सिरजनहार का जगती को अनुपम उपहार

September 1987

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मानवी काया सृष्टा का एक अनुपम उपहार है। प्रत्यक्ष काया के अन्दर ही सूक्ष्म तथा कारण शरीर, पंचकोश, षट्चक्रों के रूप में अनेकानेक दिव्य विभूतियों के भाण्डागार भरे पड़े हैं। योग साधना के विभिन्न उपक्रमों को अपनाकर उन्हें जागृत करके मनुष्य अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न बन सकता है। भूत, भविष्य की बातें जान लेने की सामर्थ्य हस्तगत कर सकता है। उसके लिए तब देश, काल एवं समय की दूरी का सीमा बन्धन समाप्त हो जाता है। प्राचीन काल के भारतीय, ऋषि-मनीषी इसी स्तर को प्राप्त करने के पुरुषार्थ में संलग्न रहते थे।

योगशास्त्र के ज्ञाता आचार्यों ने अलौकिक क्षमताओं को जागृत करने के जिन विधि-विधानों, नियमों का आविष्कार किया था आज के भौतिक विज्ञानी भी उसकी पुष्टि अपने ढंग से कर रहे हैं। ऐसा ही एक प्रयोग पिछले दिनों ‘रायल यूनिवर्सिटी ऑफ रोम’ में किया गया था। विषय था- मनुष्य की दूर-दर्शन शक्ति का विकास और प्रदर्शन। सुप्रसिद्ध स्नायु मनोवैज्ञानिक डॉ. गिसेप कालिगाँरिस ने इसके लिए एक व्यक्ति के शरीर के कुछ मर्मस्थलों को 15 मिनट तक दबाया जिससे उसकी इन्द्रियातीत क्षमता विकसित हो गई। उसे एक दीवार की दूसरी ओर अवस्थिति व्यक्तियों और वस्तुओं का सूक्ष्मातिसूक्ष्म सारा विवरण बता दिया। डॉ. कालिगाँरिस ने उपस्थित अन्यान्य वैज्ञानिकों, प्राध्यापकों को बताया कि “यदि शरीर के कुछ विशिष्ट स्थानों को जागृत किया जा सके तो व्यक्ति को अतीन्द्रिय अनुभूति प्राप्त हो जाती है और वह उन सब वस्तुओं को देखने में सक्षम हो जाता है जो चर्म चक्षुओं से दिखाई नहीं देती। इस सामर्थ्य के विकसित होने पर मनुष्य कितनी भी दूर स्थित किसी भी वस्तु को एवं किसी भी घटित अथवा संभावित घटनाक्रम को देख सुन सकता है।”

मनोवैज्ञानिक जगत में आज ई.एस.पी. अर्थात् एक्स्ट्रा सेन्सरी परसेप्सन’ का नाम बहुप्रचलित है। यह मानव के अंतर्ज्ञान को प्रकाशित करने की वह विद्या है, जिसके माध्यम से व्यक्ति की अतीन्द्रिय क्षमताओं को कुरेदा एवं विकसित किया जाता है। मनुष्य शारीरिक एवं मानसिक दृष्टि से श्रेष्ठ एवं समुन्नत कैसे बन सकता है? दूसरे व्यक्ति के मन की बातों का आभास और अतीन्द्रिय शक्तियों में वृद्धि कैसे की जा सकती है?, इस खोज में अमेरिका के मिशिगन और कैलीफोर्निया विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक निरन्तर प्रयत्नशील हैं। उनका कहना है कि अतीन्द्रिय क्षमताओं को व्यक्तिगत स्तर पर अनुभव किया जा सकता है। इस प्रकार वे प्रमाणों से परे नहीं है।

मनीषियों के अनुसार मन-मस्तिष्क की सहज गति ऐसी है जो किसी एक विषय अथवा वस्तु पर केन्द्रित न रहकर कहीं दूसरी तरफ चली जाती है। यदि उसे किसी एक बिन्दु पर केन्द्रित किया जा सके तो उसकी बेधक क्षमता उसी प्रकार चमत्कार दिखा सकती है, जिस प्रकार आतिशी शीशे पर सूर्य रश्मियाँ एकत्रित होकर अग्नि उत्पन्न करती है। केन्द्रीभूत मस्तिष्कीय तरंगें उन स्थानों पर भी जा पहुँचती हैं, जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं पड़ते। इससे मनुष्य के पूर्व निर्णय की क्षमता बढ़ती है। दूसरे के मन की बातों को जाने, दिव्य दर्शन तथा भविष्यवाणी जैसे प्रयोजन इसी के माध्यम से पूरे होते हैं। येल विश्वविद्यालय में अनुसंधानरत वैज्ञानिक द्वय - डॉ. ए. एआँशँफ तथा राबर्ट एवेल्सन का कहना है कि आस्था एवं तन्मयता के अभाव में व्यक्ति की क्षमताएँ बिखरी हुई होती हैं। एकाग्रतापूर्वक उनका नियोजन अंतःशक्तियों के जागरण में यदि किया जा सके तो प्रसुप्त, गुप्त शक्तियों के उद्घाटन से वह सबको चमत्कृत कर सकता है। अतीन्द्रिय क्षमताओं के सत्यापन के लिए उन्होंने विद्यार्थियों का चुनाव किया, जिनमें से 70 प्रतिशत से अधिक ई.एस.पी. के प्रयोग सही निकले। इन्हें मात्र संयोग नहीं कहा जा सकता।

