अपनों से अपनी बात

September 1987

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गत वर्ष राष्ट्रीय एकता सम्मेलनों सहित शतकुँडी गायत्री महायज्ञों का देशव्यापी आयोजन था उसका अधिकाँश भाग पूरा हो गया जो शेष है वह इस वर्ष पूरा होना जाना निश्चित है इन आयोजनों में सम्मिलित होने वालों ने साम्प्रदायिक क्षेत्रीय भाषापाल, जातिगत, लिंगागत विलगाव को निरस्त करने की अग्निदेव की साक्षी में प्रतिज्ञा की और उसे आजीवन निर्वाह के लिए भावनापूर्वक प्रतिज्ञा ली। यह यज्ञ आयोजन जहाँ वातावरण वायुमण्डल में परिशोधन का प्रयोजन पूरा करते रहे वही उन्होंने अनेकता में एकता उत्पन्न करने की भी महती भूमिका निबाही। न्यूनतम खर्च में इतने विशालकाय धर्मानुष्ठान और किसी प्रकार संभव नहीं थे। जितनी मितव्ययिता पूर्वक इन्हें सम्पन्न किया गया और महान प्रयोजन की पूर्ति के लिए कारगर कदम उठाया गया। इतनी बड़ी उपस्थिति इतनी विचार प्रेरणायें इतनी प्रतिज्ञायें देखते हुये इन आयोजनों को अपने ढंग का अनोखा एवं अभूतपूर्व ही कहा जा सकता है।

नये वर्ष का दीप यज्ञ कार्यक्रम

आषाढ़ी पूर्णिमा गुरु-पूर्णिमा से अपना साधना वर्ष प्रारंभ होता है इसके लिए जो कार्यक्रम निर्धारित किया गया है, उसे व्यक्ति निर्माण एवं परिवार निर्माण की सम्मिलित योजना कहा जा सकता है। गत वर्ष के आयोजन सामूहिक थे इसलिये उनमें बड़ी संख्या को उपस्थिति के प्रयत्न किये गये। चालू वर्ष के छोटे आयोजनों को परिवार गोष्ठियाँ कहना चाहिए। इनकी प्रत्यक्ष रूप रेखा नितान्त सरल है, उनमें समय, साधन, व्यवस्था आदि की दृष्टि से नितान्त सरलता रखी गयी है, ताकि इस माध्यम से व्यापक जनसंपर्क जन जागरण लोक शिक्षण पूरा हो सके। परिवार निर्माण की महती आवश्यकता को पूरा किया जा सकें। इन्हें हर प्रज्ञा परिजन को अपने यहाँ करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है इस परम्परा को भविष्य के लिए स्थित परम्परा का रूप जो दिया जाना है।

अब तक जन्म दिन मनाये जाने की परम्परा चलती रही है। उसके लिए जन्म दिन आने की प्रतिज्ञा की जाती थी अब यह झंझट न रहेगा। हर परिवार में एक-एक दिन का यह आयोजन चलता रहे, इस दृष्टि से अपने-अपने संपर्क क्षेत्र में सभी लोग तारीखों के निर्धारित क्रम के हिसाब से योजना बनायेंगे। इस प्रकार अपने यहाँ जितने परिवार होगे उन सभी को बारी बारी से अपने यहाँ घरों में यह उपक्रम सम्पन्न करने का अवसर मिल जायेगा।

परिवार गोष्ठी पारीक्रम के अनुरूप जिस दिन उपयुक्त बैठती हो उसी दिन का पूर्व निश्चय कर लिया जाय। समय प्रातः काल का अधिक उपयुक्त बैठता है।

क्योंकि उस समय प्रायः सभी लोग घरों पर रहते हैं। अपने परिवार के अतिरिक्त पड़ोसियों, मित्रों परिचितों को भी आमंत्रित करना चाहिए ताकि इस प्रेरणा पर्व का लाभ वे सब भी उठा सके और उसका अनुकरण अपने यहाँ भी कर सकें।

