यह भ्रान्ति मिटनी ही चाहिए

July 1988

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

हम शताब्दियों से अपने खाने में नमक का प्रयोग करते आ रहे हैं पर यह सोचने की कभी आवश्यकता अनुभव नहीं की कि भोजन में इसकी क्या उपयोगिता हैं? बायोकैमिस्ट यंग कोलियर ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर बताया है कि पूर्व काल में भूमि में पोटेशियम और सोडियम की मात्रा में ठीक-ठीक संतुलन था। पर सहस्रों वर्ष की वर्षा ने अधिक घुलनशील सोडियम लवणों को धो बहाया। इसका दुष्परिणाम यह निकला कि भूमि से उत्पन्न खाद्य पदार्थों में पोटेशियम की वृद्धि तथा सोडियम की कमी हो गयी।

मानव और मानवेत्तर प्राणी इस अभाव को पूर्ण करने हेतु आतुर हो उठे। आखिर उन्हें एक चीज मिली-सोडियम क्लोराइड अथवा नमक। यह जितनी सस्ती थी, उतनी ही स्वास्थ्य के लिये खतरनाक पर व्यक्ति स्वाद के लिये अखाद्य वस्तुओं को भी खाने को तैयार हो जाता है जैसे शरीर में कैल्शियम के अभाव को कैल्शियम क्लोराइड से पूर्ण नहीं कर सकते वैसे ही प्राकृतिक सोडियम की कमी नमक खाकर पूरी नहीं की जा सकती है।

शरीर के पाचन यंत्रों के लिये इस प्रकार के रासायनिक पदार्थ हानि कारक है क्योंकि उन्हें कोषाणु खपा नहीं पाते। जब नमकीन भोजन किया जाता है तो थोड़ी देर बाद काफी प्यास लगती है। पाचन तंत्र गुर्दे के मार्ग से उसे बाहर निकालने के लिये तत्पर हो जाते है। इसे आमाशय तंत्र की श्लेष्मिक झिल्ली पर चोट पहुँचती है। शरीर के सब अंगों में गुर्दे को ही नमक से ही अधिक हानि होती है। नमक खाने से गुर्दे के अनेक रोगों को जन्म तो मिलता है। गुर्दे के रोगी जब चिकित्सक के पास पहुँचते है तो परहेज में सबसे पहले नमक ही बन्द किया जाता है।

यदि नमक की मात्रा इतनी अधिक है जिसे गुर्दे बहाकर बाहर निकाल पाते तो वह पैर निचले भाग में जमा हो जाता है। पानी एकत्र होने लगता है उनमें सूजन और दर्द शुरू हो जाता है। नमक रासायनिक प्रणाली में गड़बड़ी पैदा करता है। हृदय की गति तथा रक्तचाप में वृद्धि हो जाती है। कितने ही हृदय रोग ऐसे हैं जिनमें नमक की अल्प मात्रा भी बहुत हानिकारक होती है। शरीर इसका कोई उपयोग नहीं करता क्योंकि इसमें किसी प्रकार का पोषक तत्व नहीं होता। इससे मिरगी तथा पक्षाघात की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है। नमक स्नायविक प्रणाली को उत्तेजित करता है।

आहार विशेषज्ञ चिकित्सक रेमाण्ड बर्नार्ड नमक को भोजन नहीं मानते। जिस तरह किसी औषधि विक्रेता की दुकान में रखे पोटेशियम क्लोराइड का प्रयोग तर्क संगत नहीं कहा जा सकता। वही स्थिति भोजन के लिये नमक की भी है।

पक्षियों के लिये नमक एक प्रकार का विष है। नमक की अधिक मात्रा खाने से मृत्यु हो जाती हैं। नमक न खाने वाले व्यक्ति के लिये वह वस्तु उतनी ही आपत्तिजनक है जितनी सिगरेट न पीने वाले व्यक्ति के लिये उसका धुँआ या तम्बाकू न खाने वाले के लिये तम्बाकू।

नमक का प्रयोग बिल्कुल बन्द करने की बात भले ही अस्वाभाविक लगे पर इतना ध्यान अवश्य रखना चाहिए कि शरीर को जितने सोडियम क्लोराइड की आवश्यकता हो उतनी प्राकृतिक खाद्य पदार्थों के रूप में ही मिलनी चाहिये तभी शरीर के सेल उसे जज्ब कर सकते हैं। अध्यात्म की दृष्टि से भी नमक का प्रयोग रसना के असंयम को बढ़ावा ही देता है। संयमी ही आत्मिक प्रगति कर पाते हैं। अतः उस दिशा में आगे बढ़ना हो तो भी नमक का प्रयोग यथा संभव कम ही करना चाहिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles