समृद्धि ऐश्वर्य पाकर (Kahani)

July 1988

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एक सेठ बड़ा धनवान था। उसे अपने ऐश्वर्य धन सम्पत्ति का बड़ा अभिमान था। अपने को बड़ा दानी धर्मात्मा सिद्ध करने के लिये घर पर नित्य एक साधु को भोजन कराता था। एक दिन एक ज्ञानी महात्मा आये उसके यहां भोजन करने को। सेठ जी ने उनकी सेवा पूजा करने का तो ध्यान नहीं रखा और अपने अभिमान की बातें करने लगा “ देखो महाराज वहाँ से लेकर इधर तक यह अपनी बड़ी काठी है। पीछे भी इतना ही बड़ा बगीचा है। पास ही दो बड़ी मिलें हैं अमुक -अमुक शहर में भी मिलें हैं। इतनी धर्मशालाएँ कुएं बनाये हुये हैं। दो लड़के विलायत पढ़ने जा रहे हैं। आप जैसे साधु संन्यासियों के पेट पालन के लिये यह रोजाना का सदावर्त लगा रखा है।”सेठ अपनी बातें कहता ही जा रहा था। महात्मा जी ने सोचा इसके अभिमान को अब दूर करना चाहिए। बीच में रोक कर सेठ जी से कहा “ आपके यहाँ दुनिया का नक्शा है।” सेठ ने कहा “ महाराज बहुत बड़ा नक्शा हैं।” महात्मा जी ने नक्शा मँगाया। उसमें सेठ से पूछा “ इस दुनिया के नक्शे में भारत कहाँ है? “ सेठ ने बताया। “ अच्छा इसमें मुम्बई कहाँ हैं? “ सेठ ने हाथ रखकर बताया। “ महात्मा जी ने फिर पूछा “ अच्छा इसमें तुम्हारी कोठी, बगीचे, मिलें बताओ कहाँ हैं? सेठ बोला “ महाराज दुनिया के नक्शे में इतनी छोटी चीजें कहाँ से आई? महात्मा ने कहा “ सेठ जी जब इस दुनिया के नक्शे में तुम्हारी कोठी, बगीचे, महल का कोई पता नहीं तो विश्व ब्रह्माण्ड जो भगवान के लीला ऐश्वर्य का एक खेल मात्र है उनके यहाँ तुम्हारे ऐश्वर्य का क्या स्थान होगा? “ सेठ जी समझ गया और उसका अभिमान नष्ट हुआ। वह साधु के चरणों में गिरकर क्षमा याचना करने लगा।

थोड़ी सी समृद्धि ऐश्वर्य पाकर मनुष्य इतना अभिमानी और अहंकारी बन जाता है। यदि वह अपनी स्थिति की तुलना अन्य लोगों से, फिर भगवान के अनन्त ऐश्वर्य से करे तो उसे अपनी स्थिति का पता चले। धन सम्पत्ति ऐश्वर्य का अभिमान वेथ है, सबसे बड़ी मूर्खता है।


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