संघर्षशीलों की क्षमता (Kahani)

July 1988

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महाभारत में घमासान युद्ध हो रहा था। द्रोणाचार्य और अर्जुन आमने-सामने थे। द्रोणाचार्य लड़खड़ा रहे थे। अर्जुन आगे बढ़ता आ रहा है।

कौरवों में से एक ने पूछा -इस आश्चर्य का क्या कारण है कि गुरु हारता और शिष्य जीतता जा रहा है।

द्रोणाचार्य ने कहा-मुझे लम्बा समय राजाश्रय की सुख सुविधाएँ भोगते हो गया, जब कि अर्जुन निरन्तर कठिनाइयों से जूझते रहा है।

सुविधा सम्पन्न अपनी सामर्थ्य गँवा बैठता है और संघर्षशीलों की क्षमता बढ़ती जाती है।


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