VigyapanSuchana

June 1999

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पूज्यवर ने अपने सभी मानसपुत्रों, अनुयायियों के लिए मार्गदर्शन एवं विरासत में जो कुछ लिखा है- वह अलभ्य ज्ञानामृत ( पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वाङ्मय सत्तर खंडों में ) अपने घर में स्थापित करना ही चाहिए। यदि आपको भगवान ने सम्पन्नता दी है, तो ज्ञानदान कर पुण्य अर्जित करें। विशिष्ट अवसरों एवं पूर्वजों की स्मृति में पूज्यवर का वाङ्मय विद्यालयों, पुस्तकालयों में स्थापित कराएं। आपका यह ज्ञानदान आने वाली पीढ़ियों तक को सन्मार्ग पर चलाएगा, जो भी इसे पढ़ेगा धन्य होगा।

३७- तीर्थसेवन : क्यों और कैसे?

भारतवर्ष में अनेक छोटे-बड़े तीर्थ है। धर्म की दृष्टि से तीर्थ सदैव महत्वपूर्ण रहे है। ये तीर्थ प्रायः प्रसिद्ध नदियों के तट पर स्थित हैं। ये तीर्थ किस कारण से लाभप्रद है, जानने के लिए पढ़िए-

तीर्थ क्या थे? क्या बन गये? क्या बनने चाहिए?

अध्यात्म चेतना का ध्रुव केंद्र- देवात्मा हिमालय।

अन्तरंग को बदलने वाले गुरुकुल-आरण्यक।

प्राचीन तीर्थपरंपरा का अभिनव निर्धारण-गायत्रीतीर्थ।

नवसृजन के शक्ति-संस्थान-गायत्री शक्तिपीठ।

तीर्थयात्रा कैसे करें? तीर्थसेवन से आत्मपरिष्कार।

तीर्थप्रक्रिया का पुनर्जीवन- पदयात्राएं, प्रचारयात्राएँ।

तीर्थयात्रा-धर्मपरंपरा का पुनर्जीवन।

मंदिर जागरण के केंद्र बने।

३८-प्रज्ञोपनिषद

भारतवर्ष में वेद-पुराणों का बहुत सम्मान है। इन ग्रंथों के साथ उपनिषद् ग्रंथों का भी बहुत महत्त्व माना गया है। इन उपनिषदों में सारभूत धर्मतत्वों का समावेश किया गया है। इन उपनिषदों के अनुरूप ही एक नया उपनिषद् रचा गया है- प्रज्ञा उपनिषद्। इस उपनिषद् के पठनीय विषय है-

लोककल्याण जिज्ञासा, संयमशीलता, कर्तव्यपरायणता।

उदार भक्ति-भावना, सत्साहस, युगान्तरीय चेतना।

देवमानव, समीक्षा, धर्म विवेचन, अनुशासन-अनुबंध।

परिवार-व्यवस्था, नारी-महात्म्य, शिशुनिर्माण।

वृद्धजन महात्म्य, सुसंस्कारिता संवर्द्धन, विश्वपरिवार।

देव-संस्कृति, वर्णाश्रम धर्म, संस्कार-पर्व।

मरणोत्तर जीवन-आस्थासंकट, प्रज्ञावतार।

कर्मव्यवस्था, आत्म-परिष्कार, लोक-साधना।

व्यवहारिक तपोयोग, आत्मबोध, धर्मधारणा।

३९- निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र

हमारे आहार-विहार और रहन-सहन से हमारे निरोग जीवन का परिचय प्राप्त किया जा सकता है। हम अपनी संतुलित और संयमित जीवनचर्या पर निरोग बन सकते हैं। इसकी जानकारी हेतु पढ़ें-

स्वस्थ रहने के मूलभूत सिद्धांत। क्या खाएँ? कैसे खाएँ?

अक्षुण्ण स्वास्थ्यप्राप्ति का शाश्वत राजमार्ग।

शाकाहारी व्यंजन-तन, मन, स्वस्थ रखें।

भोजन करते समय ध्यान देने योग्य बातें।

खाद्यान्न संकट और उसका हल।

मांसाहार अनुचित है, तम्बाकू भयानक दुर्व्यसन।

परिधान सभ्यता और संस्कृति के अनुरूप हो।

४०-चिकित्सा-उपचार के विविध आयाम

बिना प्राकृतिक जीवन अपनाये और अपनी मनः स्थिति को ठीक रखें स्वास्थ्य-रक्षा संभव नहीं है। किस विधि से मनुष्य स्वस्थ रह सकता है, इसके लिए हम पढ़ें-

आसनों द्वारा कायचिकित्सा, प्राणचिकित्सा विज्ञान।

प्राणायाम से आधि-व्याधि निवारण।

सोऽहं साधना, शिथिलीकरण, योगनिद्रा।

सूर्य चिकित्सा विज्ञान, सरल चिकित्सा विज्ञान।

पुरुषों के तथा स्त्रियों के रोगों की चिकित्सा।

चूर्ण, वती, गुग्गुल, आसव, अरिष्ट, विष चिकित्सा।

घरेलू चिकित्सा, नेत्ररोगों की प्राकृतिक चिकित्सा।

ज्योतिवर्धक, आयुर्वेदिक नुस्खे, और सुरमे।

बल रोगों की चिकित्सा, सौंदर्य बढ़ाने के उपाय।

परिचर्चा एवं उसके मूलभूत तत्व।

फर्स्ट एड, अभिमंत्रित औषधियां।


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