपनी जिठानी गांधारी के साथ जंगल में ताप करने चली गयी थी। लेकिन उनके बच्चे कितने शानदार थे, अर्जुन, भीम, और दूसरे सब बच्चे एक-से-एक समर्थ थे। कुन्ती मरी नहीं थी, वरन् अपनी जगह दूसरों को छोड़ गई थी। हम भी अपनी जगह पर दूसरों को छोड़ जाने की कोशिश में लग रहे है, ताकि हमारी परंपरा बंद न होने पाए।

यों तो स्थूल रूप से हमारी परंपरा बंद भी हो सकती है। पिचहत्तर साल की उम्र के बाद में आदमी कहाँ तक जिएगा? अधिक-से-अधिक पाँच वर्ष और चुस्ती व फुर्ती के साथ। उसके बाद कोई जिएगा, तो बुड्ढा हो जाता है, कमजोर हो जाता है, इन्द्रियाँ साथ देना बंद कर देती है। बुढ़ापे में किसी को जवान देखा है, आपने? नहीं कोई जवान नहीं देखा है। फिर हम कैसे जवान रह सकते हैं? स्वयं भाग-दौड़ करके कैसे काम कर सकते हैं? इस भाग-दौड़ के लिए हमने नये आदमी तलाश किये है और उनको ही बनाने में लग रहे हैं।

तप एकांत में ही क्यों?

आपने बिल्ली देखी है। बिल्ली जब बच्चा देती है, तो क्या सड़क पर देती है? नहीं, कोई ऐसा स्थान तलाश करती है जहाँ कोई आदमी न हो और उसे देखता न हो। ये छिपकर करने वाले काम हैं- एकांत के काम हैं। हम भी आप लोगों से अलग हटकर एकांत में जा रहे हैं, ताकि अपनी शक्तियों को एकत्र कर सकें और शक्तिशाली बन जाएँ। एकांत होने का मतलब यह है की आपको हम दिखाई न पड़ें। दिखाई न देने से क्या आपको कोई नुकसान है? और दिखाई पड़ें, तो आपको कुछ फायदा है क्या? बताइए क्या, आपको अपना दिल दिखाई पड़ता है? नहीं दिखाई पड़ता। आपने अपने गुर्दे देखे हैं? किसी और के भले ही देखें होंगे, पर अपने नहीं देखें होंगे। फेफड़े आपने देखे है अपने? वह भी नहीं देखे है। शीशे में आपने अपने आंख और कान देखें हो तो देखें हों और वह भी प्रत्यक्ष नहीं देखे होंगे। इस प्रकार आप हर चीज को नहीं देख सकते। देखना कोई बहुत जरूरी नहीं। यदि जरूरी होता तो भगवान शंकर और पार्वती जी कैलाश पर्वत पर मानसरोवर, जो यहाँ से बहुत दूर हैं, तप करने क्यों जाते? दिल्ली के चावड़ी बाजार में क्यों नहीं बैठ जाते? तब उनके पास देखने वाले-दर्शन करने वाले हजारों आदमी आते? विष्णु भगवान के बारे में मैंने आपको बताया है की वे कहा रहते है। वे क्षीरसागर में शेषशैया पर सोये रहते हैं और एकांत में रहते हैं। कोई काम नहीं करते।

मित्रो! एकांत का मतलब यहाँ वह भी नहीं है, जो अभी मैंने बताया है- भाग खड़े होना, आलसी हो जाना। यद्यपि एक मतलब यह भी होता है। दूसरा मतलब एकांत का है- अपनी शक्तियों को एकत्रित करना। माँ के पेट में जब बच्चा आता है, तो वह चुपचाप पड़ा रहता है। एकांत में चुपचाप बैठा रहता है। न किसी से बात करता है, न बोलता है और न हिलता-डुलता है। न अपनी आवश्यकता कहता है, न लड़ता है, न चिल्लाता है। चुपचाप नौ महीने तक माँ के पेट में बैठा रहता है। इससे क्या फायदा है? इससे यह फायदा है की पानी की एक नन्हीं बूंद एक पूरे बच्चे के रूप में विकसित हो जाती है।

