एक चरवाहे की किसी ने राजा से बहुत प्रशंसा की। राजा आतुर स्वभाव का था। एकाध बात पूछने से ही इतना प्रभावित हुआ कि उसे राज्य का खजाँची बना दिया।
चरवाहे ने सौंपा हुआ काम तो सँभाल लिया, पर यह आशंका मन में बनी रही कि यह कान का कच्चा है। उतावले स्वभाव का भी है। कभी भी नौकरी से हटा सकता है। इसलिए उसने अपने चलने का सामान तैयार रखा।
उसने अपने रहने के लिए एक कोठरी पर्याप्त समझी। उसी में रहता और दिनभर उसका ताला लगाए रहता चुगलखोर ने रजा के कान भरे की इसने बहुत दौलत बटोर ली है, पर जिस कोठरी में रहता है उसी में जमा कर रखी है।
राजा को जाँच कराने का धैर्य न था। उसने तत्काल कोठरी की तलाशी लेने और खजाँची को बर्खास्त करने का हुक्म किया।
तलाशी ली गई। कोठरी में सिर्फ वे कपड़े जूते आदि मिले जो, उन्हें वह घर से लेकर आया था। पूछा गया कि यह पुरानी फटी चीजें किसलिए जमाकर रखी गई हैं।
चरवाहे ने कहा— "मैं जानता था कि वे कान के कच्चे हैं। आतुर स्वभाव के किसी व्यक्ति के यहाँ ज्यादा दिन ठहरना नहीं हो सकता इसलिए जिस हैसियत से आया था, उसी में घर लौट जाने की तैयारी में पुराना सामान सँजा कर रखा। राजा के रोकने पर भी वह रुका नहीं। सरकारी वर्दी उतार दी और पुराने कपड़े पहनकर खाली हाथ चला गया।"