विद्यासागर के नाम से प्रसिद्ध (Kahani)

July 1988

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बालक ईश्वरचन्द्र अपने पिता ठाकुरदास के साथ वीरसिंह नामक गाँव से कलकत्ता जा रहा था। गाँव से कलकत्ता तक पक्की सड़क थी। जब काफी दूर निकल गये तो बालक का ध्यान जमीन में गढ़े पत्थर की ओर गया उस पर काला-काला कुछ लिखा था। बालक ने उसे देखकर पूछा-पिताजी स्थान-स्थान पर यह पत्थर जमीन में क्यों गोड़े है?

पिता ने समझाया बेटा-”यह मील के पत्थर है। इनसे किसी स्थान की दूरी ज्ञात होती है। इस पत्थर पर अंग्रेजी में लिखा है कि कलकत्ता यहाँ से 11 मील है।”

लगभग 10 मील की यात्रा बातचीत में निकल गयी। मील का पत्थर आता और वह बालक यह पूछ लेता “पिताजी यह क्या लिखा है?” इस प्रकार अंग्रेजी के अंकों की बनावट उसके मस्तिष्क में जमती जा रही थी और यात्रा के पूर्ण होने तक उसे अंग्रेजी की गिनती का पूरा अभ्यास हो गया।

शाम तक पिता पुत्र कलकत्ता पहुँच गये और सेठ जगदुर्लभसिंह के यहाँ ठहरे। सुबह वे दोनों सेठ की दुकान पर गये वहाँ सेठ ने ठाकुरदास को कुछ हिसाब मिलाने के लिये दिया। वह बालक भी पास में बैठकर सारे हिसाब को देखता रहा जब हिसाब करके पिता ने सेठ को वापस कर दिया तो ईश्वरचन्द्र ने कहा-”पिताजी। यह हिसाब मुझको भी आता है।”

“बालक की बात सेठ ने सुनी तो पूछ बैठा ठाकुरदास से क्या आपके बेटे ने कही अंग्रेजी की शिक्षा भी ली है”

नहीं। नहीं। “एकाग्रचित्त होकर जब यह किसी कार्य को देखता है और समझने का प्रयास करता है तो उसे सीखने में देर नहीं लगती।” इस प्रतिभा का कारण पूछने पर बालक ने यही कहा- “किसी बात पर पूरा ध्यान देने से वह कठिन होते हुये भी-किसी के लिए-भी सरल हो सकती है।”यही बालक ईश्वरचन्द्र विद्यासागर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles