समझदार इकट्ठे हुए (Kahani)

July 1988

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एक गाँव में किसी लड़के का विवाह था। ज्योंनार धूमधाम से हुई। जब हलवाई पकवान बना रहे थे तो घर की पालतू बिल्ली के मुंह में पानी आ रहा था। वह रोके न रुकती थी और दौड़-दौड़ कर रसोई घर में घुस जाती थी। अन्त में घर मालकिन ने गुस्से में ड़ाले के नीचे दबा दिया। ताकि भागदौड़ न करे। जूठन न करे।

घर के सब लोग काम में लग गये किसी को बिल्ली की याद न रही। कई दिन बन्द रहने के कारण वह मर गई। जब विवाह होकर वर वधू घर आये तो बिल्ली की याद आई उसे निकाला गया। जब वधू घर में प्रवेश कर रही थी। उसी समय मरी बिल्ली को बाहर पहुँचाया गया। इस संयोग को वधू ने समझा कि यह इस कुल की परम्परा है कि जब वधू प्रवेश करे तो बिल्ली मार कर उसे बाहर निकाला जाय। इसे उसने सदा स्मरण रखा।

कई वर्ष बीत गये। वधू के लड़का हुआ। बड़ा होने पर उसके विवाह का प्रबंध हुआ बारात गई। वधू वर वापस आये। सास ने बिल्ली मरवाई और जिस समय वधू का गृह प्रवेश हुआ, उसी समय मरी बिल्ली को बाहर फिकवाया गया।

यह परम्परा कई पीढ़ी तक चली। समझदार वर वधू का विवाह हुआ तो उनने उस विचित्र प्रथा के कारण का पता लगाया। विदित हुआ कि एक बार की गलती को ही परम्परा माना और उसका दुहराया जाना चल पड़ा है।

समझदार इकट्ठे हुए और उस मूर्खता पूर्ण परिपाटी को बन्द कर दिया गया।


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