आजकल हमारा जो एकांत चल रहा है- सूक्ष्मीकरण चल रहा है, इसके बारे में आप उसी तरह से समझिये। आप यह न सोचिये की हम भाग खड़े हुए। आप यह भी न सोचिये की हम भाग खड़े हुए। आप यह भी न सोचिये की हमने आप से मुहब्बत खत्म कर दी। मुहब्बत हमारी जिंदगी से खत्म नहीं हो सकती। उन लोगों के बारे में सोचिये जो बैरागी हो जाते हैं, माँ-बाप को छोड़ देते हैं। भाइयों को, बच्चों को बिलखता छोड़ देते हैं। ऐसे बैरागी हम कहाँ हो सकते हैं? ऐसा हमारे लिए संभव नहीं है, क्योंकि वह रास्ता जिन लोगों ने अख्तियार किया है, उन लोगों में से सभी को हमने रोका है। सबको मना कर दिया है और कहा है की नहीं भाई, यह रास्ता गलत है। समाज के साथ स्वयं को आगे बढ़िए, अपने गुणों को बढ़ाइये, और दूसरों को आगे बढ़ाइये। हमारी यही मनोकामना है। अभी मैं आपसे अलग होने की सफाई दे रहा था। इस संबंध में क्षीरसागर में बैठे भगवान विष्णु की सफाई दी, कैलाशवासी भगवान शंकर की सफाई दी- अकेले एकांत में रहने की। चलिए अभी मैं आप को और उदाहरण बताता हूँ। पांडिचेरी के अरविंद घोष का नाम सुना है न आपने, उन्होंने अपने सब काम कर लिए थे। अपनी ताकत, जितनी भी थी, सब खर्च कर ली थी। ताकतवर नौजवान के साथ लेकर अंग्रेजों को को भगाने का उनका मकसद था, पर वह पूरा न हो सका। फिर उन्होंने एक नेशनल कॉलेज खोला, उसमें विद्यार्थी पढ़ायें। इस नयी पीढ़ी को लोगों को समझाया की आजादी की लड़ाई लड़नी चाहिए। वह प्रयास भी यूँ ही नाकारा साबित हुआ। इसके बाद उन्होंने ने एक राजनैतिक पार्टी बनायी, बम चलाये। बम चल कर अंग्रेजों को भगाने-डराने की बात कही, लेकिन यह बात भी उनकी सफल नहीं हुई। फिर उनको दिखाई पड़ा की सबसे बड़ी ताकत कौन-सी है जिससे की बड़ी-से-बड़ी हुकूमतों से टक्कर मना संभव है। तब उनको दिखाई पड़ा की यह शक्ति केवल तप में है। तप कहाँ होता है? तप के लिए एकांत चाहिए। पांडिचेरी के अरविंद-घोष तप के लिए एकांत में चले गए। मालूम है न आपको। उनके साथ जो माताजी रहती थीं। दिनभर एक बार दर्शन के लिए माताजी बहार आती थीं। अरविंद सालभर बाद-छह माह बाद-जब उनका मन होता था दर्शन दे जाते थे। उसमें भी दूर ही रहते थे। इससे किया फायदा हुआ? इसका फायदा यह हुआ की उन्होंने सारे-के सारे वातावरण को गरम कर दिया। ऐसा वातावरण गरम हुआ जैसे गर्मी में चक्रवात आते हैं और धुल-मिट्टी के बवंडर उठते हैं और लगातार आकाश की ओर ऊपर उठते रहते हैं। ऐसे ही कितने सारे चक्रवात यहाँ हिन्दुस्तान में तैयार हुए। उनमें से एक का नाम गाँधी, एक का नाम नेहरू, एक का नाम पटेल, एक का नाम सुभाष, एक का नाम मालवीय था। एक साथ इतने सारे महामानव खी दुनिया के परदे पर पैदा नहीं हुए। आजादी की लड़ाई में, आंदोलनों में लोग तो बहुत सारे साथ हुए है, पर जब से जमीन बनी है तब से ऐसा नहीं हुआ, जब एक साथ एक मुल्क में इतने सारे महापुरुष पैदा हुए हो, जितने की अरविंद घोष के जमाने में हुए है।

