एक दिन एक साहूकार को शक हुआ, उसके खजाने में कहीं खोटे सिक्के तो नहीं आ गए। यह जांचने के लिए उसने सब सिक्के इकट्ठे किये और उनकी पड़ताल शुरू की।
अच्छे सिक्के तिजोरी में और खराब सिक्के एक तरफ पटके जाने लगे, तो खोटे सिक्के घबराये। उन्होंने परस्पर विचार किया- " भाई अब तो अपने बुरे दिन आ गए, यह साहूकार अवश्य हम लोगों को छाँट-बीनकर तुड़वा डालेगा,कोई युक्ति निकालनी चाहिए, जिससे इसकी नजर से बचकर तिजोरी में चलें जाएँ।"
एक खोटा सिक्का बड़ा चालक था। उसने कहा-"भाइयो, हम लोग अगर जोर से चमकने लगें, तो यह साहूकार पहचान नहीं पायेगा और अपना कम बन जायेगा।"
बात सबको पसंद आयी। सब खोटे सिक्के दिखावटी चमकने लगे और सेठ की तिजोरी में पहुंचने लगे। खोटे सिक्के को अपनी चालाकी पर बहुत अभिमान हुआ।
गिनते-गिनते एक सिक्का नीचे ज़मीन पर गिर पड़ा। नीचे पत्थर पड़ा हुआ था। सिक्का उसी से टकराया। साहूकार चौंका- हैं यह क्या,चमक तो अच्छी है मगर आवाज़ कैसी थोथी है। उसे शंका हो गयी। दुबारा उसने फिर से सब सिक्के निकले और पटक-पटकर उनकी जांच सुरू की। फिर क्या था असली सिक्के एक तरफ, नकली सिक्के एक तरफ।
खोटों की यह दुर्दशा देखकर एक नन्हा-सा असली सिक्का हंसा और बोला- मेरे प्यारे खोटे सिक्को! दिखावट और बनावट थोड़े समय चल सकती है, खोटी अंततः इसी तरह प्रकट हो जाती है। कोई मनुष्य अपनी कमजोरी नहीं छिपा सकता।