सभी की भलाई करो (kahani)

September 1987

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बादशाह को एक कर्मचारी नौकर की आवश्यकता थीं तीन व्यक्ति उसके पास उम्मीदवार के रूप में आए। बादशाह ने उनकी व्यवहार्य बुद्धि की परीक्षा ली, उन्होंने पूछा “यदि तुम्हारी व मेरी दाढ़ी में एक साथ आग लग जाय तो तुम क्या करोगे?

 “ पहिले व्यक्ति ने कहा, “हुजूर मैं पहिले आपकी दाढ़ी बुझाऊँगा” दूसरे ने उत्तर दिया “मैं तो पहली अपनी दाढ़ी बुझाऊँगा’ फिर आपकी” तीसरे ने तपाक से कहा “मैं एक हाथ से आपकी व दूसरे से अपनी बुझाऊँगा।

” बादशाह ने तीसरे व्यक्ति को रख लिया व वह अपने दरबारियों से बोला, “अपनी उपेक्षा कर दूसरों की रक्षा करना अव्यावहारिक है जब मनुष्य स्वयं की रक्षा नहीं कर सका तो दूसरों की कैसे कर सकता है ।

 दूसरों की भलाई करते रहने के लिये आवश्यक है कि हम स्वयं भी सुरक्षित, समर्थ व क्षमतावान बने रहें, परन्तु मात्र अपने आप तक ही सीमित रहना भी उचित नहीं अपने ही सूखों के लिये, अपने ही क्षेत्र के लिये सोचते रहना स्वार्थपरता है ।

 खुदा स्वार्थी को भी पसन्द नहीं करता। खुदा को वही व्यक्ति पसन्द है जो स्वयं का भी भला करता रहे-स्वयं को भी विकसित करता रहे व दूसरों को भी आगे बढ़ाने का प्रयत्न करता रहे।


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