आइये यंत्रों से मंत्र सिद्ध करें

January 1993

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शारीरिक-मानसिक परिष्कार करते हुए आत्मचेतना की गहराइयों में प्रवेश करना योगाभ्यास का प्रमुख लक्ष्य है। रोग-निवृत्ति एवं बाल-वर्धन के अतिरिक्त मानसिक ऊर्जा की प्रखरता तथा अन्तः में विद्यमान जीवनी-शक्ति को बढ़ाने और आत्मबल सम्पादन करने में आसन, प्राणायाम, ध्यान जैसी यौगिक प्रक्रियाओं का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। इसके अभ्यासी योगी साधक अपनी इच्छानुसार हृदयगति, रक्तचाप, श्वसन दर, रक्त अभिसरण, शरीर ताप जैसी अनैच्छिक क्रियाओं पर नियंत्रण कर दिखाते हैं। मस्तिष्कीय उपादानों का रूपांतरण-परिष्करण भी वे कर लेते हैं। मानसिक एवं मनोकायिक रोगों से इससे सहज छुटकारा मिल जाता है। परंतु यह एक समय साध्य प्रक्रिया है जिसमें संयम, साधना के अतिरिक्त श्रम, मनोयोग, नियमितता एवं अविचल धैर्य आदि की आवश्यकता पड़ती है। साथ ही अनुभवी मार्गदर्शक के बिना भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ती।

आज की व्यस्तता-युक्त अंधी दौड़ के युग में लोगों के पास इतना समय भी नहीं होता जो योग जैसे महत्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान दें, उसे जीवन का अनिवार्य अंग बनायें और जीवन लक्ष्य तक पहुँचें। वैज्ञानिक आविष्कारों ने इस कमी को बहुत कुछ पूरा करने का प्रयास किया है। बायोफीड बैंक इस श्रृंखला में एक नवीनतम प्रयोग है जो मनुष्य को तनाव मिटाकर आत्मोन्नति के पथ पर अग्रसर होने के लिए प्रेरित-प्रोत्साहित करता है। अंतर केवल इतना ही है कि इसके द्वारा समाधि स्तर तक नहीं पहुँचा जा सकता जैसा कि योगाभ्यास की चरम परिणित में होता है। इसके द्वारा आँतरिक क्रियाओं का नियंत्रण नियमन जरूर हो सकता है। तनाव दूर कर शिथिलीकरण की स्थिति में विचार शून्यता की अवस्था भी प्राप्त की जा सकती है, जो कि योगाभ्यास की प्रमुख देन है। आत्मोत्कर्ष का भी श्री गणेश भी तो यही से होता है।

ब्रिटिश मनोविज्ञानी हेविट जेम्स ने अपनी प्रसिद्ध कृति “द कम्पलीट योगा बुक” में कहा है कि “बायोफीड बैंक” यौगिक अभ्यास का ही एक परिवर्तित रूप है जिसके प्रयोग से साधक का मनोबल बढ़ता है साथ ही वह ध्यान की गहराइयों में जाने का प्रयास करता है जिसे समस्त सफलताओं का मूलाधार माना जाता है। उन्होंने इसे “पुश बटन योगा” नाम से सम्बोधित किया है और कहा है कि बायोफीड बैंक एक प्रकार का “बॉडी-माइन्ड कन्ट्रोल” है, जिसे साधक योगाभ्यास द्वारा सम्पन्न करता है। इसके द्वारा व्यक्ति बहिर्मुखी चिंतन से विरत होकर अचेतन मन की गहराइयों में प्रवेश करने का प्रयत्न करता है जिसके द्वारा शरीर के अनैच्छिक तंत्र संचालित होते है। आँख और कान जैसी इन्द्रियाँ जो अभी तक बहिर्मुखी गतिविधियों का संचालन करने में व्यस्त थीं, इस प्रक्रिया द्वारा अंदर की ओर अभिमुख हो उठती हैं। इसके माध्यम से हम अपने रक्त प्रवाह की ध्वनि, माँसपेशियों का कोलाहल, स्नायु मण्डल की लय एवं अन्याय आँतरिक कायकीय प्रक्रियाओं को सूक्ष्म जगत में देख और सुन करते हैं और इच्छानुसार उन पर नियंत्रण साध सकते हैं जो अभी तक चेतन मन की पकड़ से बाहर थे।

