हमारे अपने वश में है, शरीर चेतना

March 1990

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मानवी काया में सतत विविध प्रकार के वैद्युतीय संकेत निकलकर बाह्य वातावरण में विसर्जित होते रहते हैं, जिन्हें विभिन्न उपकरणों के माध्यम से जाँचा, मापा और उनसे उत्पन्न संकेतों को सुना व देखा जा सकता है। तदुपरांत यह ज्ञात किया जा सकता है कि शरीर स्वस्थ है अथवा अस्वस्थ। हृदय से निस्सृत विद्युतीय तरंगें सबसे अधिक सशक्त होती हैं। इनके कमजोर पड़ने अथवा अधिक बढ़ जाने पर जीवन-संकट का सामना करना पड़ता है और धड़कन बंद होते ही व्यक्ति को मृतक घोषित कर दिया जाता है।

मस्तिष्क से भी लगातार स्थित तरंगें मानसिक स्थिति के अनुरूप विविध रूपों से निकलती रहती हैं, परंतु हृदय से निकलने वाली ड़ड़ड़ड़ की तुलना में ये अपेक्षाकृत कमजोर एवं जटिल होती हैं। इनके अतिरिक्त त्वचा एवं मांसपेशियों से निस्सृत संकेतों की आवृत्ति उच्च होती है। यह सभी संकेत यह बताते हैं कि मनुष्य की वास्तविक मनःस्थिति एवं उससे संचालित शारीरिक स्थिति कैसी है। मानसिक स्थिति के अनुसार ही व्यक्तित्व का निर्धारण होता है।

इस संदर्भ में प्रख्यात मनोवैज्ञानिक जे. कामिया तथा डॉ. बारबारा ब्राउन ने गहन अनुसंधान करने के पश्चात निष्कर्ष प्रस्तुत करते हुए बताया है कि यदि शरीर से निकलने वाले विभिन्न विद्युतीय संकेतों में किसी तरह आवश्यक परिवर्तन या परिवर्द्धन किया जा सके, तो न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को अक्षुण्ण रखा जा सकता है; वरन मानसिक चेतना को भी परिष्कृत किया एवं उच्चस्तरीय बनाया जा सकता है। इनका मत है कि जब तक हम अपने अंतर-बाह्य प्रक्रियाओं तथा उन पर पड़ने वाले विचारों एवं संकल्पों के प्रभाव को अच्छी तरह समझ नहीं लेते, तब तक चेतना के क्षेत्र में वांछित परिवर्तन कर सकने में समर्थ नहीं हो सकते। क्रियाकलापों के प्रति जागरूकता न होने, पर उनको नियंत्रित नहीं किया जा सकता। इसके लिए बायो— फीडबैक-पद्धति को बहुत उपयोगी पाया गया है।

योग विद्या-विशारद जानते हैं कि योगाभ्यास की विविध प्रक्रियाएँ शारीरिक एवं मानसिक क्रियाकलापों के नियंत्रण में प्रभावकारी भूमिका निभाती हैं। उसके साथ विचारणाओं-भावनाओं के परिष्कार का उपक्रम भी जुड़ा रहता है। इसके बिना समाधिस्तर का सुख एवं चेतना के उच्च आयामों की उपलब्धि नहीं होती। परंतु यह एक लंबी समय एवं श्रमसाध्य प्रक्रिया है। आधुनिक विज्ञानवेत्ताओं ने योगाभ्यास परक प्रथम आवश्यकता पूर्ति के निमित्त बायोफीडबैक पद्धति को सर्वोत्तम पाया है। इसके द्वारा उपलब्ध परिणामों को मशीन पर चर्मचक्षुओं द्वारा सीधे देखा जा सकता है, जबकि पूर्ववर्ती प्रक्रिया अनुभूति मूलक है। सामने चलते हुए संकेतों अथवा कौंधते हुए विभिन्न लाइट बार को देखकर साधक अपने मानसिक स्तर को स्वयं समझ सकता है और तद्नुरूप उसमें हेर-फेर कर सकता है। इतना ही नहीं इसके द्वार समस्त शारीरिक हलचलों, हृदय मांसपेशियों, त्वचा, रक्त के अतिरिक्त प्रत्येक कोशिका की गतिविधि को जाना और स्वसंकेत द्वारा उन पर नियंत्रण साधा जा सकता है।

