अपने अंग - अवयव से

June 1999

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सूक्ष्मीकरण साधना के दौरान नैष्ठिक कार्यकर्ताओं के लिए पूज्य गुरुदेव द्वारा एक बार नित्य पढ़ने के निर्देश के साथ लिखा गया एक विशेष पत्रक

यह मनोभाव हमारी तीन उंगलियां मिलकर लिख रही है, पर किसी को यह नहीं समझना चाहिए की जो योजना बन रही है और कार्यान्वित हो रही है, उसे प्रस्तुत कलम, कागज या उंगलियां ही पूरा करेंगी। करने की जिम्मेदारी आप लोगों की, हमारे नैष्ठिक कार्यकर्ताओं की है।

इस विशालकाय योजन में प्रेरणा ऊपर वाले ने दी है। कोई दिव्यसत्ता बता या लिख रही है। लिखा ही नहीं रहा है, वरन् उसे पूरा करने का ताना- बाना भी बुन रहा है। योजना की पूर्ति में न जाने कितनों का, कितने प्रकार का मनोयोग और श्रम, समय, साधना आदि का कितना भाग होगा। मात्र लिखने वाली उंगलियां न रहे या कागज-कलम चुक जाए, तो भी कार्य रुकेगा नहीं, क्योंकि रक्त का प्रत्येक कण और मस्तिष्क का प्रत्येक अणु उसके पीछे काम कर रहा है। इतना ही नहीं, वह दैवीसत्ता भी सतत् सक्रिय है, जो आँखों से न तो देखी जा सकती है और न दिखाई जा सकती है।

योजना बड़ी है, उतनी ही बड़ी जितना की बड़ा उसका नाम है- युग - परिवर्तन। इसके लिए अनेक वरिष्ठों का महान योगदान लगना है, उसका श्रेय संयोगवश किसी को भी क्यों न मिले।

प्रस्तुत योजना को कई बार पढ़ें। इस दृष्टि से की उसमें सबसे बड़ा योगदान उन्हीं का होगा, जो इन दिनों-हमारे कलेवर के अंग-अवयव बनकर रह रहे है। आप सबकी समन्वित शक्ति का का नाम ही वह व्यक्ति है, जो इन पंक्तियों को लिख रहा है।

कार्य कैसे पूरा होगा? इतने साधन कहाँ से आएंगे? इसकी चिंता आप न करे। जिसने करने के लिए कहा है, वही साधन में जुटायेगा। आप तो सिर्फ एक बात सोचे की अधिकाधिक श्रम समर्पण करने में एक - दूसरे में कौन अग्रणी रहा?

साधना, योग्यता, शिक्षा आदि की दृष्टि से हनुमान उस समुदाय में अकिंचन थे। उनका भूतकाल भगोड़े सुग्रीव की नौकरी करने में बीता था, पर जब महती शक्ति के साथ सच्चे मन और पूर्ण समर्पण के साथ लग गए, तो लंकादहन, समुद्र छलांगने और पर्वत उखाड़ने का, राम-लक्ष्मण को कंधे पर बिठाएँ फिरने का श्रेय उन्हीं को मिला। आप लोगों में से प्रत्येक से एक आशा और अपेक्षा है की कोई भी परिजन हनुमान से कम स्तर का न हो, अपने कर्तव्य में कोई भी अभिन्न सहचर पीछे न रहे।

काम क्या करना पड़ेगा? यह निर्देशन और परामर्श आप लोगों को समय-समय पर मिलता रहेगा। वह तो समय की बात है। काम बदलते भी रहेंगे और बिगड़ते भी रहेंगे। आप लोग तो सिर्फ एक बात का स्मरण रखें कि जिस समर्पण के भाव को लेकर घर से चले थे, पहले लेकर आये थे, उसमें दिनों-दिन बढ़ोतरी होती रहे, कहीं राई-रत्ती भी कमी न पड़ने पाये।

कार्य की विशालता को समझें। लक्ष्य तक निशाना न पहुंचे, तो भी वह उस स्थान तक अवश्य पहुंचेगा, जिसे अद्भुत, अनुपम, असाधारण और ऐतिहासिक कहा जा सके। इसके लिए बड़े साधना चाहिए, सो ठीक है, उसका भार दिव्यसत्ता पर छोड़े। आप तो इतना ही करे की आपके श्रम-समय, गुण-कर्म-स्वभाव में कहीं भी त्रुटि न रहे। विश्राम की बात न सोचें, अहर्निश एक ही बात मन में रहे की हम इस प्रस्तुतीकरण में पूर्णरूपेण खपकर कितना योगदान दे सकते है? कितना भार उठा सकते है? स्वयं को अधिकाधिक विनम्र बनाएं, दूसरों को बड़ा माने। स्वयंसेवक बनने में गौरव अनुभव करे। इसी में आप का बड़प्पन है। अपनी थकान और सुविधा की बात न सोचे। जो कर गुजरे, उसका अहंकार न करे, वरन् इतना ही सोचें हमारा चिंतन, मनोयोग एवं श्रम कितने अधिक ऊँची भूमिका निभा सका? कितनी बड़ी छलांग लगा सका? यही आपकी अग्निपरीक्षा है। इसी में आपका गौरव और समर्पण की सार्थकता है। अपने साथियों को श्रद्धा व क्षमता घटने न दे, उसे दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ाते रहें।

स्मरण रखे की मिशन का काम अगले दिनों बहुत बढ़ेगा, अब से कई गुना। इसके लिए आपकी तत्परता ऐसी होनी चाहिए, जिसे ऊँचे-से-ऊँचे दर्जे का कहा जा सके और आपका अंतराल जिसका लेखा-जोखा लेते हुए अपने को कृत - कृत्य अनुभव करे। आप फूले ना समाये और प्रेरकसत्ता आपको इतना घनिष्ठ बनाये, जितना की राम पंचायत में छठे हनुमान भी घुस पड़े थे।

कथन का सारांश इतना ही है, आप नित्य अपनी अंतरात्मा से पूछे की जो हम कर सकते थे, उसमें राई-रत्ती त्रुटि तो नहीं रही? आलस्य-प्रमाद को कहीं चुपके से आपके क्रिया-कलापों में घुस पड़ने का अवसर तो नहीं मिल गया? अनुशासन में व्यतिरेक तो नहीं हुआ? अपने कृत्यों को दूसरे से अधिक समझने की अहंता कहीं छद्म रूप में आप पर सवार तो नहीं हो गयी?

यह विराट योजना पूरी होकर रहेगी। देखना इतना भर है की इस अग्निपरीक्षा की वेला में आपका शरीर, मन और व्यवहार कहीं गड़बड़ाया तो नहीं। ऊंचे काम सदा ऊंचे व्यक्तित्व करते हैं। कोई लम्बाई से ऊँचा नहीं होता, श्रम, मनोयोग, त्याग और निरहंकारिता ही किसी को ऊँचा बनाती है। आपकी ऊंचाई उससे कम न पड़ने पाए, यह एक ही आशा, अपेक्षा और विश्वास आप लोगों पर रखकर कदम बढ़ रहे है। आप में से कोई इस विकास वेला में पिछड़ने न पाए, जिसके लिए बाद में पश्चात्ताप करना पड़े।


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