महर्षि रमण का मौनतप

ठीक इसी तरह से महर्षि रमण का बकाया है। वे भी अकेले रहते थे, मौन रहते थे,बात नहीं करते थे। चिड़िया आती थी, दूसरे जानवर आते थे, उनके साथ बैठ जाते थे और उनकी मौन वाणी को सुनते थे। आप भी हमारी मौनवाणी को बराबर सुनते रहेंगे। ताज वाणी को आपके कान बर्दाश्त कर सकेंगे या नहीं, यह तो मैं नहीं जनता, लेकिन हमारी आवाज जो दूसरी और तीसरी वाणी में होंगी, अब वह बोलेगी। यह वैसी ही वाणी है जिसे, हम भी आपके सामने बोल रहे है। इन्हीं वाणियों से हम आप से जिंदगी भर बात करते रहेंगे। इसके अलावा आदमी की तीन और वाणियां है। एक है! माध्यम वाणी जो व्यक्ति के चेहरे से टपकती है। दूसरी होती है - परा वाणी जो आदमी के विचारो से, दिमाग से निकलती है। तीसरी - 'पश्यंति'वाणी है, जो मनुष्य के अंतरात्मा के अंदर रहती है। यह सत्संग की वाणी है। इन तीन वाणी को कोई बंद नहीं कर सकता, इनमें कोई रुकावट नहीं डाली जा सकती है। मौन रहकर भी -एकांत में रहकर भी ये तीनों वाणी बराबर काम करती रहेगी और आपको फायदा देती रहेगी।

हमसे कुछ पाने का प्रयास कीजिए

मित्रो! यह कब फायदा देगी, यह कब तक फायदा देगी जब आप हमारे साथ घुलेंगे- मिलेंगे। अगर आप दूर-दूर रहेंगे तो बात कैसे बनेगी? दूर रहने से काम नहीं बनेगा, आपको हमारे पास आना पड़ेगा। पास आने का केवल यह मतलब नहीं है की आप शांतिकुंज में, हमारे कमरे में आ जाते हैं, मिल जाते हैं, वरन् पास आने का मतलब यह है कि आप हमारे विचारों के साथ कितनी घरी से जुड़ते हैं। हमारे पास क्या रखा है? हमने जो त्याग, तपश्चर्याएं, उपासनाएं की है, ऐसे ढेरों आदमियों के नाम बता सकता हूं, जिन्होंने इस तरह की उपासना की हैं। लेकिन यह सही बात- ईमानदारी की यह बात है की हमारे गुरु की गुरु शक्ति की सामर्थ्य हमें बराबर मिलती रही है। और उसी के आधार पर हम कठपुतलियों की तरह तमाशा करते आये हैं। आप भी आइये, आपके लिए भी रास्ता खुला है।

हमसे पहले भी बहुत से आदमियों ने इसी तरह का रास्ता खोल दिया है। रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद के जोड़े का नाम सुना है आपने। रामकृष्ण परमहंस केवल ध्यान देते थे, उन्होंने कोई अनुष्ठान नहीं किया, ना कोई विशिष्ट जप किया, ना तो हिमालय गए, परमहंस ने सारी आध्यात्मिकता संपदा उनके शिष्य नरेंद्र को मिली। उसी को लेकर विवेकानंद ने वह काम किया जो रामकृष्ण आपने शरीर से नहीं कर सकते थे।

आपने विरजानंद और महर्षि दयानंद का नाम सुना है कौन दयानंद? आर्य समाज वाले। उनके गुरु स्वामी विरजानंद मथुरा में रहते थे। वे आंख से अंधे थे। उन्होंने आपने समर्थ को स्वामी दयानंद को हस्तांतरित कर दिया। इसके बाद दयानंद ने वह कम कर दिखाया, जो हजार आदमी नहीं कर सकते थे। आपके लिए रास्ता खुला है, आप भी इस शक्ति का फायदा उठाना चाहे,जो आगे चल कर और भी ज्यादा हो जाएगी, तो उठा लीजिए। पहले से भी ऐसे बहुत से लोग है, जो हमारे साथ चलते रहे है। उन्हें लाभ भी हुआ है। गांधीजी के साथ में मीरा बहिन चलती थी, नेहरू जी चलते थे, सुभाष जी चलते थे, विनोबा जी चलते थे उन्हें क्या फायदा मिला? सब को फायदा ही हुआ है।

