मात्र वर्तमान का ही विचार करें !

March 1990

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भूतकाल कैसा भी क्यों न रहा हो, वह चला गया। अब उसके लौटने की कोई आशा या संभावना नहीं। अधिक-से-अधिक यह हो सकता है कि इन स्मृतियों से शिक्षा ग्रहण की जाए। जो भूलें हुई हैं, उनसे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि क्या करना चाहिए था और उसके स्थान पर क्या बन पड़ा? जो भूलें हुई हैं, उनको दुहराया न जाए। जो नहीं किया गया था, वह वैसा कोई दूसरा अवसर आने पर करने के लिए मानस बनाया जाए। यह भी हो सकता है कि गलती का प्रायश्चित किया जाए। जिसके साथ कोई दुर्व्यवहार हुआ है, उसकी भरपाई करके अथवा संतोष दे सकने वाले दूसरे प्रयत्न करके ऐसा कुछ किया जाए कि उत्पन्न हुए रोष का निराकरण किया जाए।

पिछला घटनाक्रम लौट तो सकता है, पर यह नहीं हो सकता कि उस घटना को नकारा जाए या अपनी ओर से भूल जाने पर यह सोच लिया जाए कि दूसरों ने भी उसे भुला दिया होगा। मनुष्य का स्वभाव है कि गलती को स्मरण रखता है। बुराई के प्रतिशोध के लिए योजना बनाता है। क्षमा करना या गलती की उपेक्षा कर देना, किसी-किसी उदारचेता से ही बन पड़ता है। गलती भले ही नासमझी से हुई हो, पर उसके संबंध में समझा यह जाता है कि वह द्वेषवश किया गया है। उसका उद्देश्य हानि पहुँचाना था।

औसत आदमी सामान्यतया ऐसी ही मान्यता बनाते हैं। जबकि अपनी ओर से सोचा जाता है जिसे खुद ने भूल माना है, उसे दूसरों ने भी वैसा ही समझा होगा। इस गलतफहमी के बीच ही बन पड़ी भूलें दूसरे पक्ष द्वारा द्वेष मान ली जाती हैं और उसका प्रतिशोध-बदला लेकर ही किया जाता है। कई बार तो ऐसी कटु स्मृतियाँ लंबे समय तक बनाए रखी जाती हैं और उसका बढ़-चढ़कर बदला लिया जाता है। पिछली भूलों को अनहोना या अनदेखा तो नहीं किया जा सकता पर इतना अवश्य हो सकता है कि भूल को स्वीकार कर लें। भविष्य में वैसा न करने या क्षतिपूर्ति का कोई दूसरा उपाय खोजकर काम चला लें।

अपने आप के प्रति की गई भूल का एक ही उपाय है कि वैसा कुछ दुबारा न करने के लिए पक्का मन बना लिया जाए। यदि यह उलट-पलट न बन पड़े तो उस भूल की चर्चा करके अपना मन हलका किया जा सकता है। यदि किसी के साथ नेकी की गई है तो उसकी चर्चा करने पर अपना अहंकार प्रकट होता है और दूसरा अपना अपमान समझता है। ऐसी दशा में उसे भूल जाना ही उचित है। उदारता हर इंसान का फर्ज है। इसलिए किसी के साथ किए गए उदार व्यवहार को मात्र कर्त्तव्यपालन के और कुछ नहीं समझना चाहिए। बार-बार तो ऐसे ही प्रसंगों का जिक्र किया जा सकता है; जिनमें दूसरों ने अपने साथ कोई असाधारण भलाई की हो।

जिनसे मात्र घटनाओं का ही स्मरण हो, उन्हें भूलने का ही प्रयत्न करना चाहिए। स्वप्नों को याद करते रहना निरर्थक है। उनसे किन्हीं भावनाओं का उत्तेजन भर हो सकता है। समय बेकार जाता है। इसलिए पिछले दिन बन पड़ी निरर्थक घटनाओं को स्मरण करते रहना निरर्थक ही सिद्ध होता है।

वृद्धा व्यक्ति प्रायः पिछली घटनाओं को ही याद करते रहते हैं, क्योंकि वही उनकी संचित संपदा है। यद्यपि उनसे निरर्थक भावनाओं को उत्तेजित करने के अतिरिक्त और कोई लाभ नहीं मिलता।

भविष्य की कल्पनाओं-भूतकाल की घटनाओं को याद रखना निरुद्देश्य है, निरर्थक है। अपने हाथ में केवल वर्तमान है। इसी का श्रेष्ठतम् सदुपयोग करना बुद्धिमानी है। खाली मस्तिष्क जब कभी हो, तब भूत या भविष्य की कल्पनाएँ करते रहने की अपेक्षा यही अच्छा है कि वर्तमान के श्रेष्ठतम उपयोग की बात सोची जाए और संभव हो तो वैसा ही किया भी जाए। किसी ने सही कहा है कि बीता हुआ कल कैंसिल्ड चैक है, आने वाला कल प्रांमिसरी नोट है, किंतु वर्तमान तो पूरा नकद (रेडी कैश) है। यदि इसी का सदुपयोग हो सके तो निश्चय ही प्रगति-पथ पर निश्चित हो बढ़ा जा सकता है।


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