सफलता आत्मविश्वासी को मिलती है।

July 1988

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बाजार में वस्तुओं की कीमत दूसरे लोग निर्धारित करते हैं, पर मनुष्य के संबन्ध में उल्टा है। मनुष्य अपना मूल्याँकन स्वयं करता है ओर जितना वह मूल्याँकन करता है उससे अधिक सफलता उसे कदापि नहीं मिलती। एक सामान्य परिवार से उठ कर बैंजामिन डिजरायली जब इंग्लैण्ड के संसद सदस्य बने तो अन्य साथियों ने उनकी बड़ी उपेक्षा की। यहाँ तक कि वे जब बोलने के लिये उठते तो उन्हें बोलने भी नहीं दिया जाता।

पर इन परिस्थितियों में भी डिजरायली ने अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा। उसके प्रति अपनी दृढ़ निष्ठा को व्यक्त करते हुए वे उन सदस्यों से कहते जो उनके भाषण में व्यवधान डाला करते थे कि - “आपको एक दिन मेरी बातें अवश्य सुननी पड़ेंगी।”

यह डिजरायली नहीं, उसका आत्मविश्वास बोल रहा था। उन्हें अपनी आँतरिक शक्तियों पर विश्वास था। वे अपना उचित मूल्याँकन करना जानते थे और इसी का परिणाम है कि प्रयत्न और पुरुषार्थ के बल पर वे एक दिन इंग्लैंड के प्रधानमंत्री पद पर जा पहुँचें तथा जो लोग उनका उपहास किया करते थे वे ही उनके प्रशंसक और गुणगान करने वाले बन गये।

प्रत्येक व्यक्ति को यह मानकर चलना चाहिए कि परमात्मा ने उसे मनुष्य के रूप में बनाया और इस रूप में बनाते समय उसने मनुष्य की चेतना में सभी संभावनाओं के बीज डाल दिये है तथा उनके अंकुरित होने की क्षमताएँ भी डाल दी हैं। पर प्रायः देखने में आया है कि हममें से अधिकाँश व्यक्ति अपनी उन सुषुप्त क्षमताओं और संभावना के बीजों को विकसित तथा अंकुरित करने की चेष्टा तो दूर रही उनके संबन्ध में विचार तक करना नहीं चाहते।

इसके विपरीत आत्मविश्वासी भाग्य को अपने पुरुषार्थ का दास समझता है। न्यू हैम्पशायर में डैनियल वेब्सटर को बड़ी मुश्किल से पन्द्रह डॉलर का एक पद मिला था। इस नौकरी के लिये उसके पिता ने काफी पापड़ बेले और जब वे अपने लड़के को इस पद पर नियुक्ति दिलाने में सफल हो गये तो बहुत प्रसन्न हुये और डैनियल को बधाई भी दे डाली। बधाई के समय डैनियल ने बड़ी उदासीनता से कहा था कि यह मेरा लक्ष्य नहीं है और मैं इस पद पर थोड़े ही समय काम करूंगा। पिता ने नाराज से होकर कहा था - तुम्हें कौन गवर्नर बना देगा। तुम एक गरीब घर में पैदा हुए हो और गरीब आदमी को अपने निर्वाह का साधन मिल जाने पर ही संतुष्ट हो जाना चाहिए। प्रत्युत्तर में डैनियल ने कहा - “ नहीं मैं अपने आपको गरीब नहीं मानता। मुझे आशा है कि मैं इससे अच्छा काम कर सकता हूँ। मैं अदालतों में अपनी वाणी का प्रयोग करना चाहता हूँ दूसरों को काम सिखाने वाला नहीं” और इसी आत्मविश्वास के बल पर डैनियल ने अपने स्वप्नों को साकार कर दिखाया।

नैपोलियन को अपने विजय अभियान में आल्पस पार करने का जब मौका आया तो लोगों ने बहुत समझाया कि आज तक आल्पस कोई पार नहीं कर सका है और इसकी चेष्टा करने वालों को मौत के मुँह में जाना पड़ा है। किन्तु नैपोलियन ने कहा - “मुझे मौत के मुँह में जाना मंजूर है पर आल्पस से हार मानना नहीं। आज या तो यह पर्वत नहीं रहेगा अथवा नैपोलियन नहीं रहेगा “ और इस निश्चय के सामने आल्पस को झुकना पड़ा।

इस संसार में मनुष्य के लिये न तो कोई वस्तु या उपलब्धि अलभ्य है तथा न ही कोई व्यक्ति किसी प्रकार अयोग्य। अयोग्यता है तो इतनी भर कि वह स्वयं अपने को इस उपलब्धि के योग्य नहीं अनुभव करता। यदि अपनी क्षमताओं को पहचान कर उनका विकास किया जाय तथा आत्मबल की संजीवनी द्वारा उन्हें जीवन्त बनाया जाय तो मनुष्य परमात्मा का राजकुमार कहलाने की स्थिति प्राप्त कर सकता है।


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