क्रम

कलश एवं थाली स्थापित करें। सिंचन पवित्रीकरण करें। कलश में सर्वदेव नमस्कार करके पंचोपचार पूजन करें। स्वस्तिवाचन सबको पुष्प देकर कराये। पुष्पादि एकत्रित करके चढ़ाये सबको चन्दन रोली तिलक लगावे। दीप अगरबत्ती प्रज्वलित करते हुए मंत्रोच्चार करें। 24 मंत्र पूरे होने पर थाली घुमाये आरती ले अगरबत्ती की भस्म धारण करें सब शीत प्रवचन, संकल्प का क्रम चलाये। अन्त में सूर्यार्घ दान करें, तत्पश्चात सौंफ, धनिया आदि देकर एकत्रित परिजनों को विदा करें।

क्रिया कृत्य सीधा सादा सा है। उसे दीपयज्ञ का नाम दिया गया है एक थाली चौक पूरा जाय। उसमें पाँच-पाँच अगरबत्तियों की पाँच जुगली सजायी जाये। पाँच दीप जलाये जाये। साधन सामग्री इतनी भर जुटाने से प्रयोजन पूरा हो जाता है। उपस्थित लोग मिलकर 24 बार गायत्री मंत्र का उच्चारण करें। जल कलश देव पूजन तथा सूर्यार्घ दान के लिए अलग से सुसज्जित रख लिया जाय। सभी उपस्थित लोगों के मस्तक पर चंदन रोली का तिलक लगाया जाय।

उपरोक्त कृत्य से यज्ञ कार्य सम्पन्न समझा जा सकता है। अभी दो पक्ष और शेष रहे। एक संगीत प्रवचन दूसरा देव दक्षिणा। संगीत प्रवचन के रूप में आधा घंटे का माताजी तथा देवकन्याओं का संगीत टेप कर दिया गया है आधे घंटे का पु0 गुरुदेव का इस योजना का महत्व समझाने तथा स्वरूप बताने वाला प्रवचन है। एक-एक घंटे के प्रवचन टेप कर दिये गये हैं। इसके रहते गायकों, वक्ताओं की आवश्यकता नहीं रह जाती। आनन्द उतना ही आता है वरन् उससे भी अधिक क्योंकि साधारण गायन प्रवचन में वक्ता की जीभ भर काम करती है। इस टेप में वैखरी, मध्यमा, परा, पश्यन्ती चारों वाणियों का प्रयोग हुआ है इसलिए उनका प्रभाव भी उसी अनुपात में अत्यधिक होना चाहिए।

टेप शान्ति कुंज में उपलब्ध है टेप रिकार्डर किसी उकरमना से माँगकर भी काम चलाया जा सकता है जिनकी सामर्थ्य हो वे लोग लगभग 400 रु0 खर्च करके अपना निजी टेप रिकार्डर भी काम में लाते रह सकते हैं इससे भी अधिक बन पड़े तो उसी परिवार में रात्रि के समय एक घंटे का स्लाइड प्रोजेक्टर भी दिखाया सुनाया जा सकता है इतना बन पड़े तो समझना चाहिए कि आयोजन हर दृष्टि से अपनी क्रिया-प्रतिक्रिया सम्पन्न करने में समर्थ हो गया।

तीसरा पक्ष है देव दक्षिणा का दीप यज्ञ में भी देवशक्तियाँ आमंत्रित एवं उपस्थित रहती है। क्योंकि स्वस्ति वाचन, कलश पूजन के मंत्रों से उन्हें भी आहूत किया जाता है अब यह आवश्यकता रह जाती है कि जिन्हें आमंत्रित किया गया है उन्हें कुछ उपहार भी देकर भेजा जाय इसी को देव दक्षिणा कहते हैं।

इस प्रथम वर्ष के लिए चार देव दक्षिणायें निर्धारित की गई है। अगले वर्षों में आवश्यकतानुसार उनमें परिवर्तन भी होता रहेगा। चार देव दक्षिणाओं में प्रथम है 1- नशे बाजी का त्याग 2- बिना दहेज जेवर की नितान्त सादी शादियां 3- प्रौढ़ शिक्षा का विस्तार 4- हरीतिमा अभियान। इन चारों में से कम से कम एक प्रतिज्ञा तो करनी ही चाहिए और उसे कापी साइज के सादे कागज पर अपने पूरे पते सहित लिखकर शाँतिकुँज हरिद्वार के पते पर स्थायी सम्पदा की तरह सुरक्षित रखे जाने की तरह भेजना चाहिए।

