अभिरुचि थी ही नहीं (Kahani)

July 1988

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गाय को सूखा भूसा खाना रुचता न था। वह मालिक के दिये उन तिनकों को मन मसोस कर खाती थी और आधे पेट रहकर ही किसी प्रकार गुजारा करती थी।

मालिक बात को ताड़ गया। उसने हरे कांच का चश्मा उस गाय की आँखों पर बाँध दिया। गाय प्रसन्नतापूर्वक उसी भूसे को खाने लगी। उसे वह हरियाली का ढेर जो दीखने लगा।

मनुष्य भी भ्रम जंजाल का चश्मा पहनकर वे कुकृत्यों करने लगता है जिसमें स्वभावतः उसकी अभिरुचि थी ही नहीं।


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