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Akhand Jyoti
Year 1988
Version 2
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July 1988
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जिन दोषों के कारण हम दूसरों की भर्त्सना करते है, उनसे अपनी सफाई पहले कर डालों।
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Page Titles
अमरत्व का शैशवकाल-जीवन
तं पश्यते निष्कलं ध्यायमानः
संघर्षशीलों की क्षमता (Kahani)
देवत्व है अंतिम लक्ष्य जिसका, वह है मनुष्य
मुफ्त में विपुल धन (Kahani)
माता शबरी की सच्ची भक्ति
दिग्भ्रान्त मानवता को दिशा सुझाती उपनिषदों की वाणी!
भक्त को यही करना पड़ता (Kahani)
विज्ञान व अध्यात्म में विभेद नहीं, अभेद है
जीवन की सार्थकता (Kahani)
मृत्यु पर विजय (Kahani)
कायसत्ता के तीन कलेवर एवं उनका अनावरण
भय से पूरी तरह छुटकारा (Kahani)
मरने पर व्यर्थ का बवाल क्यों?
कलाओं का ज्ञाता (Kahani)
मानवी काया- एक उच्चस्तरीय विद्युत्भाण्डागार
प्रचुर सम्पदा कमाई (Kahani)
सम्पदा का अनर्थकारी प्रलोभन
बकरी का पीछा (Kahani)
कैसा था पुरातन कालीन सतयुग?
खजूर के झुरमुट में पहुँचे (Kahani)
सुसंतति का वरदान
तीर्थ यात्रा का उद्देश्य (Kahani)
शून्य में समाया अनन्त का वैभव
रसायन बदलेंगे अब मनुष्य का स्वभाव
अग्निहोत्र से समूह चिकित्सा
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प्राण ऊर्जा से उपचार का विज्ञान सम्मत आधार
सिद्धों की सहायता सदैव पुण्य प्रयोजनों के लिये
समृद्धि ऐश्वर्य पाकर (Kahani)
सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है।
विवेचना की तुलना (Kahani)
संगीत से होता है सद्भावनाओं का उभार
समझदार इकट्ठे हुए (Kahani)
यह भ्रान्ति मिटनी ही चाहिए
खँडहर में विचरता (Kahani)
समझिए अपने मन की भाषा को
सारी शक्ति गँवा देते है (Kahani)
परमार्थ के लिये अनिवार्य है साहस
पहले चरण में सुखा दिया (Kahani)
क्षमताओं की दृष्टि से पीछे नहीं है अन्यान्य जीव भी
स्फूर्तिदायिनी योगनिद्रा अभ्यास का अंग बने।
विद्वता, ज्ञान और सेवा (Kahani)
एक अनसुलझा प्रश्न?
अभिरुचि थी ही नहीं (Kahani)
प्रकाश रश्मियों की प्रभावकारी सामर्थ्य
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पुण्यतोया गंगा कहीं लुप्त न हो जाय?
विद्यासागर के नाम से प्रसिद्ध (Kahani)
अन्यान्य धर्म भी देते है पुनर्जन्म की साक्षी
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मनुज द्विज बनते है संस्कार से
नवसृजन हेतु सक्रिय प्रज्ञा परिकर
अपनों से अपनी बात - प्रज्ञापीठें सजीव रहें-सक्रिय बनें
यश भी और सम्मान भी (Kahani)
समर्पण का बल
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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