बायोफीडबैक एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से की जाने वाली प्रक्रिया है इसमें सेर्न्सस लगे होते हैं, जिनका सम्बंध शरीर से कर दिया जाता है। वे प्रकाश ज्योति श्रवण योग्य ध्वनि को ग्रहण करके शारीरिक हलचलों को डिजिट्स के रूप में या गति करती हुई सुई आदि के रूप में रिकार्ड करते हैं। इन हलचलों का सम्बंध जीवन की विभिन्न प्रक्रियाओं जैसे -हृदय गति, रक्त प्रवाह, माँसपेशियों, की विद्युत ऊर्जा, एवं मस्तिष्कीय ऊर्जा तरंगों आदि से होता है। बायो फीडबैक प्रशिक्षण द्वारा व्यक्ति अपने आँतरिक क्रिया–कलापों को ठीक उसी तरह से नियंत्रित कर सकता है जैसे कि फीडबैक लर्निंग द्वारा विद्यालय में बालक जटिलता एवं खतरों से भरे वातावरण में अपने जीवन अस्तित्व को बनाये रखने के लिए मेनुअल कार्यों तथा अन्याय मानवी प्रवीणताओं हस्त–कौशलों को हस्तगत करता है। प्रत्येक जीवधारी इसी फीडबैक का अनुसरण करता है।

शरीर विज्ञानियों के अनुसार शरीर के अनेकों क्रिया-कलाप स्व-संचालित होते है जिन पर हमारा नियंत्रण नहीं रहता। हृदय अपनी गति से धड़कता है तो रक्त अभिसरण अपनी गति से होता है। पाचन-श्वसन का अपना स्वतंत्र विज्ञान है। यह सभी कार्य आटोनामिक नर्वस सिस्टम द्वारा संचालित होते हैं। भावनाओं से सम्बंधित हलचलों का इससे घनिष्ठ सम्बंध होता है।

योगी अपनी इच्छानुसार हृदयगति, रक्तचाप, श्वास-प्रश्वास जैसी अनैच्छिक क्रियाओं एवं भावनात्मक उतार−चढ़ावों को नियंत्रित कर सकते हैं, तनाव एवं असंतुलन-जन्य मनोकायिक बीमारियों-मनोविकारों से छुटकारा पा सकते हैं। यद्यपि योग में यंत्रों का प्रयोग नहीं होता फिर भी योगी अभ्यास द्वारा उन परिवर्तनों को अनुभव कर लेता है। बायो फीडबैक का भी यही क्रिया पद्धति है। इसमें शारीरिक परिवर्तनों को देखने के लिए यंत्रों का उपयोग किया गया है। इस प्रशिक्षण में शरीर के भीतरी अवयवों में होने वाले परिवर्तनों को शक्तिशाली एम्प्लीफायर के माध्यम से देखा जा सकता है व संदेश भेजकर घटाया-बढ़ाया जा सकता है। हृदय की धड़कन व मस्तिष्कीय तरंगों को मापा जा सकता है। इच्छाशक्ति द्वारा मनचाही दिशा में इन्हें मोड़ा और नियंत्रित किया जा सकता है अंतःस्रावी ग्रंथियों के स्राव शारीरिक तापमान, मानसिक तनाव में हेर-फेर किया जा सकना संभव है। स्मृति सुधार, मनःशक्तियों का विकास, सृजनात्मक प्रवृत्तियों का विकास बायो फीडबैक के माध्यम से सुगमतापूर्वक सम्पन्न किये जा सकते हैं।