मूर्धन्य मनोवैज्ञानिक मार्टिन इवाँन ने अपनी पुस्तक “टू एक्सपीरिएन्सेस इन प्रोफेसी” में ऐसी अनेक प्रामाणिक घटनाओं का उल्लेख करते हुए यह सिद्ध किया है कि मनुष्य के भीतर अद्भुत अलौकिक क्षमताएँ विद्यमान हैं। इन्हें जागृत करके भूत, भविष्य एवं वर्तमान को देश काल की सीमाओं से परे होकर देखा जा सकता है। इसी तह न्यूरो साइकिएट्रिक इन्स्टीट्यूट, कैलीफोर्निया के निर्देशक डॉ. क्रेग ने भी अपने शोध निबन्धों में अनेक अतीन्द्रिय शक्ति की घटनाओं का वर्णन किया है। उनका कहना है कि यह सामर्थ्य किसी-किसी को तो गहन अभ्यास से प्राप्त होती है, परन्तु बहुत से व्यक्ति संसार में ऐसे भी हैं जिन्हें यह शक्ति जन्मजात अतिरिक्त वरदान के रूप में पूर्व जन्म संचित सम्पदा के रूप में मिली होती है।

पश्चिम जर्मनी में पुलिस विभाग में सेवारत मेजर हेल्मुज जींक को प्रकृति प्रदत्त ऐसी दिव्य क्षमता प्राप्त है जिससे उन्हें पश्चिम जर्मनी में हिटलर के समय के छिपाए गए बमों और अस्त्र- शस्त्रों की जानकारी मात्र उस जमीन पर खड़े होते ही मिल जाती है। उनके इस अतीन्द्रिय ज्ञान का लाभ जर्मन सरकार ने विगत 40 वर्षों में भरपूर उठाया है और अब तक लगभग साढ़े तीन लाख युद्ध आयुधों के जखीरे खोजे जा चुके हैं। भवन निर्माण के स्थान का चयन, भूगर्भस्थ जल स्रोतों के सही स्थान का चुनाव हेल्मुज की सलाह पर ही किया जाता है।

कैलीफोर्निया की एक महिला- क्लेरीसा बर्नहेड भूकम्पों की पूर्व जानकारी देने में प्रख्यात है। इसी कारण लोग उसे “अर्थक्वेक लेडी” के नाम से सम्बोधित करते हैं। भूकम्प सम्बन्धी दी गई उनकी सूचना रेडियो एवं टेलीविजन से सीधे प्रसारित भी होती रहती है। 28 नवम्बर 1974 को दोपहर तीन बजे कैलीफोर्निया के मध्य तटवर्ती क्षेत्र में आये भूकम्प की जानकारी उसने बहुत पहले लोगों को दे दी थी। साथ ही यह भी कहा था कि उसमें जान माल की कोई विशेष क्षति नहीं होगी। वास्तव में सुनिश्चित अवधि में ठीक ऐसा ही हुआ। एक दूसरे पूर्व कथन में वर्नहेड ने नवम्बर 1975 में हवाई द्वीप में आये विनाशकारी भूकम्प की ग्यारह माह पूर्व ही चेतावनी दे दी थी। इसमें बहुत अधिक जन-धन की हानि हुई थी। इसी तरह अमेरिका के ही और्गन प्राँत की लेडी शाँरलेट किंग भूकम्पों के आने से पहले ही उनकी सूचना देने के लिए प्रख्यात है। होलिस्टर, न्यू जूनिया, लिवरमूर, यूरेका जैसे प्राँतों में आने वाले भूकम्पों की पूर्व घोषणा करके वह लाखों लोगों की जानें एवं करोड़ों की सम्पत्ति बचा कर ख्याति प्राप्त कर चुकी हैं।

