विवेचना की तुलना (Kahani)

July 1988

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स्वर्ग क्या होता है और नरक कैसा? इस प्रश्न पर दो जिज्ञासुओं में वार्ता चल रही थी। विवेचन का कुछ निर्णय न निकल सका तो दोनों सुस्ताने के लिए वन-विहार को निकल पड़े।

देखा कि एक झाड़ी में से खरगोश निकाल-निकाल कर एक अहेरी उनका कतर व्यौंत कर रहा था। थोड़ी दूर आगे चलने पर देखा कि एक लड़का अपनी झोंपड़ी के आगे बैठा कबूतर चुगाने का आनन्द ले रहा था।

उनके विवाद का प्रत्यक्ष समाधान आया। अहेरी के कृत्यों में उनने नरक और लड़के की उदारता में उनने स्वर्ग की झाँकी पाई। विवेचना की तुलना में प्रत्यक्ष दर्शन अधिक प्रभावी सिद्ध हुआ।


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