महामहिमामयी माता

March 1995

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वृहर्द्धभ पुराण, पूर्व खण्ड अध्याय-2 में परम गुणमय मातृ स्तोत्र का वर्णन है जिसमें माता भगवती के नामों का उल्लेख करते हुए कहा गया है-

माता धरित्री जननी दयाद्रहृदया शिवा-

अर्थात् माता, धरित्री, जननी, दयार्द्र, हृदय शिवा त्रिभुवन श्रेष्ठ देवी निर्दोष सर्वदुःखहा, परम आराधनीय, दया शांति क्षमा, धृति, स्वाहा, स्वधा, गौरी, पद्म विजया, जया तथा दुःख हन्त्री ये माता के ही इक्कीस नाम हैं। जो मनुष्य इन नामों को सुनता और सुनाता है, वह सब दुखों से मुक्त हो जाता है। बड़े से बड़े दुखों से पीड़ित होने पर भी भगवती माता का दर्शन करके मनुष्य को जो आनंद मिलता है उसे वाणी द्वारा व्यक्त नहीं किया जा सकता है।

इस संदर्भ में महर्षि अरविंद का कहना है कि यद्यपि माता एक ही है पर वह हमारे सामने विविध रूपों में आती है उनकी अनेक स्फुल्लिंग और अनेक विभूतियाँ है जो इस विश्व में उनका कर्म करती है। जिनको हम पूजते है वह एक ही है और यही भगवान् की वह दिव्य चैतन्यमयी शक्ति है जो सर्वमिंद के ऊपर खड़ी है है एक पर इतनी अनेक रूप है कि उन की गति को देखना या समझाना तेज से तेज गति वाले मन और मुक्त से मुक्त तथा व्यापक से व्यापक बुद्धि के लिए भी असम्भव है मात्र पुरुषोत्तम का चैतन्य है, पुरुषोत्तम का चैतन्य है पुरुषोत्तम की शक्ति की शक्ति है।

वही सारी सृष्टि करने वाली आदि शक्ति है और अपनी इस सारी सृष्टि से बहुत ऊँचे पर रहती है। पर उनकी यह विविध विलक्षण झाँकी देखी जा सकती है, समझी जा सकती हैं। उन्हीं की प्रतिमाओं उन्हीं के ऐसे रूपों को देखकर जो अपने स्वभाव ओर कर्म में मूल रूप से अधिक व्यक्त और मर्यादित होने के कारण अधिक हृदयंगम करने योग्य है और जिनके द्वारा माता अपनी संतानों के सामने प्रकट होने में अनुमत होती है।

माता की सत्ता के तीन रूप है जो तुम जान सकते हो जब तुम हम को और इस विश्व को धारण करने वाली विन्मयी शक्ति के साथ अपनी एकता (अभिन्नता) का अनुभव करने लगोगे। लोकातीत परा आद्य शक्ति के रूप में वह अनंत कोटि ब्रह्मांडों के ऊपर खड़ी है और पुरुषोत्तम के नित्य अव्यक्त रहस्य तथा उनके इस विश्व ब्रह्माण्ड के बीच की लड़ी है। फिर है विश्व शक्ति विश्वव्यापी महाशक्ति कोटि शक्तियों को धारण करती है इसके बाद है व्यक्ति शक्ति जो माता के वे दो विराट् स्वरूप हमारे लिये ज्वलंत और निकटतर हो जाते है और जो मनुष्य तथा दिव्य प्रकृति के बीच में मध्यवर्ती शक्ति के तौर पर है।

महाशक्ति जगत् की जगन्माता वहीं सृजन करती है जिसका संकल्प परमेश्वर से उन्हीं के परम चैतन्य के द्वारा प्रेरित किया जाता है। महाशक्ति इस प्रकार सृष्टियों को रचकर उनके अंदर प्रवेश करती है। इनकी सत्ता ही इन लोकों को भागवत् शक्ति और आनंद से भर देती है जिनके होने से ही ये लोक ठहरे हुए है जिसे होने से ही ये लोक ठहरे हुए हैं। जिसे हम प्रकृति कहते हैं वह इस महाशक्ति का केवल अत्यंत बाह्य सर्ग (कर्म) रूप है। महाशक्ति ही अपनी शक्तियों और गतियों का संचालन और व्यवस्थापन करती है, वही प्रकृति से कर्म कराती है और उन सब कर्मों के अंदर गुप्त अथवा प्रकट रूप से रहती है। जो कुछ हम देख सकते या अनुभव कर सकते या जिसे जीवन गति दे सकते है उन सबमें महाशक्ति की ही सत्ता है। प्रत्येक लोक और कुछ नहीं एक विशेष लोक समूह या जगत की महाशक्ति का एक विशेष खेल है और इन सब लोकों में वह महाशक्ति भगवती माता की विश्वव्यापी चित्शक्ति और विश्वव्यापी व्यक्ति है। प्रत्येक लोक का उन्हीं के सौंदर्य और शक्तिमयी हृदय में एकत्र घनीभूत होकर वह उनकी आनंद स्फुरण से सृष्ट होता है।