आपने स्वामी रामदास और शिवा जी का नाम सुना है। शिवा जी कौन थे? शिवाजी वह व्यक्ति थे जिन्होंने हिंदुस्तान को आजाद कराने की तारीख में पहला कदम उठाया और समर्थ गुरु रामदास थे जो संत प्रकृति के हो गये थे और इस बात की तलाश में थे की संत के लिए आजादी की लड़ाई लड़ना, कहना-खच्चर आदि सब मुनासिब नहीं है, इस लिए कोई दूसरा रास्ता तलाश करना चाहिए। उन्होंने शिवाजी को तलाश लिया। उनका इम्तहान सिंहनी का दूध मंगाकर लिया और इसके बाद उन्होंने भवानी के हाथ से - देवी के हाथ से एक इसी तलवार दिलाई, जिसको लेकर वे अक्षय और अजेय हो गये। यहाँ कही भी वह तलवार गयी उन्हीं की विजय हुई।

जिस तरह शिवाजी और समर्थ गुरु रामदास का जोड़ा है, उसी तरीके से चाणक्य और चन्द्रगुप्त का जुड़ा है। चाणक्य के पास बहुत समर्थ थी शक्ति थी, किंतु चन्द्र गुप्त एक दासी का बेटा था वह कुछ नहीं कर पाता था। लेकिन चाणक्य की शक्ति को जब उसने स्वीकार कर लिया, तो वह चक्रवर्ती सम्राट बन गया। "मैं आप की शक्ति को स्वीकार करता हूं " कहने का मतलब है की मैं तुम्हारे कहने पर चलूँगा। अगर आप कहते हैं कि यह शक्ति हम को भी मिल शक्ति जाएगी, तो यह बेकार बात है, क्यों की शक्ति कहीं किसी को नहीं मिलती है। वे उद्देश्य के लिए मिलती है। किसी काम के लिए मिलती है किसी मकसद के लिए, किसी किसी वजह के लिए मिलती है और किसी खास आदमी को मिलती है।

शक्ति-अनुदान विशेष उद्देश्यों के लिए

मित्रो! हम खास आदमी भी है और हमें जो शक्तियां मिली है, वे किसी मकसद में लगाने के लिए मिली है हमारे गुरु से तीन बार हमारा मिलना हुआ है, लेकिन वे निरंतर हमारा मार्ग दर्शन किया करते है। ऐसा कभी नहीं हुआ कि उन्होंने कभी धीरे से कान में आकर या जोर से कही हो और हमने गौर से उनकी बात सुनी न हो। नाव को और राहगीर को जानते है न आप। नाव पार होगी तो क्या राहगीर जो उस पर बैठा है, पार नहीं होगा। जिस राहगीर को तैरना नहीं आता, वह कैसे पार होगा? लेकिन नाव में जब सवार हो जाता है, उसका मल्लाह नाव को भी पार लगा देता है और उसमें बैठे मुसाफिर को भी पार लगा देता है। आप सब हमारी नाव में बैठे है, हम आप सब को पार लगा देंगे और आपकी जिन्दगी को भी पर लगा देंगे। आप जो इतना बड़ा काम करने जा रहे है, हम उस को भी पूरा कर देंगे। आपको निश्चित रूप से हमारी शक्ति मिलती रहेगी, हमारा सहयोग मिलता रहेगा। यह काम हम पहले भी करते है,और एकांत में भी बराबर करते रहेंगे।

