मधु संचय— संधिवेला (गीत)

March 1990

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यह युग-परिवर्तन की वेला। इसमें कोई नहीं अकेला॥

देव शक्तियाँ कार्य निरत हैं, असद हटा सतयुग लाने में।

सबको उनका संरक्षण है, भवन नया यह बनवाने में॥

प्रभु ने पुनः खेल यह खेला, यह...........

इंजीनियर कि बेलदार हो, यहाँ नहीं कोई अंतर है।

सबको शक्ति दे रहा वह प्रभु, क्योंकि मनुजता का यह घर है।

संग करोड़ों का है मेला, यह.........

पहले बहुत कहा था उसने, ‘होगी जभी धर्म की हानी।

तब-तब मैं खुद ही आऊँगा, रोकूँगा ऐसी मनमानी”॥

अतः रचा फिर से यह खेला,यह...........

कोई यहाँ नहीं एकाकी, संघशक्ति ही अपना बल है।

ऐसा है अस्तित्व हमारा, एक फूल-यद्यपि शतदल है॥

नभ-सा हृदय सभी का फैला, यह..................

हम सब ने मुस्का–मुस्काकर, संघर्षों की राह गही है।

पग में काँटा चुभा; किंतु, ना कभी किसी से पीर कही है

कष्टों को हँस-हँसकर झेला, यह..............

— माया वर्मा


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