अध्यात्म का मूलमंत्र निर्भीकता

March 1990

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बालक नरेंद्र को अपने बचपन में, एक खेल बड़ा ही प्रिय था। वह अपने साथियों को लेकर पास के बगीचे में चला जाया करता और घने पत्तों वाले आम के वृक्ष की एक मोटी डाली पर औंधा लटक जाता। साथी नीचे खड़े और ढंग के खेलखेला करते। बगीचे का माली डरा कि कहीं नरेंद्र उस पेड़ ,परसे  गिर न जाए और हाथ-पाँव तोड़ न बैठे। सो उसने सब बच्चों को इकट्ठाकर कहा— "देखो तुम उस पेड़ के नीचे मत खेला करो। वहाँ एक ब्रह्मराक्षस रहता है। कभी वह नाराज हो गया तो तुम लोगों को खा जाएगा।"

“ब्रह्मराक्षस क्या चीज होती है बाबा” नरेंद्र ने जिज्ञासावश पूछा।”

“जो लोग किसी दुर्घटना में मारे जाते है, या उनके बैरियों द्वारा बुरी तरह कत्ल कर दिए जाते है, वे असमय में मरने के कारण भूत बन जाते है। असमय में मृत्यु होने से उनकी आत्मा इधर-उधर भटकती रहती है और लोगों को परेशान किया करती है।" माली ने कहा।

“तो कौन उस पेड़ के नीचे और मारा गया था और कब किसने उसकी हत्या की थी।”

“यह तो मुझे नहीं पता बेटा।”

“तो फिर तुम्हें कैसे पता है कि वहाँ ब्रह्मराक्षस रहता है, लोग कहते है?”

लोग कहते है — "परंतु तुमने कभी उसे देखा है, नरेंद्र एक के बाद, दूसरा प्रश्न किए जा रहा था। इन प्रश्नों के सुनकर माली घबड़ा उठा, क्योंकि वह एक प्रश्न का जवाब नहीं दे पाता था कि दूसरा प्रश्न तैयार मिलता। सो घबड़ाकर वह बोला— "बेटा नरेंद्र तुम से बातों में तो भगवान ही जीते, मैं तो केवल इतना कहे देता हूँ कि तुम उस पेड़ के नीचे मत खेला करो। कल से कुछ हो गया; ब्रह्मराक्षस ने तुम्हें कुछ कर दिया, तो मैं नहीं जानता।"

"अच्छा बाबा। अच्छा। नहीं खेलेंगे। इतना नाराज क्यों होते हो?" नरेंद्र ने कहा और अपने साथियों के साथ वहाँ से भाग चला।

उसी दिन शाम को नरेंद्र घर से गायब हो गया। पहले तो परिवार वालों ने सोचा कि वहीं-कहीं खेल रहा होगा। परंतु जब बहुत देर हो गई तो चिंता हुई। बच्चा बड़ा शरारती है; कही कोई दुर्घटना न हो, गई हो। यह भय सबको संतान लगा। खोज-बीन हुई नरेंद्र को मित्रों के घर तलाश किया। बालसखा तो सब चुपचाप सो गए थे। इतनी देर रात तक बच्चे जागते ही कहाँ है? फिर भी उन्हें उठा-उठाकर पूछा गया कि नरेंद्र को कही देखा था। सभी ने एक ही उत्तर दिया कहीं नहीं। उन बालसखाओं के अभिभावक भी चिंतित हो उठे, क्योंकि चंचल और शरारती होने के कारण नरेंद्र भीस अपने बच्चों के समान प्रिय था, इसलिए उनकी भी नींद जाती रही और वे भी खोज-बीन में लग गए।

नरेंद्र के स्वभाव से परिचित किसी वृद्ध व्यक्ति ने पूछा— "आज नरेंद्र को किसी ने कोई काम करने से रोका था क्या ?

“नहीं तो और रोकने से वह मानता थी कहाँ है?” नरेंद्र के ही किसी निकट संबंधी ने कहा।

लड़कों से पूछा गया तो उक्त घटना का पता चल गया और वृद्ध परिचित अंदाज में चलते हुए पहुँचे, उसी बगीचे में उसी आम के पेड़ तले जाकर रुके जिसमें कि माली ने ब्रह्मराक्षस का निवास बताया था, आवाज लगाई। नरेंद्र! ओ नरेंद्र।

“मैं यहाँ हूँ” बापू— ऊपर से नरेंद्र की आवाज आई। नीचे उतरो बेटा। सब लोग परेशान हो रहे हैं और नरेंद्र, जब नीचे उतरा तो पूछा कि वहाँ क्या कर रहे थे? नरेंद्र ने बताया कि ब्रह्मराक्षस की प्रतीक्षा। मैं उससे मिलना चाहता हूँ।”

चलो। घर चलकर सोओ। यहाँ कोई राक्षस नहीं रहता। माली ने मुझसे झूठ बोला था। नरेंद्र को घर ले जाया गया। सत्य को जानने के लिए यही निर्भीक जिज्ञासु आगे चलकर स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्वविख्यात हुआ; जिसने सभी धर्मों का तत्त्व निचोड़कर एक शब्द में कहा निर्भीकता।


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