अमेरिकी मनोविज्ञानवेत्ता डॉ. जे. बोसवासियन ने अपने अनुसंधान निष्कर्ष में बताया है कि जिन क्रियाओं को योगी अचेतन अवस्था में करता है वही क्रिया बायोफीड उपकरण के माध्यम से कोई भी सामान्य व्यक्ति कर सकता है। जब सम्बंधित व्यक्ति को इस यंत्र द्वारा उसकी अपनी आँतरिक परिस्थितियों से परिचित कराया जाता है और उसमें परिवर्तन लाने के लिए मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है तो इससे उसका मनोबल बढ़ता है। आत्मविश्वास जाग्रत हो जाने पर ऐच्छिक क्रियाओं की तरह ही अनैच्छिक क्रियाओं को अभ्यास द्वारा उतनी ही आसानी से करना लगता है। धीरे-धीरे क्रमशः अचेतन मन की परतें खुलने लगती हैं और उनमें सन्निहित क्षमताओं से वह परिचित होने लगता है। संक्षेप में इसे शरीर पर मन का नियंत्रण किया जाना भी कह सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि आटोनॉमिक स्नायुतंत्र की गड़बड़ी को मानसिक एकाग्रता या शिथिलीकरण प्रक्रिया द्वारा ठीक किया जा सकता है। यह विद्या अनैच्छिक तथा अचेतन मन द्वारा संचालित कार्य व्यवहार में हेर-फेर करने में समर्थ है। परंतु चेतन मन द्वारा सरलतापूर्वक फीडबैक न मिलने के कारण वह सफलता संदिग्ध ही बनी रहती है। अतः बायो फीडबैक का आश्रय लिया जाता है। यह वह वैज्ञानिक मार्ग है जो चेतना और मन को पदार्थ के ऊपर विस्तार पाने-नियमन करने में सहायता प्रदान करता है। इस संदर्भ में अमेरिका के दो मूर्धन्य मनोवैज्ञानिकों मार्विन कार्लिस तथा एम. एंड्रयूज लेविस ने अपनी पुस्तक “बायो फीडबैक टर्निंग आन द पावर ऑफ माइण्ड” में कहा है कि बायो फीडबैक द्वारा अभ्यास करने पर मनुष्य अपने आँतरिक क्रिया–कलापों शारीरिक मानसिक स्थिति को उसी प्रकार देख सुन सकता है जैसे टेलीविजन के पर्दों पर वह दृश्य देखता और संवाद सुनता है। वास्तव में अब यह संभव है।

ध्यान एवं शिथिलीकरण में जो प्रक्रिया अपनायी जाती है उसी का प्रयोग बायो फीडबैक में भी किया जाता है। इसके साधक अपने को प्रयोग के लिए बार-बार तैयार और आत्मनियंत्रण साधता है। इस उत्पन्न तनाव रहित स्थिति एवं सुखानुभूति को अधिक देर तक बनाये रखने के लिए इच्छा शक्ति को सुदृढ़ बनाता है। यही सुखानुभूति प्रेरक का कार्य करती है और अभ्यास का समय बढ़ता जाता है। इससे शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही स्थितियों में परिवर्तन होने लगते हैं और साधक साधना क्षेत्र में प्रगति की ओर अग्रसर होने लगता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ. जोय कामिया ने अल्फा ई.ई.जी. बायो फीडबैक पर गहन अनुसंधान किया है। इसमें साधक शारीरिक मानसिक शिथिलन एवं 8-13 चक्र प्रति सेकेंड वाली अल्फा मस्तिष्कीय तरंगों को अपने संकल्प बल के आधार पर स्वयं उत्पन्न करता है। इससे बीटा एवं थीटा तरंगों की स्थिति से परिवर्तित होकर मानसिक ऊर्जा अल्फा स्टेट में आ जाती है। उनके अनुसार यही वह स्थिति है जिसमें एक उच्चस्तरीय योग साधक विचार शून्यता की आनंददायी स्थिति में पहुँचता है। वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षणों से अब यह सिद्ध हो चुका है कि योगी की विचार शून्यता की तन्मयता की स्थिति में उसके मस्तिष्क से अल्फा तरंगें निकलती हैं। सामान्य रूप से मस्तिष्क की सक्रिय अवस्था में 14 चक्र प्रति सेकिण्ड वाली बीटा तरंगें उससे फूटती रहती हैं जबकि सोते समय थीटा तरंगों का निष्कासन होता है। अल्फा तरंगों को उत्पन्न करने की कला की जानकारी हो जाने और उसकी सुखद अनुभूति को एक बार बायो फीडबैक पर देख सुन लेने के पश्चात साधक आत्म सुझाव द्वारा बार-बार प्राप्त करने का प्रयास करता है। यौगिक प्राणायाम एवं ध्यान द्वारा यही परिणाम उपलब्ध होता है। परंतु इस स्थिति को प्राप्त करने में समय भी अधिक लगता है और जोखिम भी रहती है। बायो फीडबैक में ऐसा कोई व्यवधान नहीं आता।