समय की विभीषिका बड़ी विकट

साथियों! अब ऐसा वक्त आ गया है की इस भयंकर वक्त में कुछ बड़ा कदम उठाये बगैर काम चलने वाला था नहीं। इन्हीं दिनों की विभीषिका ऐसी हुई है, जिसे आप पढ़ते होंगे। भविष्यवाणियां पढ़ते होंगे। टोरंटो की भविष्यवक्ता कांफ्रेंस - समाचार आपने पड़ा है न, कोरिया का समाचार पढ़ा है न। सारी परिस्थितियां यह समय बड़ा भयंकर है। इन दिनों हवा में इतना जहर मिल रहा है, पानी में इतना जहर मिल, खाद्यपदार्थ में इतना जहर मिल रहा है। आप जानते है की परमाणु - भट्ठी से, परमाणु विस्फोटों से कितनी तेजी से जहर फैल रहा है, जिन -जिन देशों ने बिजली उत्पादन के लिए आपने यह परमाणु भट्ठी लगायी है, उनसे विकिरण निकल रहा है। जनसँख्या में अंधाधुंध वृद्धि हो रही है। मक्खी-मच्छरों से भी ज्यादा मनुष्यों की वृद्धि हो रही है। अगले दिनों खड़े होने के लिए कही जगह भी नहीं मिलने वाली है। सड़क पर चलना भी मुश्किल हो जायेगा। खाना उनके लिए मुश्किल हो जायेगा।

यह सब मुसीबतें नहीं बहुत बड़ी मुसीबतें है। एटमी युद्ध से भी ज्यादा भयावह है ज्यादा बच्चा पैदा होना क्राइम को -अपराध को जन्म देना है। आपने देखा नहीं, आज आदमी की मनोवृत्ति अपराध करने की हो गयी है। ईमानदारी व भलमनसाहत किसी की समझ में नहीं आता है। लालाजी दुकान पर बैठे तो जरूर है, पर मिर्च में गेरू मिल दे रहे है। लोग मंदिर दर्शन करने जरूर जाते है, हनुमान चालीस का पाठ जरूर करते है, लेकिन नियत उनकी भी खराब होती है। यदि आदमी की नियत खराब हो जाये तो उससे भयंकर भला और क्या हो सकता है?

ये सारी की सारी चीजें एक साथ क्या मिल गयी है, विश्व -मानवता के सामने मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है। अब आप ही बतायें इन चीजों से भला कौन ले? हर आदमी लेगा? आप लेंगे? चौराहे पर खड़े नेता लोग टक्कर ले लेंगे? यह बिलकुल भी संभव नहीं है। इसके लिए तो सामर्थ्यवान व्यक्ति होना चाहिए। जब तक कोई समर्थवान नहीं होगा तो इतनी बड़ी शक्तियों से टक्कर नहीं ली जा सकती। फिर टक्कर लेने वाले बुत से तैयार हो जाते हैं। दो काम करने हैं। एक तो भान्यकर्ता हमारी आपकी ओर घनघोर घ्त्र के रूप में बढ़ती चली जा रही है, उससे टक्कर लेनी है टकराव के लिए मजबूती आदमी होना जरूरी है मजबूत हस्तियां चाहिए। मजबूत आध्यात्मिक शक्ति चाहिए।

भागीरथी पुरुषार्थ की वेला

आप ने पढ़ा होगा- सृष्टि के इतिहास में दो बार ऐसी ही घटना हो चुकी है। एक बार सब जगह पानी की कमी पड़ गयी थी, पानी कहीं था ही नहीं। भागीरथ स्वर्ग से गंगा को जमीन पर लाने के लिए तप करने लगे। गंगा जमीन पर आई और धरा चहुंओर लहलहा उठी। यह क्या है तप की शक्ति। ऐसी तरह दूसरी घटना है। बहुत समय पहले की बात है - वृत्तासुर नामक एक ऐसा राक्षस था, जिसने सारे देवताओं को मार कर भगा दिया था। तब उसका मुकाबला करने के लिए दधिचि को अपनी हड्डी देनी पड़ी थी। उसका जो वज्र बना कर उससे जो मारा गया। जब ये सब आप ने सुना है। तो बात सुन लीजिए की आप चाहे तो हमारी भी संगति उसी से बिठा सकते है।