सुप्रसिद्ध मनोवेत्ता एल्मरग्रीन का कहना है कि शरीर पर मन का आधिपत्य है। अतः उसे प्रशिक्षित करके समस्त कायिक अंग-अवयवों, कोशिकाओं को वशवर्ती बनाया जा सकता है; क्योंकि यह सभी मन से संचालित हैं। अतः मांसपेशियों में उत्पन्न तनाव एवं सिरदर्द जैसी सामान्य बिमारियों को बायोफीडबैक द्वारा सरलतापूर्वक दूर किया जा सकता है। इससे संबद्ध व्यक्ति इलेक्ट्रोमायोग्राफ पर अपनी पेशियों द्वारा छोड़े गए विद्युत चुंबकीय विकिरण को देखता और इच्छाशक्ति का प्रयोगकर उन्हें इच्छित तरीके से सिकुड़ने-फैलने का निर्देश देता है। अभ्यास द्वारा इससे उसी तरह के सुखद परिणाम निकलते हैं, जिस तरह से प्रशिक्षित मस्तिष्क से शांतिदायक अल्फा-तरंगों के निष्कासन से मिलता है। इस उपचार में किसी बाह्य चिकित्सक की आवश्यकता नहीं पड़ती; वरन विशेषज्ञ द्वारा इलेक्ट्रोड लगाने की प्रक्रिया ज्ञात हो जाने पर अकेले भी किया जा सकता है। यह पूर्णतया आटा सजेशन प्रक्रिया पर आधारित है। डॉ. एडमन्ड डेवान ने इस विधि द्वारा विकलांग व्यक्तियों की संकल्पशक्ति को जगाकर बेकार बने अंगों को सक्रिय बनाने में आशातीत सफलता पाई है। उनके अनुसार इससे मांसपेशियों की निष्क्रियता एवं तनाव को भी सरलतापूर्वक दूर किया जा सकता है।

हृदय की गतिविधियों पर सामान्य मनुष्यों का कोई नियंत्रण नहीं होता, किंतु योगाभ्यासियों के लिए नाड़ी की गति, हृदय की धड़कन आदि को इच्छानुसार घटा-बढ़ा लेना, लयबद्धता को सुस्थिर बना देना एक सामान्य क्रिया होती है। अभ्यास द्वारा अनैच्छिक पेशियों को भी नियंत्रितकर लेने में वे समर्थ होते हैं। हृदयगति रुकने तक का निमित्त कारण बनती है। इसे लयबद्ध बनाया जा सके तो न केवल असामयिक मरण से छुटकारा पाया जा सकता है; वरन दीर्घ जीवन की उपलब्धि भी संभव है। अनुसंधानकर्ता डॉ. एल्मरग्रीन ने हृदय रोगियों पर किए गए बायोफीडबैक अध्ययनों में पाया है कि जिन व्यक्तियों की हृदयगति 110 प्रतिमिनट थी, तीन माह के अभ्यास से वे 80 प्रतिमिनट तक गति को कम करने में सफल हुए। उनके अनुसार इस तरह के बाह्य उद्दीपनों से, जो यंत्र पर लाल, हरे आदि प्रकाश के रूप में दिखते रहते हैं, व्यक्ति को अपने संकल्पबल को प्रखर बनाने एवं अधिकाधिक कुशलता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इच्छाशक्ति के विकास के साथ ही अतः प्रक्रियाओं पर नियंत्रण सधता जाता है।

