कबीर सिद्ध पुरुष की तरह प्रख्यात हो गए दूर-दूर से लोग आते। तब भी वे पहले की ही तरह कपड़ा बुनते रहते। और साथ-साथ सत्संग चलाते।
शिष्यों में से एक ने पूछा- आप जब साधारण थे तब कपड़ा बुनना ठीक था। पर अब-जब कि सिद्ध पुरुष हो गए हैं और निर्वाह में कमी नहीं रहती तो आप कपड़ा क्यों बुनते हैं?
कबीर ने सरल भाव से कहा- पहले मैं पेट पालने के लिए बुनता था। पर अब मैं जन समाज में समाए हुए भगवान का तन ढँकने और अपनी कमियों को सुधारने के लिए बुनता हूँ।
कार्य वही रहने पर भी दृष्टिकोण की भिन्नता से उत्पन्न होने वाले अन्तर के समझने से शिष्यों का समाधान हो गया।