वृत्तासुर हनन हेतु दधिचि ने दिया वज्र

आज इस समय आ गया है की भागीरथ को फिर एक बार इस धरती पर ज्यों की गंगा लानी है, जिससे दुनिया में सन्ति पैदा हो। दूसरी ओर दधिचि का वज्र जो इंद्र के हाथ में रहा था और उसके प्रहार से वृत्तासुर का चुरा हो गया था, चुरा कर देने वाली ऐसी शक्ति चाहिए। वज्र की शक्ति और ज्ञान गंगा की शक्ति का संतुलन करने के लिए हमारा कार्यक्रम चल पड़ा है। हम उसी के लिए ताप कर रहे है। आप यह मत सोचिए की हम भाग रहे है? हम भाग नहीं रहे है। हम माँ के पेट में बैठे है, ताकि हम अपनी शक्ति बड़ा करके और ज्यादा कर सके। क्या आप यही ख्याल करते है की औरों की तरीके से हम भी स्वर्ग की प्राप्ति के लिए कोशिश कर रहे है? या मुक्ति के लिए कुछ कर रहे है?आपका यही ख्याल है की सिद्धियां और ऋद्धियां पाने के लिए तप कर रहे है? नहीं बेटे, यह तो हमने बहुत पहले से ही पता कर लिए थे। स्वर्ग हमारी निगाहों में हर जगह दिखाई है,

इसी तरह मुक्ति का बंधन हम न जाने कब के काटकर फेंक चुके है लोभ हमारे पास नहीं है, हमारे पास आता भी नहीं है। वासनाओं की सलाखें, अहंकार की जंजीरें जाने

कब का तोड़कर फेंक चुके होते है मुक्ति के लिए भी प्रयास तो हम तब करे जब हमें यहां रहना हो और सिद्धियां? सिद्धियों के लिए उसी को कोशिश करना चाहिए जिसके पास यहां न हो। हमारे पास स्वर्ग चारों ओर नजदीक ही घुमा करता है। हम अपने आप को तपा रहे है। हीरा देखा है। वः कोयला होता है, उसको ज्यादा गर्मी दी जाती है तो वह हीरा बन जाता है। एटम देखा है ना आपने? वह धुल का एक कण होता है, जो जमीन पर पड़ा रहता है, लेकिन जब वैज्ञानिक विधि से अलग किया जाता है और उसका विस्फोट किया जाता है, तो हिरोशिमा और नागासाकी जैसा विध्वंसकारी बन जाता है।

पंचमुखी गायत्री की उपासना पांच वीरभद्रों का जागरण

मित्रो! अब हम पंचमुखी गायत्री की साधना करने जा रहे हैं। अब तक हमने एक मुखी गायत्री की उपासना की है। तो आपने हमें क्यों नहीं बताया पंचमुखी गायत्री की उपासना? इसलिए की आप इसे नहीं कर सकते हैं। आपको एक मुखी गायत्री की उपासना करना ही मुश्किल है। माँ और बेटे का सम्बन्ध निभाना ही मुश्किल है। पंचमुखी गायत्री की, पांच देवताओं की उपासना कर रहे हैं, पाँच इष्टों की की उपासना कर रहे हैं, पाँच शक्तियों की उपासना कर रहे हैं, क्योंकि हमें पांच क्षेत्रों में काम करना है। बुद्धिजीवियों के साथ काम करना है। हमको राजनेताओं की अक्ल ठिकाने लगाना है। हम कलाकारों को एक खास रास्ते पर ले जायेंगे। हम सम्पन्न आदमियों से कुछ कम कराएंगे और आप जैसे लोगों से, जिनको हम भावनाशील कहते हैं। आप बुद्धिजीवी न सही, राजनेता न सही, किसी देश के प्रधानमंत्री न सही, उससे हमें क्या लेना देना। कलाकार आप नहीं है, आपकी वाणी में जोश-खरोश और दूसरी अन्य गायन सम्बन्धी विशेषताएं नहीं है, तो न सही? आप सम्पन्न नहीं, तो न सही, मरने दीजिए पैसे को; भावनाशील तो है आप। यहां संसार की, सबसे बड़ी यहां दौलत है। हमें आपको अग्रिम मोर्चे पर खड़ा करना है।

