दो गिरगिट तालाब किनारे लड़ रहे थे। उसी जलाशय में एक हाथी बैठा कलोल कर रहा था। गिरगिट लड़ते-लड़ते हाथी के कान में जा घुसे और भीतर गहराई तक चले गए।
हाथी हड़बड़ाया। पीड़ा से बेचैन हो गया। उसने तालाब का बाँध तोड़ दिया और किनारे के पेड़ उखाड़ दिए। रुका हुआ पानी इन खंदकों से होकर बह निकला और समीपवर्ती खड़ी फसल के खेतों को डुबो दिया।
तालाब के किनारे दर्शक बहुत थे। उनने गिरगिटों को लड़ते, हाथी के कान में घुसते देखा था। पर उस छोटे अनर्थ को रोकने की किसी ने चेष्टा न की। जब दुष्परिणाम सामने आया, तब समझ उभरी कि गिरगिटों की लड़ाई को समय रहते रोक दिया गया होता तो फसल की बरबादी की इतनी बड़ी हानि न उठानी पड़ती।