रामनाम (Kahani)

March 1995

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एक शिष्य किसी संत पुरुष की सेवा में निरत था और ऐसा मंत्र चाहता था। जिसके सहारे वह ऋद्धि सिद्धियाँ दिखा सके। पर संत थे जो सबको रामनाम ही बताते थे शिष्य को चमत्कारी मंत्र चाहिए था। रामनाम तो मामूली बात है से निराशा होने लगी। गुरु ने मनः स्थिति को ताड़ लिया।

एक दिन गुरु ने उस शिष्य को एक चिकना पत्थर दिया ओर कहा इसे सब्जी वालों से पूछकर आओ कितने में खरीदेंगे। शिष्य दिन भर घूमा। बटखरे के काम में आ सकता है यह सोचकर उनने दो चार पैसे भर की कीमत लगाई।

दूसरे दिन वही पत्थर लेकर सुनारों के मुहल्ले में भेजा वहाँ उसका दाम एक हजार तक लगाया गया तीसरे दिन उसे जौहरी बाज़ार में उसकी कीमत मालूम करने को कहा गया। कइयों को दिखाने पर उसकी कीमत बढ़ते बढ़ते एक लाख तक पहुँच गई।

गुरु ने शिष्य को समझाया पत्थर तो वही था, पर पारखियों ने अपनी अपनी जानकारी के आधार पर उसका मोल बताया रामनाम है तो एक ही पर पात्रता के अनुरूप उसका मोल और महत्त्व घटता बढ़ता रहता। है।


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