मन में गुँजाइश (Kahani)

March 1995

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एक साधु ने छोटी झोंपड़ी बना रखी थी। उसी में गुजारा करता। जगह इतनी भर थी कि वह अकेला पैर पसार कर सो सके और करवट बदलता रह सके।

एक दिन जोर की वर्षा हुई। एक भीगता हुआ साधु रात के समय उस झोपड़ी पर आ पहुँचा दरवाजा खटखटा कर बोला उसे भी उस झोपड़ी में भीगने से बचने और रात बिताने के लिए जगह मिले।

भीतर वाले साधु ने दरवाजा खोला और अतिथि को भीतर ले लिया झोपड़ी में एक के सोने की जगह थी पर बैठ कर तो दो भी समय काट सकते थे सो बैठ कर समय बिताने लगे।

इतने में एक और व्यक्ति भीगता हुआ आ पहुँचा। दरवाजा खुला था उसने कहा मुझे भी जगह मिल जाय तो भीगने से बचाव हो सके।

साधु ने तीसरे को भी भीतर ले लिया। कहा इसमें एक के सोने की जगह थी। बैठ कर हम दो भी समय बिता लेंगे तुम्हें आना हो तो खुशी से आओ। खड़े होकर हम तीनों भी रात काट लेंगे

तीनों ने खड़े-खड़े उस छोटी झोपड़ी में रात बिताई। इसे कहते है मन में गुँजाइश होना।


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