रसायन बदलेंगे अब मनुष्य का स्वभाव

July 1988

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मनुष्य के रंग, रूप, आकृति में क्षेत्रीय मौसम और जलवायु के आधार पर भिन्नता भले ही हो किन्तु शरीरगत ढाँचे के निर्माण में विशेष अन्तर नहीं पाया जाता। उसके भले बुरे का निर्धारण मस्तिष्क के आधार पर ही होता है। मनुष्य की प्रगति अवनति का आधार उसका मस्तिष्क ही है। बीज रूप से समस्त सम्भावनाएँ मस्तिष्क की अचेतन परतों में सन्निहित रहती हैं। साहित्यकार, कलाकार, विचारक ऋषि, मनीषी सभी का उद्भव मस्तिष्क जगत में से होता है। यदि इस केन्द्र में थोड़ी सी भी गड़बड़ आती है तो मनुष्य मूर्ख, पागल विक्षिप्तों की श्रेणी में गिना जाने लगता है। शरीर समर्थ रहते भी असमर्थों, असहायों जैसी गर्हित, गई गुजरी जिन्दगी जीने पर मजबूर होना पड़ता है। शरीर के हर अंग अवयव एवं क्रियाओं पर मस्तिष्क का नियंत्रण है। सोचने, विचारने सुख- दुःख की अनुभूति, समस्याओं का निराकरण सब मस्तिष्क के बल पर ही सम्पन्न होता है।

विज्ञान जैसे-जैसे प्रगति कर रहा है उतना ही अविज्ञात रहस्यों से पर्दा उठता जा रहा है। शरीर के अंग अवयवों में जो गतिशीलता दिखाई देती है वह स्वयं की नहीं है यह चेतना मस्तिष्क से मिलती है। यह दूसरी बात है कि मस्तिष्क कहीं अन्यत्र से, अविज्ञात से प्राप्त करता हो किन्तु समस्त अंग अवयवों के संचालन और नियमन के संकेत और प्रेरणाएँ मस्तिष्क से मिलती हैं। भावनाएँ, विचारणाएँ, कल्पनाएँ, उत्तेजनाएँ सब मस्तिष्क की इन सूक्ष्म परतों से उत्पन्न होती हैं। इन्हीं के आधार पर मस्तिष्क में से निकलने वाला स्नायु तंत्र जिनका जाल समस्त शरीर में फैला हुआ है, काम करता है। एच्छिक, अनैच्छिक समस्त क्रियाएँ चलना, फिरना, उठना, बैठना, बोलना, बात करना तथा हृदय की धड़कन, फेफड़ों का संचालन पाचन एवं गुर्दों की क्रिया का संचालन स्नायु तंत्र के निर्देशों पर ही होता है।

पिछले तीन दशकों में मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेकानेक अनुसंधानों से यह प्रमाणित हो गया है कि भावनाओं द्वारा कितने ही रोग उत्पन्न होते है। ऐसे रोग मानसिक रोग कहे जाते हैं। कितनी ही बार उनके लक्षण इतने अस्पष्ट होते हैं कि उन्हें शारीरिक-व्याधि ही समझकर उपचार में लगे रहते हैं।

मस्तिष्क को यदि सही ढंग से प्रशिक्षित किया जा सके शरीर, स्वास्थ्य एवं जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में आश्चर्यजनक सफलताएँ अर्जित की जा सकती हैं।

अब यह कहा जाने लगा है कि मस्तिष्क के संचालन में रासायनिक तत्वों की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी आधार पर ऐसा विशिष्ट रसायन उनके हाथ लग जाय जिससे मनोरोगों, की चिकित्सा की जा सके और बौद्धिक क्षमता का विकास किया जा सके। इन रसायनों द्वारा नशेबाजी की लत छुड़ाने,दर्द,पीड़ा,कष्ट में सहायता पहुँचाने की बात उचित और सम्भव भी दिखाई देती है किन्तु भावनाओं संवेदनाओं, आस्थाओं, चिन्तन के क्षेत्र में स्थूल प्रयासों से परिवर्तन सम्भव नहीं हो सकते क्योंकि भावनाओं, संवेदनाओं का उद्गम स्रोत मन की सूक्ष्म अचेतन परतों में है, जहाँ स्थूल प्रयासों की पहुँच नहीं है। वहाँ आध्यात्मिक उपचारों की ही पहुँच पकड़ सम्भव है। उन्हीं प्रयासों से इनमें परिवर्तन सम्भव है।

हाल ही में हारमोन ग्रंथियों उनके स्राव, संरचना और कार्य पद्धति पर भी विषद शरीर में अद्भुत परिवर्तन कर दिखाता है। इसलिए स्नायु रसायन शास्त्री ऐसे रसायनों की खोज में है जो भावनाओं पर नियंत्रण कर सकें उनका कहना है कि शरीर गत स्फूर्ति,दर्द और पीड़ा के निवारण में रसायनों द्वारा उपचार में सफलता प्राप्त कर ली गई है। इसके लिए उत्तरदायी घटक भी स्नायु कोषों की सूक्ष्म परतों में विद्यमान हैं। व्यवहार मनोविज्ञानी एण्ड्रयू बैप्ठिस्ट के अनुसार मस्तिष्क में दो प्रकार के हारमोन समूह पाए जाते हैं। मोनो अमीनो आक्सीडेज एन्जाइम्स, दूसरे न्यूरो ट्रान्स मीटर्स जिनमें एपीनेफ्रीन, डोपामीन एवं सिरोटिनिन प्रमुख हैं। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि जब मस्तिष्क में मोनो एमीनो एन्जाइम जिसे “माओ” भी कहा जाता है का स्राव अधिक होता है तब अकर्मण्यता, प्रमाद, निरुत्साह, बेचैनी तथा तनाव की प्रधानता देखी जाती है। जव न्यूरो ट्रान्समीटर सक्रिय होते हैं तब स्फूर्ति, चंचलता, प्रफुल्लता अनुभव होती है।

व्यवहार मनोविज्ञान एवं मनोरोग विशारद


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