इसी तरह भावनाशीलों को, बुद्धिजीवियों को, कलाकारों को, राजनेताओं को, संपन्न व्यक्तियों को आगे से जाकर के हमको झकझोरना है और इस तरीके से रास्ते पर लाना है की वे लड़ाई के मोर्चे पे हमारे साथ-साथ चले। कंधे-से-कंधे मिलाकर चले। पांडव का नाम तो सुना होगा न? की वे पाँच भी भाई थे। अर्जुन धनुर्धर था, उसके साथ-साथ उसके सभी भाई चलते थे। क्या मजाल की कोई अलग हो जाये। हम इसी तरीके से प्रबंध कर रहे हैं। हम इसी तरीके से प्रबंध कर रहे हैं। हमारी पाँच गुना शक्ति बढ़ने जा रही है। हम पाँच वीरभद्र पैदा करने में जुटे रहे हैं। हम आप से कही दूर नहीं जा रही है और न अलग हो रहे हैं।

मित्रो, अभी हम आपको सफाई दे रहे थे की कही आप इस तरीके से न सोच ले कि गुरु जी अपनी मुक्ति के लिए, स्वर्गप्राप्ति के लिए हमको दगा दे रहे हैं और हमसे जो बातचीत करते हैं, उस तरीके को भी उन्होंने बंद कर दिया। ऐसी बात नहीं है, हम तो आपके पीछे भूत की तरीके से लगे हैं। ऐसी तरह हम राजनेताओं के पीछे, कलाकारों के पीछे, बुद्धिजीवियों और संपन्न व्यक्ति के पीछे भूत की तरह से लगेंगे। नया युग लाने के लिए हमें जिन भी शक्तियों की आवश्यकता पड़ेगी, उसे ऐसी क्रम में नियोजित करेंगे। उसके लिए तब क्या करना पड़ेगा? हम आपसे अलग चले जायेंगे। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है समझना की अलग चले जाने से कोई दुश्मनी होती है। माँ अपने बच्चे को गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेज देती है, तो क्या माँ बच्चे की दुश्मनी होती है। धन कमाने के लिए कोई परदेश चला जाता है, और परदेश में दो पैसे कमाकर अपने बच्चों के मनीआर्डर से भेजता रहता है। आप समझते है की बाप, जो परदेश चला गया था, उसने अपने बच्चों से मुहब्बत कम कर दी? अपने माता-पिता से मुहब्बत कम कर दी? न, ऐसा मत कहिये। अलग होने का मतलब मुहब्बत कम करना नहीं होती है, इस मुहब्बत को सार्थक करने के लिए ही हमारे ये नये कदम उठे है।

देते ही रहेंगे हम जीवन भर

आप हमको देख नहीं पायेंगे, तो कोई हर्ज की बात नहीं। जब आप अपने आमाशय, गुर्दे, जिगर, हृदय आदि को नहीं देख सकते, फिर भी वे आप के साथ काम करते हैं। आपका दिल फिर भी आपके साथ धड़कता तो है, फिर आप क्या शिकायत करते है। अभी तो हम सन २००० तक स्थूल या सूक्ष्म रूप में जिन्दा रहने वाले है। यह एक भयंकर समय है जिसमें की आदमी की मुस्तैदी - चौकीदारी की बराबर जरूरत है। इस संध्याकाल की बेला में हम बराबर काम करेंगे और आपके साथ रहेंगे। यह हमारी आवश्यकता भी है। इसमें हम कभी कमी नहीं आने देंगे। हमने जिंदगी भर दिया है और देते रहेंगे। आपके नजदीक न रहेंगे तो क्या? सूर्य आपके नजदीक है क्या? फिर भी आप धूप में बैठे, और आपके कपड़े सुखा जाता है। चंद्रमा आपके नजदीक है क्या, लाखों मील दूर है। समुद्र आपके नजदीक है क्या, समुद्र ना जाने कितनी दूर है आपसे, फिर भी वह बराबर आपका ख्याल रखता है। आप जो पानी पीते है, कपड़े धोते है, स्नान करते है, वह पानी कहाँ से आता है? बादलों से आता है।बदल कहाँ से आते है? समुद्र से। समुद्र का दिया हुआ पानी आप पीते है, परन्तु समुद्र को शायद ही आपने देखा हो। सूर्य और चंद्रमा की शक्ल आप ने देखि है, पर उसके नजदीक आप गए है क्या? उसके पास तक पहुंचे है कभी? नहीं पहुंचे है। तब सब चीजें आप से बहुत दूर है। लेकिन दूर रहते हुए भी आपकी सेवा करते हैं कि आपकी जिन्दगी को संवारे बैठी है। यदि हवा आपको ना मिले तो आपके प्राण निकल जायेंगे। हवा आपने देखी नहीं। अतः देखने की बात आप अपने मन से हटा दे। आप-हमको न देख पाए या हम आपको, इससे कुछ बनता -बिगड़ता नहीं है। हम एकांत में रहा कर ज्यादा मजबूती से काम करेंगे। और आप से भी यही उम्मीद करेंगे की आप भी ज्यादा मजबूती से हमारे साथ - साथ कदम उठाएंगे।

