आप ही सविता! दिवाकर भास्कर, दिनमान है। आप से जड़ और चेतन सभी कुछ क्रियमाण है॥1॥
रोशनी का आपने वरदान सबको दे दिया और तम के शिकंजे से, मुक्त जग भर को किया॥
आप ही तप तेज ऊर्जा शक्तियों के केन्द्र है। आप ही पर्जन्य वर्षक आप ही देवेन्द्र हैं॥
स्रोत है संवेदना के, प्रखरता के प्राण है। आप से जड़ और चेतन सभी कुछ क्रियमाण है॥2॥
आप है सर्जक नियामक प्रकृति के हर काण्ड के। नियंत्रक ऋतु चक्र, ग्रह नक्षत्र के ब्रह्माण्ड के॥
गुरुत्वाकर्षण विकर्षण संतुलन है आप से। भाव संवेदन जगत में स्फुरण है आप से॥
साधकों को आपसे मिलते अमित अनुदान है। आप से जड़ और चेतन सभी कुछ क्रियमाण है॥॥3॥॥
आपसे सूरज अनेकों पा रहे है रोशनी। चाँद शीतल-सौम्य हो छिटका रहे है चाँदनी॥
ज्ञान प्रकाश सुलभ सभी को कर दिया है आपने। मुक्ति का अज्ञान तम से वर दिया आपने॥
आप ही अज्ञान तम में भटकनों के त्राण है। आपसे जड़ और चेतन सभी कुछ क्रियमाण है॥4॥
विश्व भर करता नमन, अब दिव्य सविता देव को। ज्ञान के विज्ञान के आधार सविता देव को॥
फिर तिमिर की तेवरे बदली हुई लगती प्रभो। रूप बहुविधि धार कर छल छन्द से ठगती प्रभो॥
कर रहे सविता-उपासक आपका ही ध्यान हैं। आप से जड़ और चेतन सभी कुछ क्रियमाण है॥5॥
प्रभो! सविता साधकों को तेज अपना दीजिए। साधकों को आप अपना प्रखर प्रतिनिधि कीजिये॥
दे सकें तुमको चुनौती मुक्त जग को कर सके। आपको आलोक से संसार भर को भर सकें॥
रश्मि शर संधानकर्ता! आप के हम बाण है। आपसे जड़ और चेतन, सभी कुछ क्रियमाण है॥6॥