वाजिश्रवा ने अपने पुत्र नचिकेता के लिए यज्ञफल की कामना से विश्वजित यज्ञ आयोजित किया। इस यज्ञ में वाजिश्रवा ने अपना सारा धन दे डाला। दक्षिणा देने के लिए जब वाजिश्रवा ने गायें मंगाई, तो नचिकेता ने देखा वे सब वृद्ध और दूध न देने वाली थी, तो उसने निरहंकार भाव से कहा -" पिता जी निरर्थक दान देने वाले को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती।" इस पर वाजिश्रवा क्रुद्ध हो गये और उन्होंने अपने पुत्र नचिकेता को ही यमराज को दान कर दिया।
यम ने कहा - वत्स! मैं तुम्हें सौन्दर्य, यौवन, अक्षय धन और अनेक भोग प्रदान करता हूँ, किन्तु नचिकेता ने कहा - जो कुछ क्षणिक और शरीर को जीर्ण करने वाले हो, उन्हें लेकर क्या करूँगा, मुझे आत्मा के दर्शन कराइये। जब तक स्वयं को न जान लूँ वैभवविलास व्यर्थ है।साधना के लिये आवश्यक जिज्ञासा, सत्यनिष्ठा और तपश्चर्या का भाव देखकर यम ने नचिकेता को पंचाग्नि विद्या ( कुंडलिनी जागरण ) सिखाई, जिससे नचिकेता ने अमरत्व की शक्ति पाई।