आप हमारे विचारो के समीप आएं

मित्रो! हम चाहते है की आप हमारे नजदीक आये, साथ-साथ कंधे-से -कन्धा मिलाकर चले। हमारे नजदीक और पास नहीं आयेंगे और दूर बने रहेंगे तो फिर हमारा शक्ति एकत्रित करना भी बेकार है। अगर आप बुद्धिजीवी है, राजनेता है, संपन्न है, कलाकार है, लेकिन भावनाशील नहीं है, तो हमारे किस काम के? आपको भावनाशील होना चाहिए। हमें भावनाशीलों की जरूरत है अन्यथा हमारे मोहल्ला - पड़ोस में ढेरों मजदूर काम करते है, तो किसी की कृपा अनुग्रह उन पर हुई है क्या? हम आपने गुरुदेव के नजदीक है। तीन बार उनके पास गये है। बाकी चौबीसों घंटे उन्हीं का हुक्म बजाते है और कहते है की आप आदेश दीजिए। हम क्या कहते और चाहते है, उस बात को आप गौर से सुनना। अगर आप गौर से नहीं सुनेंगे तो फिर हमारे नजदीक रहने, न रहने से कोई फायदा नहीं। शिव भगवन् और पार्वती बहुत दूर रहते है कैलाश पर्वत पर, परन्तु इतनी दूर रहते हुए भी आपकी सेवा में कोई कमी नहीं आने देते है। जब भी आप ध्यान करते है, वे कैलाश पर्वत से उतर कर सीधे आप तक चले आते है। भगवान् विष्णु क्षीरसागर छोड़ कर आप तक चले आते है। अतः आप सिद्धांतों को सुनिए, सिद्धांतों को को समझिये। बच्चों का सा मत देखिए की आप हमारी शक्ल देखे और हम आपकी शक्ल देखे। देखना हो तो देख भी लेना हम इंतजाम किये देते हैं। आप आमने-सामने आवाज ना सुन सकेंगे ना सही, हम टेप कराये देते हैं, इसे आप सुन लेना। आपको संतोष तो हो। आपको संतोष हो जाएगा, तो हम को बहुत प्रसन्नता होगी।

आज आपको सफाई देने और आगे का काम बताने के लिए ही बुलाया है। सफाई इसके लिए नहीं की अभी आपको सन् २००० तक जीवित रहना है। इस शरीर से न भी रहे, तो सूक्ष्म शरीर से रहेंगे। मनुष्य के तीन शरीर है - स्थूल, सूक्ष्म और कारण। स्थूल शरीर मर भी जाये तो इससे क्या बिगड़ता है। किन्तु स्थूल शरीर न रहने पर उससे कई गुना ज्यादा काम सूक्ष्मशरीर से किया जा सकता है। गुरूजी तो क्या आप हिमालय चले जायेंगे? हिमालय चले जायेंगे, तो आपको क्या दिक्कत आयेगी? हमारे गुरु भी हिमालय में रहते हुए भी, हमारी बहुत सेवा करते हैं। हम कहीं भी चले जाएँ, हिमालय चले जाएँ, शांतिकुंज में रहें, या इस शरीर को छोड़ जाएँ, पर आप यह विश्वास रखिये की हम सन् दो हजार तक हम यही शांतिकुंज में मौजूद रहूंगा। इस अवधि में आप हमको बराबर अपने समीप पायेंगे और आपके के लिए बराबर काम करते रहे होंगे। बस आपसे इतनी ही प्रार्थना है कि आप हमारे लिए भी कुछ काम कीजिए, तो मजा आ जायेगा और क्या कहूँ आगे। आज की बात खत्म करता हूँ।

ॐ शांतिः।।


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