जैव चुम्बकत्व की चमत्कारी शक्ति

September 1987

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मानव को मिली अनेकानेक विभूतियों में एक हैं- चुम्बकत्व। चुम्बक का गुण है- “आकर्षण”। इसकी यह अदृश्य शक्ति वस्तुओं को अनायास अपनी ओर खींचती रहती है। यदि चुम्बक से उसकी इस क्षमता को पृथक् कर दिया जाय, तो वह मात्र धातु खण्ड बन कर रह जायेगा। तात्पर्य यह है कि उसमें जो कुछ भी विलक्षणता नजर आती है, यह उसी दृश्य शक्ति के कारण है। यह चुम्बकत्व सिर्फ लौह-खण्डों में ही नहीं पाया जाता, वरन् सम्पूर्ण जीव-जन्तुओं के शरीरगत क्रिया-कलाप सुचारु रूप से चलते रहते हैं। मनुष्यों में भी इसका एक अंश पाया जाता है। असीम सम्भावनाओं के रूप में जो क्षमता उसमें निहित है, वह इसी शरीर चुम्बकत्व के कारण है। व्यक्तित्व सम्पन्न लोग अपने अन्दर ओजस, तेजस, वर्चस इसी के द्वारा पैदा कर पाते हैं।

मनुष्य में इसके दो प्रवाह हैं- एक ऊर्ध्वगामी - दूसरा अधोगामी। ऊर्ध्वगामी मस्तिष्क में केंद्रित है। उस मर्मस्थल के प्रभाव से व्यक्तित्व निखरता और प्रतिभाशाली बनता है। बुद्धि कौशल, मनोबल के रूप में - शौर्य, साहस, आदर्शवादी उत्कृष्टता के रूप में यह चुम्बकत्व मिश्रितित ही काम करती है। मनुष्य के चेहरे के इर्द-गिर्द छाये तेजोवलय - ओजस - आँरा को इस ऊर्ध्वगामी विद्युत का ही प्रतीक मानना चाहिए। अधोगामी विद्युत जननेन्द्रियों में केन्द्रित रहती - रति-सुख का आनन्द देती और संतानोत्पादन की उपलब्धि प्रस्तुत करती है। यौन आकर्षण के पीछे यही चुम्बकीय विद्युत काम करती देखी जाती है।

ऊर्ध्वगामी और अधोगामी चुम्बकीय प्रवाह उत्तरी, दक्षिणी ध्रुव की तरह भिन्न प्रकृति के होते हुए भी परस्पर सम्बद्ध हैं। कामोत्तेजना और काम विकार के शमन की प्रक्रिया का क्रमशः इस अधोगामी-ऊर्ध्वगामी प्रवाह की परिस्थिति ही मान सकती है। जहाँ शरीर को कई प्रकार के खाद्य पदार्थ एवं पोषण चाहिए, वहाँ उसे वातावरण में संव्याप्त चुम्बकीय ऊर्जा की मात्रा भी उसी प्रकार चाहिए, जैसे कि साँस के लिए हवा की जरूरत पड़ती है। इसी प्रकार मस्तिष्क को भी अपनी बैटरी चार्ज करने वाला ‘चार्जर’ चाहिए, अन्यथा वह डिस्चार्ज होती चली जायेगी और मनुष्य अपने ओजस् को, व्यक्तित्व में झलकते आकर्षण को, अपनी प्रखरता को गँवा बैठेगा। इतना ही नहीं, प्रयोग-परीक्षणों से अब यह भी ज्ञात हो चुका है कि यह काय-चुम्बकत्व दिशा-ज्ञान में भी सहायक होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अंधे लोग इसी चुम्बकत्व के कारण मार्ग निर्धारण में सफलता पाते और कुशलतापूर्वक गंतव्य तक पहुँचते हैं।

वैज्ञानिकों ने इस क्षमता को ‘चुम्बकीय इन्द्रिय’ बताते हुए कहा है कि पृथ्वी का चुम्बकत्व मानवी चुम्बकत्व पर प्रभाव डाले, इसमें दूसरे प्रयोग में रखी छड़ ने व्यवधान डाला। मानवी चुम्बकत्व अपनी क्षमता के सहारे अपनी दिशा स्वयं ढूंढ़ने में मनुष्य को सहायता करता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि मनुष्य दिन-प्रतिदिन के जीवन में अपनी इस चुम्बकीय क्षमता का सुनियोजन करता है। इस प्रकार छठी इन्द्रिय (अर्थात् चुम्बकीय इन्द्रिय) कोरी कल्पना नहीं है।

यह चुम्बकत्व यदा-कदा जब अधिक परिमाण में उत्पन्न हो जाता है और शरीर द्वारा उसका सदुपयोग नहीं हो पाता, तो बाहर लीक करने लगता है और विभिन्न प्रकार के क्रिया-कौतुक पैदा करता है। इसी प्रकार का एक प्रसंग मैरीलैण्ड (अमेरिका) के कॉलेज आफ फार्मेसी की एक छात्रा ‘लुई है बर्गर’ के साथ देखा गया। उसकी उँगलियों के अग्रभाग में चुम्बकीय गुण था। आधी इंच मोटी, एक फुट लम्बी लोहे की छड़ वह उँगलियों के पोरों से छूकर अधर में उठा लेती थी। धातुओं से विनिर्मित वस्तुएँ उसके हाथ में चिपक कर रह जाती थीं। अन्य विद्युत् महिलाओं की तरह किसी मनुष्य द्वारा उसे छूने पर बिजली का झटका तो नहीं लगता था, पर एक विचित्र-सा आकर्षण उसके समीप आने पर लोग महसूस करते थे।

