अपने पराये का भेद (Kahani)

March 1995

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

यमराज की पत्नी का स्वर्गवास हो गया वह इस असामयिक निधन पर शोकाकुल होकर लगातार रोता रहा। पुरोहित उसे सान्त्वना देने गये। ब्रह्म ज्ञान सुनाते रहे और उसके शोक को मूर्खता बताते रहे।

कुछ दिन बाद पुरोहित की लँगड़ी गाय मर गई। बच्चों के उसी के दूध का सहारा था। इस क्षति से पंडित जी को भारी चोट लगी। आँखों से आँसू बहने लगे और हिचकी बँध गई।

जिनने पुरोहित को यजमान से ब्रह्मज्ञान बघारते सुना था। उनमें से कुछ पड़ोसी गाय के निधन पर किये जा रहे विलाप को भी सुनने आ पहुँचे। उनमें से कई ने कहा देखा, अपने पराये का भेद।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles