सन् 1936 की बात है गाँधीजी वर्धा में सेवाग्राम चले गये वहाँ रहकर उन्होंने आसपास के ग्रामीण लोगों से संपर्क से साधना शुरू किया। व नियमित रूप से निकटवर्ती गाँवों में जाते रहते लोगों को स्वच्छता का महत्त्व समझाते स्वयं झाडू लेकर गली कूचों की सफाई करते तथा गरीब गंदे बच्चों को स्नान कराते। ग्रामीणों को स्वच्छता का पाठ पढ़ाने का यह क्रम महीनों तक नियमित रूप से चलता रहा। बापू के इस प्रयास का कोई विशेष परिणाम निकलता न देखकर एक कार्य कर्ता ने कहा बापू! इन पिछले लोगों को समझाने एवं आप के स्वयं सफाई करने से भी इन पर कोई प्रभाव तो पड़ता नहीं फिर भी आप क्यों तन्मय होकर इस कार्य में लगे रहते हैं?
गाँधी जी ने कहा-बस इतने में ही धैर्य खो दिया। सदियों के संस्कार इतनी जल्दी थोड़े ही दूर हो जायेंगे। लंबे काल तक इनके मध्य रहकर इनमें शिक्षा स्वास्थ्य सफाई के प्रति अभिरुचि एवं जागरूकता पैदा करनी होगी।