दुबारा सपना देखा कि वह कुत्ता बन गई। मालकिन के रसोई घर में घुसी और व्यंजनों पर हाथ साफ करने लगी। मालकिन ने देख लिया, तो मोटे बेलन से पीट-पीट कर उसकी कमर तोड़ दी। अब की बार वह और भी जोर से कराही। बार-बार कराहते देखकर मालकिन ने उसे जगाया और चूमते हुए पीठ पर हाथ फिराया। बिल्ली ने महत्वाकाँक्षी सपनों की निरर्थकता अनुभव की और मालकिन का हाथ चाटते हुए बोली-”जो हूँ सो ही रहूँगी। निरर्थक सपनों में न उलझूँगी।’’