अप्रतिम है विचारों की सामर्थ्य

March 1995

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मनुष्य के उत्थान-पतन सफलताओं असफलताओं में विचारों का बड़ा महत्त्व है। आदिकाल से ही इस तथ्य पर विचार किया जाता रहा है। गीता एवं ऋग्वेद की ऋचा से भी स्पष्ट होता है कि इस संबंध में ऋषि मनीषियों का बहुत पहले ध्यान चला, गया था। तभी उन्होंने लिखा है ”वैज्ञानिक भी इस तथ्य की पुष्टि करते है कि मनः स्थिति से ही परिस्थितियाँ निर्मित होती है। राबर्टथियों बाल्डी जैसे विचारकों का भी कहना है कि सृजनात्मक विचार धाराओं द्वारा जीवन को परिवर्तित परिवर्धित किया जा सकता है, पर कम ही व्यक्ति हैं, जो इस तथ्य को समझते और लाभ उठा पाते है।

प्राण शक्ति की मात्रा के अनुरूप ही विचारों में शक्ति होती है। इसी मात्रा के आधार पर उसे मंद मध्यम, और प्रचंड तीन वर्गों में विभाजित किया गया है। अनियमित अस्त व्यस्त टूटे फूटे विचारों की शक्ति क्षीण और वेग भी मंद होता है। उनकी संप्रेषण गति धीमी और प्रभाव क्षेत्र सीमित होता है। अविकसित व्यक्तियों की विचार शक्तियों की विचार शक्ति के लोगों में जीवन की सतही जानकारी होती है। वे उसी के सहारे अपना ढर्रा घुमाते है। अतः इनकी विचार शक्ति भी उतनी विकसित और शक्तिशाली नहीं होती, जितनी संयमी और सदाचारी की। गंभीर और विचारशील विवेक संपन्न व्यक्तियों में प्राण शक्ति का अंश अधिक होता है। उनके विचारों की शक्ति भी बढ़ी-चढ़ी और उत्कृष्ट होती है।

विश्व विख्यात जीवन-कला विशेषज्ञ डेल−कार्नेगी से जब पूछा गया कि अब तक की जानकारी के श्रेष्ठ अंश पर कृपया प्रकाश डालें, तो उन्होंने नपे-तुले शब्दों में छोटी-सा सारगर्भित उत्तर दिया-मैंने सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह देखी कि विचारों की शक्ति से बढ़कर इस संसार में कोई शक्ति नहीं है इसी के सहारे मनुष्य जो बनना चाहता है, बन सकता है।” आगे वे कहते है कि “यदि सोचने का सही तरीका जान लिया जाय, तो समझता चाहिए कि संतोष, सहयोग और सफलता प्राप्त करने की कुँजी हाथ लग गई।” शेक्सपियर के विचार भी इससे मिलते जुलते है। वे लिखते है कि हमारे विचार ही प्रतिकूलता अनुकूलता गढ़ते है, वे ही है जो उदासी या प्रसन्नता देते है सहयोग या असहयोग सम्मान या तिरस्कार पाने में दूसरों का उतना दोष नहीं होता, जितना अपने स्वभाव, एवं विचारों का होता है।

कितने ही व्यक्ति विकलांगता को अभिशाप और दैवी प्रकोप मानकर रोते कलपते भाग्य और विधाता पर दोषारोपण करते रहते हैं एवं अकर्मण्यों की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते है किंतु अंधे कवि मिल्टन के विचार ऐसे लोगों से भिन्न थे। वे कहते-65 इंच लंबे चौड़े शरीर में आँखों की 2 इंच लंबे चौड़े शरीर में अनुपयोगी ठहराना कहाँ की बुद्धिमानी है। वे पूरे जीवन ज्ञान-साधना में लगे रहे। ऐसे परिपक्व विचारों के कारण ही विश्व विख्यात कवियों की श्रेणी में उनका नाम आज भी बड़े गौरव और आदर से लिया जाता है।

विद्वान् मोन्टेन के अनुसार मनुष्य की परिस्थिति में ईश्वर का क्रम, स्वयं की बुद्धि और विचारों का हस्तक्षेप अधिक रहता है स्वयं की मनः स्थिति ही परिस्थितियों के निर्माण में उत्तरदायी है। रोम के दार्शनिक मार्क आण्डेलियस के अनुसार हर मनुष्य की दुनिया अलग है जो उसके विचारों द्वारा गढ़ी गई है। सुख-दुःख कष्ट अभाव, समृद्धि उसके स्वयं के विचारों पर निर्भर करते है।

व्यक्ति अजस्र शक्तियों का भाण्डागार है। उसमें प्रचुर सामर्थ्य है। भाण्डागार है। उसमें प्रचुर सामर्थ्य है। यदि वह अपनी विचारणाओं मान्यताओं में दूरदर्शी विवेकशीलता का समावेश कर ले तो दुर्बल और दुर्भाग्यग्रस्त रहने वाला व्यक्ति भी अपने जीवन में सौभाग्य की स्थिति का आनंद उठा सकने में समर्थ हो सकता है। उसे केवल चिंतन के प्रवाह को उलट कर सीधा करना है, मन बिखराव को रोकना है और एकाग्रता में नियोजित करना है। इसके लिए चिंतन,मनन, स्वाध्याय, संयम, सेवा जैसी सुगम विधियाँ भी बताई गई है और मनोनिग्रह, ध्यान, धारणा, त्राटक प्राणायाम जैसी यौगिक क्रियाएँ भी। मनःस्थिति और परिस्थितियों के अनुरूप किसी का भी चयन किया जा सकता है। लक्ष्य मात्र एक ही होना चाहिए विचारों की शुचिता। यदि विचार सही व विधेयात्मक हुए तो व्यक्ति का निर्माण सही होता चला जाएगा।


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