माता ऊपर से सब का शासन करती है यह नहीं, बल्कि इस छोटे से त्रिविध संसार में वह उतर आती है। केवल दिव्य अक्षर रूप की ओर दृष्टि निबद्ध करने से मालूम होगा कि यहाँ की सारी गतियाँ भी अपनी शक्ति को प्रच्छन्न करती हुई स्वयं माता ही है। अपने सारतत्त्व में अल्पीकृत (घटी हुई) उन्हीं की सृष्टियाँ है, उन्हीं की प्रकृति शरीर और प्रकृति शक्ति है। और ये सब है इसी कारण से कि अनन्त की प्रभाव सम्भावनाओं में कुछ ऐसा था जिसे चुन कर प्रकृत रूप प्रदान करने का रहस्यमय आदेश परमेश्वर से पाकर वह इस महान् आत्मबलि के लिए समस्त हुई और उन्होंने छद्मवेशी की तरह अज्ञान की आत्मा और रूपों को धारण कर लिया। पर व्यक्ति रूप में भी उन्होंने अपने के यहाँ तक नीचा कर दिया कि वह इस अंधकार में उतर आयी इसलिये कि इसे ज्योति की ओर ले जाऊँ झूठ में और भ्रम में आ गयी इसलिये कि इसे क्लेश में इस हठी शोक और दुःख में पहुँच गयी इसलिये कि इसके इस रूप का अंत करके अपने महत् अत्युच्च आनंद की दिव्य रूप प्रदान करने वाली प्रगाढ़ता में इसे परिणत कर दूँ।

अपनी संतानों के प्रति उनका मातृ प्रेम प्रगाढ़ और महान् है। इसी से उन्होंने अंधकार का यह आवरण ओढ़ना स्वीकार कर लिया है। तमस् और मिथ्या की शक्यों के दारुण दुर्भाव और दुराग्रह सह लेना मंजूर कर लिया है जो जन्म मृत्यु ही है उसके तोरण द्वार के पार होने की वेदना को धार लिया है। सृष्टि को सारी व्यथा, सारा शोक और सारा कष्ट उठा लिया है क्योंकि ऐसा मालूम हुआ कि यही एक उपाय है जिससे यह सृष्टि उठ कर आलोक आनंद सत्य और सनातन जीवन की प्राप्त हो सकती है यह महायज्ञ है जिसे कभी कभी पुरुष का यज्ञ कहते हैं पर जो इससे अधिक गंभीर अर्थ में प्रकृति की ही पूर्ण आत्मबलि है, भगवती माता का ही महायज्ञ है।

जो ज्ञानी है उन्हें वह अधिकाधिक एवं और भी विशद ज्ञान देती है। जिनमें दर्शन शक्ति है उन्हें अपनी कल्पना और अभिप्राय में शरीक होने का अधिकार देती है। जो विरोधी है उन पर उस विरोध का परिणाम लादती है। जो अनजान और मूर्ख है उन्हें की अंधता के अनुसार रास्ता दिखाती है। प्रत्येक मनुष्य के स्वभाव के भिन्न-भिन्न अंशों की आवश्यकता और प्रेरणा के अनुसार और जिस प्रतिदान के लिए वे आहुति देते है उसके अनुसार माता (माहेश्वरी) प्रत्युत्तर देवी है और उनका प्रयोग करती है उन पर आवश्यक प्रभाव डालती है या उन्हें अपनी प्रीत स्वाधीनता के भरोसे छोड़ देती है जिसमें या तो अविद्या के पथ पर समृद्धि लाभ करे या ध्वंस को प्राप्त हों। कारण वह सब के ऊपर हैं जगत् में किसी से बँधी नहीं किसी में आसक्त नहीं। तथापि उनका जो हृदय है वह विश्व जननी का हृदय है ऐसा मातृ स्नेह इतना और किसी में नहीं है।

कारण इनकी दया अनंत और अक्षय है। उनकी दृष्टि में सभी उनकी संतान है उसी एक के अनेक अंश है असुर राक्षस पिशाच और जो उन से विद्रोह करते या शत्रुता करते है वे विद्रोही और शत्रु भी उनकी दृष्टि में अपनी संतान नहीं है उनका प्रत्याख्यान केवल विलम्बन मात्र है, और उनका दंड विधान तो करुणा ही है।

ज्ञान और शक्ति केवल ये ही दो रूप परमा परमेश्वरी माता के नहीं है उनकी प्रकृति में और भी सूक्ष्मतम एक रहस्य है और वह एक ऐसी चीज है कि जिसके बिना ज्ञान और शक्ति अपूर्ण ही रह जाएँगे और पुर्णत्व भी पूर्ण न होगी इन ज्ञान और शक्ति के ऊपर सनातन सौंदर्य की अलौकिक चमत्कृति है दैवी समन्वय का अगम्य रहस्य है अप्रतिहत जगद्व्यापिनी मनोहरता और आकर्षण का ऐसा वशीकरण है कि वह अपनी ओर उन्हें एक दूसरे के साथ मिलने और एक होने को विवश करता है जिनमें वह आनंद जो परदे के अंदर छिपा हुआ है वहाँ से अपना खेल खेल और उन्हें अपने स्वर और रूप बनाये यह शक्ति है महालक्ष्मी की और कोई रूप इससे अधिक मोहक या आकर्षक नहीं हैं। माहेश्वरी इस पार्थिव-प्रकृति की क्षुद्रता के लिये इतनी अविचल और महान् और दूर मालूम हो सकती है कि यह वहाँ तक पहुँच न सके या उनका भाव धारण भी न कर सके। महाकाली भी इतनी द्रुतगति और प्रचंड है कि इस पार्थिव प्रकृति की दुर्बलता उनका भाव वहन न कर सके पर महालक्ष्मी की ओर सभी बड़े आनंद और लालसा के साथ दौड़ पड़ते है कारण वह भगवान के उन्मादक माधुर्य का मोहनास्त्र फेंकती है। उनके समीप रहने में अगाध सुख होता है और अपने हृदय के अंदर उन्हें मालूम करना जीवन को आनंदोन्माद ओर कौतुकमय बना देना हैं। शोभा और मोहकता और मृदुता उनसे वैसे ही प्रवाहमान होती है जैसे सूर्य से ज्योति। जहाँ कहीं वह अपनी आश्चर्यमयी दृष्टि डालती है या अपनी स्मित काँति बरसाती है वहाँ आत्मा अभिभूत हो जाता है और अथाह आनंद की गंभीरता में निमग्न हो जाता है उन के हाथों का स्पर्श चुम्बक के समान है और उनका रहस्यमय मृदु प्रभाव मन, प्राण और शरीर में लालित्य मय सूक्ष्मता ले आता है और जहाँ उनके चरण अवस्थित होते है वहाँ उन्मत्त कर देने वाले आनंद के अपूर्ण स्रोत बहने लगते हैं।

राम कृष्ण परमहंस ने मातृशक्ति को सर्वोपरि माना हैं उनके अनुसार माँ तो सब कुछ है वह त्रिगुणमयी और साथ ही साथ शुद्ध सत्वगुणमयी भी है। वे उस महाशक्ति को चिन्मय ब्रह्मशक्ति कहते हैं जिसने अपनी इच्छा से इस संसार का सृजन किया हैं। बंगला भाषा में एक गीत है।

माँ त्वं हि तारा। तुमि त्रिगुणधरा परात्परा..... जिसे वे प्रायः नरेन्द्र (स्वामी विवेकानंद) से सुना करते और समाधिस्थ हो जाया करते थे।

स्वामी रामतीर्थ ने अपनी स्वानुभूति प्रकट करते हुए कहा है कि ईश्वर की उपासना मातृशक्ति के रूपों में नहीं। बच्चे के लिए ममतामयी माता से बढ़कर भला इस संसार में दूसरा और कौन हो सकता है? वे सच्चे भक्त की तुलना उस नन्हे शिशु से करते है जो अपने को माता की गोदी में समर्पित कर निर्द्वन्द्व निश्चिन्त हो जाता है और तब उसके लिए सारे संसार का ऐसा कौन-सा सुख और आराम है जो शेष रह जाता हो? आँधी हो वर्षा हो या तूफान भूकंप हो उसका बाल बाँका नहीं होता कारण सारे झंझावातों को माता स्वयं झेल जाती है। हमारा इष्ट अनंत ज्ञान, अनंत शक्ति एवं अनंत शांति का अक्षय भंडार है। निश्चल मन से शिशुवत् अपना नन्हा-सा तन और भोला भाला मन आद्यशक्ति माँ भगवती की गोदी में समर्पित कर हम भी निश्चिन्त हो सकते है और वह सब निश्चिंत हो सकते है जो एक सच्चे साधक को उपलब्ध होता है।


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