हाइपरटेंशन यानी उच्च रक्तचाप इस शताब्दी की सबसे बड़ी बीमारी है। विश्व में ऐसे लोगों की संख्या करोड़ों में है, जिन्हें उच्च रक्तदाब की शिकायत है। अकेले भारत में प्रायः पाँच करोड़ से अधिक व्यक्ति इस रोग से पीड़ित हैं। इस श्रेणी में प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में नए रोगी जुड़ते जाते हैं। चिकित्सक एवं दवाइयाँ भी इसमें कोई स्थायी राहत नहीं दिला पाते। वस्तुतः यह एक मनोशारीरिक रोग है, जो चिंतन-क्षेत्र की विषमता व तनाव के कारण पनपती है। इसका उपचार भी तदनुरूप ही ढूँढ़ा जाना चाहिए। विशेषज्ञों ने ई.के.जी. बायोफीडबैक को इसके लिए बहुत उपयुक्त पाया है। एक और इस उपक्रम में जहाँ मन को विधेयात्मक विचारणाओं से परिपूरित करने का अवसर मिलता है, वहीं भावना-क्षेत्र का परिशोधन कर संकल्पबल को बढ़ाया जाता है। हृदय की गतिविधियों एवं ब्लडप्रेशर को नियंत्रित करने में यह युक्ति बहुत कारगर सिद्ध हुई है।

यह एक सर्वविदित तथ्य है कि वर्तमान समय की अधिकांश बीमारियों का जनक दैनिक जीवन में बढ़ता जा रहा तनाव है। इससे शरीर की ऊपरी त्वचा से लेकर रक्तवाही शिराओं की आंतरिक संवेदनशील मांसपेशियों तक प्रभावित हुए बिना नहीं रहतीं। शवासन, शिथिलासन जैसी योगाभ्यास परक प्रक्रियाओं द्वारा दूर कर लिया जाने का विधान योगशास्त्र में है फिर भी अब नए आविष्कारों के साथ ही मस्तिष्कीय शक्ति एवं यांत्रिक सुविधाओं के सम्मिलित प्रयोग से कम समय में सरलतापूर्वक इसे संपन्न किया जा सकता है। इसी प्रकार थर्मल सेंसर द्वारा शारीरिक तापमान के उतार-चढ़ावों को सूक्ष्मतापूर्वक निरखा-परखा जा सकता है। सिरदर्द जैसी सामान्य बीमारियाँ प्रायः ड़ड़ड़ड़ में असमान तापमा-वितरण के कारण उत्पन्न होती हैं। अतः हाथ की ऐच्छिक माँ ड़ड़ड़ड़ का तापमान बढ़ा लेने पर सिर में रक्त प्रवाह संतुलित हो जाता है और राहत मिलती है।

इसी प्रकार जी.एस.आर. बायोफीडबैक द्वारा त्वचा की विद्युतीय प्रतिरोधी क्षमता को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। बढ़ी हुई त्वचा प्रतिरोध क्षमता, तनाव शैथिल्य एवं सक्रियता का चिन्ह है। मन की उत्तेजना, व्यग्रता सबसे पहले त्वचा प्रतिरोध में ही परिलक्षित होती है। शरीर की प्रतिरोधी सामर्थ्य को शक्तिशाली बनाने हेतु स्वसंवेदन, ध्यानप्रक्रिया या प्रयोग का संकेत, यह उपकरण देता रह सकता है। इसे इक्कीसवीं सदी के 'इलेक्ट्रॉनिक मेडीटेशन' की उपमा दी गई है।

'न्यूमाइण्ड- न्यूबाँडी' बारवना ब्राऊन कहती हैं कि “बायोफीडबैक” द्वारा मनःस्थिति की उत्तेजना को शिथिलीकरण में बदलना इस युग की सबसे बड़ी उपलब्धि है। सचमुच यदि मनश्चेतना पर यंत्रों के माध्यम से ही सही मनुष्य को योग-साधना द्वारा नियंत्रण करने की विद्या सिखाई जा सके तो इसे चिकित्सा विज्ञान का मानव जगत को अद्भुत अनुदान कहा जाएगा।


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