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Akhand Jyoti
Year 1990
Version 2
सद्वाक्य
सद्वाक्य
March 1990
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महान व्यत्कित्व झोपड़ों में भी शोभा पते हैं, पर निकृष्टजन महलों में भू अभागे बंदी की तरह जीवन बिताते हैं।
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Page Titles
आड़े समय की विषमता और वरिष्ठों की जिम्मेदारी
तालाब के किनारे दर्शक (कहानी)
भविष्यकथन संभव ही नहीं, तथ्यसम्मत भी
कर्त्तव्य का स्मरण (कहानी)
प्रतिभा का जारण प्रतिकूल परिस्थितियों में ही
मजबूती का प्रमाण (कहानी)
सह्याद्रि का पवनपुत्र
दौलत भर के लिए (कहानी)
समझदारों की दिग्भ्रांत प्रज्ञा
बहुमूल्य अनुदान भी (कहानी)
पुरुषार्थ का पूरक— परमात्मबल
हरिजनों का हरि, देवदूत!
समय अधिक सुनिश्चित समझा (कहानी)
“खुल जा सिमसिम”
निंदा से रोका (कहानी)
अदृश्य बाजीगर की मनोरंजन की पिटारी!
सद्वाक्य
आवश्यकता है, इस युग की सुप्रिया की
उपदेशों को श्रद्धापूर्वक (कहानी)
हमारे अपने वश में है, शरीर चेतना
कठिन समस्याओं के सरल समाधान
लिंकन की ईमानदारी और अमेरिका के राष्ट्रपति (कहानी)
चेतना का विकास संवेदना के स्तर पर निर्भर
मन की अपरिग्रहता को जीतें (कहानी)
दैवी अनुग्रह व अनुदान किनको?
हम आँखें होते हुए भी कहीं अंधे तो नहीं (कहानी)
क्या स्वर्ग एवं मुक्ति इतने सुगम व सस्ते हैं?
बालक एडीसन को वैज्ञानिक गुरु ने परखा (कहानी)
जिसने अनुभव की, मानवता की पीर!
इस दिव्य अनुदान को व्यर्थ न जाने दें
साधन कम पड़ते हों तो अपनी आवश्यकताएँ घटाएँ (कहानी)
नीति-निष्ठा अपनाने के सत्परिणाम
श्री भगवनदीन (कहानी)
विरासत जो वरदान बन गई
सद्वाक्य
मात्र वर्तमान का ही विचार करें !
मधु संचय— संधिवेला (गीत)
मधु संचय— दिव्य सुयोग (गीत)
प्राणविद्युत का परिमार्जन एवं उन्नयन
भीतर की तड़पन सक्रियता में बदले!
चरवाहे ने सौंपा (कहानी)
इक्कीसवीं सदी के आधार स्तंभ !
साक्षरता की देवी
अध्यात्म का मूलमंत्र निर्भीकता
पिछड़ों के हमदर्द-शोषितों के मसीहा
सद्वाक्य
यह जीवन प्रभुमय कैसे बने?
समुद्र ने समझाया (कहानी)
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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