अभी तक जीव विज्ञानी और मनोवैज्ञानिक यह नहीं समझ पा रहे थे कि किसी को देखकर अनायास अपनापन महसूस होना, उसकी ओर आकर्षित हो जाना एवं किसी की सूरत देखते ही डर या घृणा का अनुभव होना- ऐसा क्यों होता है? पर अब इसी गुत्थी का हल उन रूसी वैज्ञानिकों ने ढूँढ़ निकाल है, जो सतत् परामनोविज्ञान की शोध में निरत रहते हैं। उनने जैव चुम्बकत्व से संबंधित कुछ दिलचस्प निष्कर्ष अभी पिछले दिनों विभिन्न वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित किये हैं। जिनसे इस विषय पर प्रकाश पड़ता है। प्रोफेसर बी.वी. येफिमोव का कहना है कि इस सारी क्रिया का कारण जीव जगत में, जिसमें वनस्पतियाँ भी शामिल हैं, एक प्रकार के चुम्बकत्व का होना है। उनके अनुसार पक्षियों का पंक्तिबद्ध होना या अलग-अलग उड़ना, उत्तर की ओर बोये जाने वाले बीजों में अन्य दिशाओं की अपेक्षा कम समय में अंकुर फूटना आदि विलक्षणताएं पृथ्वी तथा जीव-वनस्पतियों के चुम्बकीय तत्वों के कारण ही देखने को मिलती है।

शोधों द्वारा ज्ञात हुआ है कि चुम्बक का उत्तरी ध्रुव जीवाणु क्रिया को नियंत्रित करता है और दक्षिणी ध्रुव शक्ति पोषण की आवश्यकता पूरी करता है। अस्वस्थता को इन दो वर्गों में वर्गीकृत करके यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि चुम्बक की दोनों धाराओं में से किसका, कहाँ और कितना उपयोग किया जाए? यह इस सिद्धान्त का प्रयोग अब चिकित्सा जगत में भी सफलतापूर्वक किया जा रहा है। स्विट्जरलैण्ड के डॉक्टर फिलिप्स आरोलस पेरासेल्सस ने कितनी ही बीमारियों का कारण शरीरगत चुम्बकत्व की विकृति एवं विश्रृंखलता को सिद्ध किया है। ऐसे रोग जिनका कारण ठीक से वे समझ नहीं पा रहे थे और चिकित्सा के अनेक प्रयोग असफल रहे थे, डॉ. फिलिप्स ने रुग्ण केन्द्र मूलों में चुम्बक की आवश्यक मात्रा पहुँचा कर उन्हें उन रोगों से मुक्ति दिलाई। जर्मनी के बान-हेलमाण्ट इसी शक्ति का उपयोग करके शारीरिक और मानसिक रोगियों को कष्ट मुक्त करने में ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। भारत में भी चुम्बकोपचार के विभिन्न केन्द्र सफलतापूर्वक चल रहे हैं।

महामानव महापुरुषों में भी यही चुम्बकत्व काम करता है। वे इसे इस स्तर तक विकसित कर लेते हैं कि जहाँ भी, जिस भी क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, वहीं अपने प्रभाव क्षेत्र से अनेकों को लाभ देते देखे जाते हैं।

ईसा मसीह, मुहम्मद जरथुस्त्र आदि धार्मिक क्षेत्र के मनस्वी ही थे, जिन्होंने लोगों को अभीष्ट पथ पर चलने के लिए विवश किया। उपदेशक लोग आकर्षक प्रवचन देते रहते हैं, पर उनकी कला की प्रशंसा करने वाले भी उस उपदेश पर चलने के लिए तैयार नहीं होते। इसमें उनके प्रतिपाद्य षिय का दोष नहीं, उस मनोबल की कमी ही कारण है, जिसके बिना सुनने वाले के मस्तिष्क में हल-चल उत्पन्न हो सकना सम्भव न हो सका। नारद जी जैसे मनस्वी ही अपने स्वल्प पुरुषार्थ से लोगों की जीवनधारा बदल सकते थे। वाल्मीकि, ध्रुव, प्रहलाद, सुकन्या आदि कितने ही आदर्शवादी उन्हीं की प्रेरणा भरी प्रकाश किरण पाकर आगे बढ़े थे।?

समर्थगुरु रामदास, रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद, गुरुगोविन्द सिंह, दयानन्द, कबीर आदि मनस्वी महामानवों ने अपने समय के लोगों को उपयोगी प्रेरणाएँ दी थीं और अभीष्ट पथ पर चलने के लिए साहस उत्पन्न किया था। गाँधी जी की प्रेरणा से स्वतंत्रता संग्राम में अगणित व्यक्ति त्याग-बलिदान करने के लिए किस उत्साह के साथ आगे आए, यह अभी पिछले ही दिनों की घटना है। वस्तुतः ऐसे चमत्कार महामानवों के व्यक्तित्व में घनीभूत काय-चुम्बकत्व के कारण ही सम्भव हो पाते हैं।

हम में से प्रत्येक में इस तत्व का समावेश सृष्टा ने किया है, जिससे कि हम उसका उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की सफलताएँ अर्जित करने में कर सकें। पर इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हममें से अधिकाँश उस शक्ति का दुरुपयोग कर छूँछ जैसी स्थिति में आ जाते और जीवन को दीन-दयनीय बना लेते हैं। यदि इस स्थिति से बचा जा सके, उस अमूल्य निधि का सदुपयोग किया जा सके तो हम भी अपना व्यक्तित्व वैसा ही उत्कृष्ट और आकर्षक बना सकते हैं, जैसे कि हमारे पूर्वज ऋषि व देव मानव थे।


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