महाभारत का अंतिम श्लोक पूर्ण हुआ। गणेश जी की अनवरत चलने वाली लेखनी को विश्राम मिला। महर्षि व्यास जी हँसते हुए गणेश जी से पूछा -”भगवन्! मैं इतने श्लोक बोलता रहा। अनेक प्रसंग तथा अनेक व्यवधान बीच में आये पर आप मौन ही रहे। इसका क्या रहस्य है?”
गणेश जी हँस पड़े, उनने कहा-”व्यास जी! जानते नहीं शक्ति का स्रोत संयम ही तो है। मैंने मौन रहकर ही तो इतना बड़ा महाभारत लिख सकने का कार्य किया है। मौन की महत्ता किससे छिपी है। वाणी का संयम सबसे बड़ा संयम माना जाता है, जो मौन रहता है, कम बोलता है वही तो कुछ कर गुजरता है।”
प्रसंग समाप्त होने ही वाला था कि अधूरी बात को पूरी करते हुए नंदी ने कहा-”सभी दीपों में तेल होता है किसी में कम किसी में ज्यादा। अक्षय तेल किसी में नहीं। प्राणियों में शक्ति तो रहती है पर वह विपुल नहीं, अक्षय नहीं। संयम द्वारा जो उसे नष्ट होने से बचा लेते हैं वे ही तो सिद्धि प्राप्त कर पाते हैं।” व्यास और गणेश दोनों ही इस तथ्य पर सहमत थे। महाभारत की रचना दोनों के सहयोग से इसी आधार पर हो सकी।
*समाप्त*