जापानी जेन योग साधकों पर अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिक डॉ. जोहान स्टोयवा का कहना है कि योगाभ्यास से मन की निर्विचार-स्थिति अर्थात् शून्य अवस्था तक पहुँचने में लम्बी अवधि तक निरंतर प्रयास करना पड़ता है परंतु बायो फीडबैक विधि में स्थिति कुछ सप्ताहों से लेकर महीनों के भीतर प्राप्त की जा सकती है। उनके अनुसार सचेतन मन के नियंत्रण से मस्तिष्क की विद्युत तरंगों का परिवर्तन संभव है। इस से अचेतन मन की गहराइयों में झाँकने और उसमें संचित कुसंस्कारों को उखाड़ फेंकने में सहायता मिलती है साथ ही अचेतन मन की प्रसुप्त शक्तियों को भी जाग्रत करने का अवसर प्राप्त होता है। योग साधना में भी यही किया जाता है। संचित कुसंस्कारों से पिण्ड छुड़ाये बिना अध्यात्म क्षेत्र में प्रगति संभव नहीं।

शाँतिकुँज के ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में बायो फीडबैक को जिसे “इलेक्ट्रॉनिक मेडीटेशन” भी कहा जाता रहा है अनुसंधान की एक विद्या के रूप में विकसित किया गया है। इस यंत्र में त्वचा का विद्युतीय प्रतिरोध-जी.एस.आर., माँसपेशियों की विद्युत-ई. एम. जी. इन तीनों द्वारा दृश्य एवं ध्वनि के माध्यम से साधकों को शिथिलीकरण का अभ्यास कराया जाता है। ध्यान प्रक्रिया द्वारा तीनों में परिवर्तन लाने हेतु उन्हें सतत् प्रशिक्षित किया जाता है। अपनी मनःशक्ति के माध्यम से साधक तनाव शैथिल्य द्वारा त्वचा की प्रतिरोध कम करता तथा ध्यान की स्थिति में ही दृश्यमान अल्फा तरंगें उत्पन्न करता है। इससे उसका संकल्प बल बढ़ता है, आत्मविश्वास जाग्रत होता है। परिणाम स्वरूप ध्यान की गहराई में प्रवेश करने और अंतराल में छिपी विभूतियों को जगाने का मार्ग प्रशस्त होता है।

शाँतिकुँज के ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान में बायो फीडबैक को जिसे “इलेक्ट्रॉनिक मेडीटेशन” भी कहा जाता रहा है अनुसंधान की एक विद्या के रूप में विकसित किया गया है। इस यंत्र में त्वचा का विद्युतीय प्रतिरोध-जी.एस.आर., माँसपेशियों की विद्युत-ई. एम. जी. इन तीनों द्वारा दृश्य एवं ध्वनि के माध्यम से साधकों को शिथिलीकरण का अभ्यास कराया जाता है। ध्यान प्रक्रिया द्वारा तीनों में परिवर्तन लाने हेतु उन्हें सतत् प्रशिक्षित किया जाता है। अपनी मनःशक्ति के माध्यम से साधक तनाव शैथिल्य द्वारा त्वचा की प्रतिरोध कम करता तथा ध्यान की स्थिति में ही दृश्यमान अल्फा तरंगें उत्पन्न करता है। इससे उसका संकल्प बल बढ़ता है, आत्मविश्वास जाग्रत होता है। परिणाम स्वरूप ध्यान की गहराई में प्रवेश करने और अंतराल में छिपी विभूतियों को जगाने का मार्ग प्रशस्त होता है।


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