हेनरीफोर्ड ने गरीबी से जीवन आरंभ किया। अपनी लगन मेहनत और सज्जनता से अनेकों को सहयोगी सहायक बनाया और प्रगति मार्ग पर निरन्तर बढ़ते गये। प्रौढ़ होते-होते वे फोर्ड मोटरों के निर्माण के नाम से प्रख्यात हुए।
उनके कारखाने में एक मिनट में 50 मोटरें बनकर तैयार होती थीं। 20 हजार कर्मचारी काम करते थे। पर उन्होंने आय का बड़ा अंश परमार्थ के लिए नियोजित रखा। प्रायः दो तिहाई बचत का लोकहित के कार्यों में लगा देते थे। फोर्ड फाउंडेशन जैसी अनेकों संस्थाएँ उन्हीं के हाथों से चलीं और उनके द्वारा असंख्यों का विविध-विधि हित साधन हुआ।
वाजिस्रवा अपने समय के बड़े दानवीर थे। एक बार उनने हजार गौएं दान कीं। पर वे सभी थी दुर्बल, असमर्थ। यश के लिए संख्या तो बढ़ाई गई, पर उसमें गुणवत्ता न थी।
वाजिस्रवा के पुत्र नचिकेता ने पिता को टोका और कहा अच्छी वस्तु सुपात्र को देने से ही दान का प्रयोजन पूरा होता है।
वाजिस्रवा को आवेश आ गया। उनने कहा तू ही मुझे उत्तम लगता है। सो यमराज को तुझे ही दान करता हूँ।
नचिकेता प्रसन्नतापूर्वक यम के गुरुकुल में चले गये। वहाँ उन्हें अपनी सेवा और सज्जनता से मोह लिया। गुरु ने उन्हें उच्चकोटि की विद्याएँ पढ़ाई और उन्हें हर दृष्टि से प्रवीण पारंगत बनाया।
महत्वपूर्ण दान को सुयोग्य के हाथों सौंपने का सत्परिणाम सामने आया।