विद्वान पद्नाथ गाँव-गाँव जाकर कथा सुनाते थे। उनका निजी गुजारा लकड़ी बैचकर, जो पैसा मिलता था। उसी पर चलता था।
इस निस्पृहता और सेवा-भावना से जनता इतनी अधिक प्रभावित हुई कि उन्हें सिर-आँखों, पर उठाए फिरती थी और उनके उपदेशों को श्रद्धापूर्वक हृदयंगम करती थी। अपने समय में उनको असाधारण ख्याति थी।