रोम की एक अदालत में एक कवि पर मुकदमा चल रहा था। कवि ने जज से प्रार्थना की-”आप किसी तरह इतनी कृपा नहीं कर सकते कि मामले को थोड़ा-सा घुमा-फिराकर मेरे पक्ष में निर्णय कर दें। मुझ पर बड़ा उपकार होगा।” न्यायाधीश ने उत्तर दिया-”कविवर! मामले को घुमा-फिराकर आपके पक्ष में निर्णय कर देना बहुत कठिन काम नहीं है, परंतु जिस प्रकार छंद में एक मात्रा के अंतर से कविता दूषित हो जाती है उसी प्रकार न्याय मार्ग में जरा भी विचलित होने से मेरी न्यायप्रियता कलुषित हो जायेगी। “