अब दुख-दर्द हृदय का माँ! हमने पहचाना, इसीलिए तो पहन लिया है, यह केसरिया बाना।
बहती जो पंजाब-असम में, प्रबल आग की धारा, आज दहकने लगी उसी में, है कश्मीर हमारा,
सीमाएँ जल रहीं देश की, देती हमें दिखायी, अरे! उसी बढ़ती ज्वाला में, जलने लगी तराई,
हर पल बढ़ती हुई आग से, हमको देश बचाना, इसीलिए तो पहन लिया है, यह केसरिया बाना।
माँ! यह भीगी आँख तुम्हारी, और न अब नम होगी, और प्रतिष्ठ तेरी माता, कभी नहीं कम होगी,
त्याग–तितिक्षा में तपकर, हम कुँदन यहाँ बनेंगे, झुलस रही मानवता के हित, चन्दन यहाँ बनेंगे
कल जो की थी भूल, न हमको अब उसको दोहराना, इसीलिए तो पहन लिया है, यह केसरिया बाना।
यह बाना तप और त्याग की, खरी प्रेरणा देगा, इसमें सारा विश्व, नये युग की किरणें देखेगा,
दुर्भावों में यही मनुज का, रक्षक-ढाल बनेगा, अँधियारे में यही, धधकती हुई मशाल बनेगा,
भरी नजर से देख रहा है, इसकी तरफ जमाना, इसीलिए तो पहन लिया है, यह केसरिया बाना।
तपबल से जो तपोनिष्ठ ने, ऊर्जा यहाँ जगाई, धरती के हर कोने में है, जो ऊर्जा बिखराई,
बिखरी हैं जो दिव्य शक्तियाँ, उन्हें साथ है लाना, देववृत्तियों का अब फिर से, है संगठन बनाना,
सत्प्रवृत्ति से दुष्प्रवृत्ति का, हमको दम्भ मिटाना, इसीलिए तो पहन लिया है, यह केसरिया बाना।
जिसके ऋषियों ने धरती को, अनुपम ज्ञान दिया था, वैभव-संस्कृति-शाँति-व्यवस्था, का अनुदान दिया था,
जिसका है आभार विश्व के, हर अणु पर, हर कण पर, है प्रभाव मानवी चेतना पर, चरित्र-चिंतन पर,
उसी देव-संस्कृति का ध्वज, फिर जग में है फहराना, इसीलिए तो पहन लिया है, यह केसरिया बाना।
-शचीन्द्र भटनागर-