नशेबाजी शरीर की जीवनी शक्ति, मस्तिष्क की दूरदर्शिता नष्ट करती है। परिवार में बुरी परम्परा डालती है आर्थिक दृष्टि से यह बहुत व्यय साम्य है। कृत की बीमारी की तरह एक से दूसरे में फैलती है नशे बाज का व्यक्तित्व घटिया बनता है और समाज में से उसकी प्रतिष्ठा एवं प्रमाणिकता दिन-दिन घटती चली जाती है हानियाँ अनेक है लाभ कुछ नहीं इन बातों पर विचार करते हुए जो कोई नशा पीते हैं उन्हें छोड़ देना चाहिए। जो नहीं पीते हैं उन्हें आगे न पीने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।

दूसरी प्रतिज्ञा है कि बिना दहेज की, बिना प्रदर्शन की बिना जेवर की सौम्य शादियाँ करना। यह कुरीति निवारण की दिशा में समाज निर्माण की दिशा में क्राँतिकारी कदम है। आमदनी बढ़ा लेने पर भी एक व्यक्ति को अपने गृहस्थ जीवन में चार पाँच शादियाँ करनी पड़ती है। इनमें इतना धन व्यय हो जाता है कि उसकी पूर्ति गरीब,ऋणी रहकर या बेईमान बनकर ही पूरी करनी पड़ती है यदि यह राशि सुरक्षित रहे तो उसके सहारे कोई भी परिवार अपने को सम्पन्न, सुसंस्कृत, समुन्नत बना सकता है खर्चीली शादियाँ हमें दरिद्र और बेईमान बनाती है इस तथ्य को समझते हुये हमें साहसपूर्वक यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि खर्चीली शादियाँ नहीं करेंगे कहीं होती होगी तो उसमें सम्मिलित नहीं होंगे। विवाह योग्य लड़की लड़कों को प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि वे दहेज व जेवर वाली धूमधाम की शादियाँ स्वीकार नहीं करेंगे भले ही उन्हें अविवाहित रहना पड़े।

यह एक साहस भरा कदम है रूढ़िवादी प्रतिगामी लोग अवश्य ही इसमें अड़ंगे अटकायेगें। उपहास करेंगे सम्मिलित तो होगे ही नहीं। इन सबसे जूझना हर किसी का काम नहीं है इसलिये सरलता इसमें है कि पाँच व्यक्ति कन्या पक्ष के और पाँच व्यक्ति वर पक्ष के लड़की लड़के को लेकर शाँतिकुँज हरिद्वार चले आये। यहाँ सब प्रकार की सुविधायें उपलब्ध है बिना किसी खर्च के शादियाँ हो जाती है इस सुविधा से लाभ उठाया जाय। घर लोकर संबंधियों को प्रीतिभोज करा दिया जाय। जो राशि दहेज में देनी है जेवर में लगानी है वह एकत्रित करके स्त्री धन के रूप में कन्या के नाम “फिक्स डिपोजिट” में जमा करा दिया जाय जो हर पाँच वर्ष बाद दूना होता रहे और आड़े वक्त में काम आये। इस संबंध में उपजातियों का बंधन तोड़ने की भी आवश्यकता है जाति की सीमा ही पर्याप्त मान ली जाय। उपजातियों को अनुबन्ध स्वीकार न किया जाय। यदि लड़की बड़ी हो गयी हो और वयस्क हुआ वर एक दो वर्ष छोटा है तो उसका भी विचार न किया जाय। तीर्थ स्थान में हुये विवाह हर दृष्टि से शुभ होते हैं शाँति कुँज में हुये विवाहों का अब तक का इतिहास यह रहा है कि वे हर दृष्टि से शुभ हुये हैं फले फूले है।

