दुर्योधन को अपनी माता गान्धारी की वचन सिद्धि का विश्वास था। सो वह अंतिम युद्ध में जाते समय माता के पास गया और विजय का आशीर्वाद माँगने लगा। गान्धारी ने इतना ही कहा- “जहाँ धर्म होगा, वहीं जीत होगी।”
इतना कहने से दुर्योधन का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता था। वह स्पष्ट शब्दों में अपनी विजय का आशीर्वाद चाहता था। माता से उसने वैसा ही आग्रह किया।
गान्धारी ने बताया- आशीर्वाद तभी तक सफल होते हैं जब तक नीति-न्याय के साथ जुड़े रहते हैं। पक्षपात प्रेरित होने पर वे निष्फल ही नहीं चले जाते, दाता के पास से सदा के लिए उस सामर्थ्य को भी ले जाते हैं। अस्तु मैं तुम्हारी मर्जी से नहीं, अपने विवेक से ही आशीर्वचन बोलूँगी।