नदी का जीवन (Kahani)

June 1999

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“ एक लड़के ने एक बहुत धनी आदमी को देखकर धनवान बनने का निश्चय कर किया। कई दिन तक वह कमाई में लगा रहा और कुछ पैसे भी कमा लिए। इसी बीच उसकी भेंट एक विद्वान से हुई। अब उसने विद्वान बनने का निश्चय किया और दूसरे ही दिन से कमाई धमाई छोड़कर पढ़ने में लग गया। अभी अक्षर अभ्यास ही सीख पाया था की उसकी भेंट एक संगीतज्ञ से हुई। उसे संगीत में अधिक अकर्षण दिखाई दिया, अथवा उसने उसी दिन से पढ़ाई बंद कर दी संगीत सीखने लगा।

काफी उम्र बीत गई। न वह धनी हो सका न विद्वान। न संगीत सीख पाया न नेता बन सका। तब उसे बड़ा दुःख हुआ एक दिन उसकी एक महात्मा से भेंट हुई। उसने अपने दुःख का कारण पूछा। महात्मा जी मुस्कुराकर बोले बेटा! दुनिया बड़ी चिकनी है, जहाँ जाओगे कोई-न-कोई आकर्षण दिखाई देगा। एक निश्चय कर लो और फिर जीते-जी उसी पर अमल करते रहो, तो तुम्हारी उन्नति अवश्य हो जायगी बार बार रुचि बदलते रहने से कोई भी उन्नति न कर पाओगे। युवक समझ गया और अपना एक उद्देश्य निश्चित कर उसी पर अभ्यास करने लगा।"

"एक जल -पूरित नदी कल -कल करती हुई आनन्द और उल्लास के साथ बही जा रही थी। उसके किनारे बड़े -बड़े सुन्दर नगर और उपनगर बसे हुए थे। इस सभी नगरों के निवासी विविध प्रकार से उसके जल का उपयोग करके अपने दैनिक जीवन को सफल बनाते रहते थे।

पर्वतों से टकराकर नदी का पानी जहाँ ऊपर से नीचे गिरता था, वहां एक विशाल विद्युत केंद्र बनाया गया था, जहाँ बिजली का उत्पादन होकर उसमें अनेक प्रकार के यांत्रिक और औद्योगिक कार्यों का संचालन किया जा रहा था।

आगे चलकर ऐसी नदी से कुछ नहरें निकाली गई थी। कही नावों से इसमें व्यापार करके अपनी जीविका चला रहे थे।

ऐसा था इस नदी का जीवन। आदि से अनंत तक अपने अंग-प्रत्यंग से औरों का भला करती हुई जब इस प्रकार वेग से समुद्राभिमुख बही चली जा रही थी, तब एक ठहरी हुई जोहड़ ने, जिसका पानी प्रवाह हीन होने के कारण दुर्गन्ध युक्त हो गया था, इस नदी से कहा -

"बहिन, बताओ अपने इस दिन-रात के बहते हुए जीवन में आखिर तुम्हें किस बात का अनुभव होता है,जो तुम निरंतर कल कल करती हुई किलोलें किया करती हो? मुझे क्यों नहीं देखती, जो एक जगह ठहरकर अपने जीवन को प्रगति और प्रवाह से दूर करके, स्थिर होकर यहाँ पड़ी पड़ी आराम के साथ अपने दिन गुजार रही हूं"।

नदी ने जोहड़ से कहा -"प्रगति और प्रवाह का पथ अपनाने से ही मेरा अभ्यंतर स्वच्छ और निर्मल बना हुआ है और इसलिए मेरी हर बूंद का सदुपयोग किया जाता है प्रगति और प्रवाह हीन होने के कारण ही तुम गंदगी का आगार बनी हुई हो। और औरों के उपयोग में न आने वाले तुम्हारे जीवन का इस दुनिया में अधिक अस्तित्व नहीं है। "


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