देव दक्षिणा का तीसरा पक्ष है प्रौढ़ शिक्षा अपने देश में वे निवाई अनपढ़ है। वे वयस्क हो गये है और काम धंधे में लग गये हैं समाज का संचालन इसी वर्ग के हाथ है इसे अनपढ़ नहीं छोड़ जा सकता। सरकार बच्चों को पढ़ाने की व्यवस्था भर कर पाती है वह प्रौढ़ों को भी शिक्षित बना देगी यह आशा नहीं करनी चाहिए। शिक्षितों को शिक्षा ऋण चुकाने की प्रेरणा देनी चाहिए। उनमें समयदान लेकर अध्यापन कार्य में लगाना चाहिए। निजी प से एक व्यक्ति कम से कम पाँच अशिक्षितों को तो साक्षर बनाने की प्रतिज्ञा में हो सकता है उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है इसके अतिरिक्त मुहल्ले-मुहल्ले गाँव-गाँव प्रौढ़ पाठशालायें चल सकें तो उन्हें चलाने का भी पूरा-पूरा प्रयत्न करना चाहिए।

स्कूली बच्चों के लिए इनके बचे हुये समय में “बाल संस्कार शालाएं” चलायी जाय जिसमें वे कक्षा का दिया हुआ पाठ भी करें और स्काउटिंग जैसे सुसंस्कारी कार्यक्रमों में भी भाग ले।

चौथा संकल्प हरीतिमा वर्धन का है कुछ न बने तो घर में पुष्पवाटिका, शाक वाटिका तुलसी आरोपण जैसे सुगम संकल्प तो किये ही जा सकते हैं।

एक उत्साही व्यक्ति यदि सच्चे मन से उपरोक्त समाज निर्माण के कार्यक्रम में जुट पड़े तो अपने बलबूते परिवार गोष्ठियों की शृंखला चलाता रह सकता है। घर-घर नवयुग का अलग जगा सकता है देव दक्षिणा के चारों पक्ष पूरे करता रह सकता है नशेबाजी खर्चीली शादियाँ छोड़ने और प्रौढ़ शिक्षा तथा वृक्षारोपण का प्रचलन करने में इसे आशातीत सफलता मिलती रह सकती है। अकेला सूर्य अकेला चन्द्रमा आकाश को प्रकाशवान बनाये रहते हैं। एक युग शिल्पी अपने निजी कामों को करते हुए अपने संपर्क क्षेत्र में यह सभी रचनात्मक कार्यक्रम गति शील कर सकता है। इस वर्ष शुभ प्रचलन को व्यवहार से उतारने के लिए प्रत्येक प्राणवान को इस हेतु आगे कदम बढ़ाना चाहिए। नियमित समय दान देना चाहिए।

समाज निर्माण के निर्गमन चल रहे राष्ट्रीय एकता सम्मेलन एवं शतकुण्डीय गायत्री यज्ञों की शृंखला भी गत वर्ष की भाँति इस वर्ष भी चलाती रहेगी इसके साथ ही “दीप यज्ञ” आन्दोलन के अंतर्गत परिवार गोष्ठियों का भी क्रम चलाना चाहिए। वे एक घंटे में ही संभव हो जाते हैं प्रातः काल उन्हें दो घरों में सम्पन्न किया जा सकता है। उन्हीं दो घरों में स्लाइड प्रोजेक्टर भी दिखाये जा सकते हैं। इसमें देखने सुनने वालों को युग चेतना का प्रकाश मिलता है और दिखने सुनाने वाले को वृकत्तव करना का अभ्यास करने का अवसर मिलता है। इस दुहरे लाभ को छोड़ा नहीं जाना चाहिए।

पिछले दिनों झोला पुस्तकालय और दीवारों पर आदर्श वाक्य लेखन का क्रम चलाता रहा है उसे भी और भी अधिक उत्साहपूर्वक इस वर्ष चलाना चाहिए। दीवारों पर आदर्श वाक्य लिखने के लिए स्टेशिल बना दिये गये हैं जिसके सहारे मिनटों में सुन्दर अक्षरों में वाक्य लिखे जा सकते हैं।

उपरोक्त सभी आन्दोलनों की सामग्री प्रायः एक हजार रुपये में नये सिरे से बन जाती है जिनके पास उपरोक्त वस्तुओं में से कुछ साधन जुटे है उन्हें उतना ही पैसा कम खर्च करना पड़ेगा प्रज्ञा पुत्रों में से प्रत्येक को इस वर्ष उपरोक्त योजना को हाथ में लेना ही चाहिए और अपने क्षेत्र को नव जागृत से आलोकित करने का व्रत लेकर इसे पूरा करना ही चाहिए।


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