हम आँखें होते हुए भी कहीं अंधे तो नहीं (कहानी)

March 1990

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अंधा सड़क के किनारे पर बैठा भीख माँगा करता और किसी प्रकार गुजर करता।

राह चलते एक पथिक ने अंधे के दुर्भाग्य को कोसा। बात अंधे ने भी सुन ली। बोला— “अभागा मैं अकेला ही नहीं, अन्य लोग भी हैं, जो आँखें होते हुए भी अपनी गतिविधियों का परिणाम नहीं सोचते और पग-पग पर ठोकरें खाते हैं।”


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