मन में गुंजाइश होना (Kahani)

January 1993

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महाप्रभु ईसा को जब भी ठहरना होता, पतितों और तिरस्कृतों के यहाँ ठहरते।

सम्पन्न लोग उनका उपहास करते और कहते जब कुलीनों और सम्पन्नों के यहाँ ठहरने की आपको सुविधा है तो नीच लोगों के यहाँ क्यों डेरा डालते हैं? ईसा कहते रोगियों के यहाँ ही चिकित्सक के यहाँ जाना चाहिए। जो निरोग हैं उनके यहाँ जाना व्यर्थ है।

एक साधु ने छोटी झोंपड़ी बना रखी थी। उसी में गुजारा करता। जगह इतनी भर थी कि वह अकेला पैर पसार कर सो सके और करवट बदलता रह सके।

एक दिन जोर की वर्षा हुई। एक भीगता हुआ साधु रात के समय उस झोपड़ी पर आ पहुँचा दरवाजा खटखटा कर बोला उसे भी उस झोपड़ी में भीगने से बचने और रात बिताने के लिए जगह मिले।

भीतर वाले साधु ने दरवाजा खोला ओर अतिथि को भीतर ले लिया। झोंपड़ी में एक के सोने को जगह थी पर बैठ कर दो भी समय काट सकते थे। सो बैठकर समय बिताने लगे। इतने में एक और व्यक्ति भीगता हुआ वहीं आ पहुँचा। दरवाजा खुला था। उसने कहा मुझे भी जगह मिल जाये तो भीगने से बचाव हो सके। साधु ने तीसरे को भी भीतर ले लिया। कहा-इसमें एक के सोने की जगह थी। बैठकर हम दो भी समय बिता लेंगे। तुम्हें आना है तो खुशी से आओ। खड़े होकर हम तीनों भी रात काट लेंगे। तीनों ने खड़े-खड़े उस छोटी झोपड़ी में रात बिताई। इसे कहते हैं मन में गुंजाइश होना।


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