श्री भगवानदीन को बालशिक्षण में बड़ी रुचि थी, उनका प्रयत्न था कि भावी पीढ़ी विकसित व्यक्तित्व वाली बने। इसी प्रयोजन में उनने अपना समूचा जीवन खपाने का निश्चय किया। वे आजीवन अविवाहित रहे। निजी पाठशाला चलाई और विभिन्न शालाओं में जाकर बालकों और समग्र उत्कर्षों की शिक्षा देते रहे। उनके एक निष्ठाकार्य को देखकर, उन्हें महात्मा भगवानदीन के नाम से पुकारा जाता था। यद्यपि वे वस्त्र साधारण ही पहनते थे।