तन्मेमनः शिव संकल्पमस्तु

January 1993

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मनुष्य का स्वास्थ्य नदी के प्रवाह की तरह है। जब तक सब अंग ठीक से काम करते हैं, तब तक शरीर में शक्ति, स्फूर्ति और ताजगी रहती है। नदी के स्रोत की भाँति शरीर का भी स्रोत है-मनुष्य का अपना मन। मन की निर्मलता-निष्कलुषता न केवल आत्मोत्कर्ष के लिए आवश्यक है, वरन् शारीरिक स्वास्थ्य का आधार स्तम्भ भी वही हैं। यजुर्वेद संहिता में संहिता में एक मंत्र आता है जिसका चौथा पाद है-”तन्मे मनः शिव संकल्पमस्तु।” अर्थात् मेरे मन का संकल्प शिव हो, शुभ हो, कल्याणकारी हो। उसमें किसी व्यक्ति के प्रति पाप की भावना पैदा न हो। मनीषियों का भी यही मत है कि मन के शुभ विचारों से सब प्रकार के घाव भरे जाते हैं। जैसे वर्षा के जल से अकालग्रस्त क्षेत्र नंदन वन की तरह लहलहाते हैं, वैसे ही मन की शक्ति में एकाग्रता, प्रसन्नता और शान्ति प्राप्त होती है। प्रख्यात अमरीकी लेखक स्वेट मार्डन ने कहा है-’यदि आप अस्वस्थ विचारों को मन में स्थान देंगे तो शरीर पर उनका बुरा प्रभाव पड़े बिना नहीं रहेगा। ‘ जैसा बिम्ब में होगा वैसा ही प्रतिबिम्ब होगा’

आधुनिक चिकित्सा मनोविज्ञानियों ने भी गंभीरतापूर्वक किये गये अनुसंधानों के आधार पर है अब यह सिद्ध कर दिया है कि रोग की जड़ शरीर में नहीं, मन में होती है। उनके अनुसार स्वार्थ-भावना, कामवासना और ईर्ष्या का प्रभाव यकृत तथा प्लीहा पर पड़ता है। घृणा और क्रोध का प्रभाव गुर्दों तथा हृदय पर पड़ता है। योग सूत्र में कहा गया हैं-”चित्ता नदी नाम उभयता बहति, पापाय च बहति पुण्याय च बहति।” अर्थात् चित्त रूपी नदी दोनों तरफ बहती है-पाप की ओर भी और पुण्य की ओर भी।

लोग प्रायः रोगों के विषय में पुस्तकें पढ़कर यह सोचने लगते हैं कि उनमें किन्हीं रोगों के लक्षण मौजूद हैं। वे चिंतातुर हो जाते हैं। मन में किसी रोग के बारे में विश्वास जम जाने से शरीर अस्वस्थ होने लगता है, और उससे फिर चिकित्सा में भी अनावश्यक झंझट और बाधा उपस्थित हो जाती है। संकल्प का अर्थ है-अच्छा और पक्का इरादा। संकल्प महान रक्षक का काम करता है। शुभ संकल्प से व्यक्ति शिखर पर चढ़ जाता है। मास्टर चाँदगीराम और विश्वविख्यात गामा पहलवान के बारे में प्रसिद्ध है कि वे आरंभ में रुग्णकाय व्यक्ति थे, पर जब संकल्प जाग्रत हुआ और तद्नुरूप दिनचर्या में हेरफेर कर आगे बढ़े तो स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे आगे रहे। अमेरिका की प्रख्यात भविष्यवक्ता हेलेन कीलर शारीरिक रुग्णता एवं अपंगता का शिकार बचपन से ही थी। मिल सलीवन नामक महिला के प्यार भरे उद्बोधन ने प्रसुप्त पड़ी उसकी संकल्प शक्ति को जगाकर जीवन में नये प्राण फूँक दिये।

कलकत्ता-पश्चिम बंगाल में जन्में एक महान योगी हुए हैं- सोहंग स्वामी, जिन्हें वहाँ के लोग टाइगर स्वामी के नाम से आज भी याद करते हैं। बाल्यावस्था में उनका शरीर दुबला-पतला और रोगों से घिरा हुआ था, पर मन में सदैव यही संकल्प उठता कि “कोई शेर-चीता मिले तो उससे कुश्ती लड़ूं।” शरीर इतना सबल और सुदृढ़ हो जाय कि हिंसक जंगली जानवरों को सबक सिखा सकूँ। उन्होंने कहा है कि “मुझे तब पता नहीं था कि संकल्प शक्ति में “इच्छा शक्ति “ में भी कुछ जादू होता है, पर मैंने उसे अपने आप में सचमुच जादू पाया। मेरा स्वास्थ्य दिनों दिन अच्छा होता गया और मैं एक हट्टा–कट्टा युवक बन गया। “ एक बार जंगल में प्रविष्ट हो जाता तो वहाँ के हिंसक से हिंसक पशु-बाघ, शेर-चीते भी मुझे भेड़-बकरियों की तरह लगते और देखते ही दुम दबाकर भाग खड़े होते। वह जीव बड़ा ही दुर्भाग्यशाली होता जो उनकी दृष्टि में पड़ जाता उसकी मौत सुनिश्चित होती। कूँच बिहार के राजाध्यक्ष ने उनकी परीक्षा खूँखार आतंक का पर्याय बनी हुई थी।

एक बार उनकी ख्याति सुनकर स्वामी योगानंद उनसे मिलने गये और पूछा-आप खूँखार जानवरों से कैसे लड़ते हो? तो उन्होंने उत्तर दिया-’शारीरिक शक्ति से मानसिक शक्ति कही अधिक प्रखर है। यदि हम दृढ़ विश्वास कर लें कि बाघ नहीं बिल्ली है तो वह बिल्ली ही हो जायेगी। शारीरिक स्वास्थ्य, सौष्ठव, मानसिक संकल्प की ही देन है। अब तो विज्ञान ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि मन-मस्तिष्क ही है जो माँस-पेशियों को नियंत्रित करता है। मस्तिष्क जितना प्रखर, पवित्र और बलवान होगा, उतना ही सूक्ष्म शरीर काम करेगा। जितनी शक्ति से हथौड़े का प्रहार किया जाता है उतनी ही गहरी चोट लगती है। उसी प्रकार शरीर हथौड़ा है, उसे शक्ति देने वाली मशीन तो मन की संकल्प शक्ति है। सारे कार्य मन की शक्ति पर निर्भर है, उसका उपयोग चाहे जैसे कर सकते हैं। यदि मन शरीर और इंद्रियों का दास होगा तो वह कुछ नहीं कर सकेगा, इसके विपरीत यदि मनुष्य प्रसन्न और शुद्ध अन्तःकरण वाला है, मन में सदैव शुभ और कल्याणकारी संकल्पों की विचार तरंगें ही हिलोरें मारती हैं तो निश्चय ही सुख, शाँति शरीर के पीछे भागने वाली छाया की तरह उसका पीछा नहीं छोड़ती।’


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