इंग्लैण्ड में जन्मा सामबेंजो नामक बालक बचपन से ही अतीन्द्रिय सामर्थ्य सम्पन्न था। बंद डिब्बों के अंदर रखी गई अज्ञात वस्तुओं के बारे में दूर से देखकर ही वह पूरी जानकारी दे देता था। अपने पिता की मृत्यु का संदेश अपनी माँ को उसने पहले ही बताया दिया था। अपने एक पेण्टर मित्र की मृत्यु का पूर्वाभास उसे तीन दिन पहले ही हो गया था। जैसा कि उसने बताया था कि दीवाल की पुताई करते समय सीढ़ी से गिरने पर उसका प्राणान्त हो जायेगा। तीन दिन बाद ठीक वैसा ही घटित हुआ।

1909 में जन्मा हालैण्ड का क्रोसेट भी बचपन से ही परादृष्टि से सम्पन्न था। उसने नाजी आक्रमण तथा जापानियों द्वारा डचाँ के ईस्ट इंडीज द्वीपों के अधिग्रहण के बारे में वर्षों पूर्व ही बता दिया था। किसी भी वस्तु को स्पर्श करके उसके मालिक, नौकर, परिवार एवं मित्र-संबंधियों के बारे में पूरा विवरण बता देना क्रोसेट के लिए बहुत आसान था। इतना ही नहीं वरन् वह संबंधित व्यक्तियों की मनःस्थिति एवं परिस्थिति के बारे में भी सब कुछ बता देता था। वहाँ की पुलिस ने उसकी इस क्षमता का भरपूर लाभ उठाया और अनेक अपराधियों तथा हत्यारों को पकड़ कर जेल के सीकचों में बन्द किया।

कभी-कभी जीवन में अनायास होने वाले घटनाक्रमों से भी मनुष्य की दिव्य क्षमताएँ जागृत हो जाती हैं। अमेरिका में कैन्टुकी नगर के पास एक छोटे से गाँव में रहने वाले एडगर केसी नामक युवक के साथ ऐसा ही हुआ। एक दिन अचानक वह बीमार पड़ गया। उसकी माँसपेशियों में जकड़न और दर्द इतने जोरों से होने लगा जिसका निदान वहाँ के प्रख्यात चिकित्सक भी न कर सके। डाक्टर परामर्श कर ही रहे थे कि केसी ने आँखें खोलीं। उसकी छठी इन्द्रिय जागृत हो चुकी थी। उसके प्रकाश में अपनी बीमारी का नाम, उसका निदान उपचार वह स्वयं उपस्थित चिकित्सकों के बताने लगा। दवाइयाँ मँगाई गई और उसके सेवन से वह पूर्ण स्वस्थ हो गया। प्रकृति प्रदत्त इस शक्ति का उपयोग उसने अनेक रोगियों पर किया।

अमेरिका के मूर्धन्य मनोविज्ञानी डॉ. नेल्सन वाल्टर के मतानुसार प्रत्येक व्यक्ति में बलवती चेतना काम करती है। यही परोक्ष जगत की हलचलें एवं दूरस्थ वस्तुओं की जानकारी देती है। समस्त प्राणि जगत के एक ही चेतना के सागर से जुड़े होने के कारण कोई भी अपनी चेतना को विकसित एवं परिष्कृत करके अतीन्द्रिय सामर्थ्य को प्राप्त कर सकता है। उसके माध्यम से दूसरों के उत्थान पतन सहित अन्यान्य घटित होने वाले समस्त घटनाक्रमों की पूर्व जानकारी दे सकता है। प्रख्यात विज्ञान वेत्ता जे.बी. राइन ऐसे ही व्यक्ति हैं, जिन्हें विश्व में कहीं भी कोई घटित होने वाले घटनाक्रम का पूर्व परिचय मिल जाता है। उन्होंने अपनी एक पुस्तक में चार हजार पूर्वाभास की घटनाओं का चित्रण किया है, जो समय आने पर सच निकलीं। इस सम्बन्ध में उनके अनेकों व्याख्यान ब्रिटिश ब्राडकास्टिंग कारपोरेशन ने प्रसारित किए तथा उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित की हैं। राइन ने तीन बातों का जिक्र किया है। उनका मत है कि प्रत्येक मनुष्य में अतीन्द्रिय शक्ति होती है जो दूरस्थ घटनाओं का बोध कराती हैं। दूसरे परस्पर घनिष्ठ व्यक्तियों में चेतनात्मक आदान-प्रदान बहुत सरलता से सम्पन्न हो जाता है। तीसरे पुरुषों की अपेक्षा यह अनुभूति महिलाओं एवं आध्यात्मिक, धर्मनिष्ठ व्यक्तियों में अधिक होती है।

वर्तमान में किये जा रहे विभिन्न मनोवैज्ञानिक-परामनोवैज्ञानिक अनुसंधानों की खोज विस्मयकारी मानवी मस्तिष्क के तंत्रिका आवेगों तक ही सीमित है। इससे चमत्कारों का ज्ञान मात्र होता है, पर चेतना का परिष्कार नहीं होता। जीवन पद्धति यथावत् बनी रहती है। वस्तुतः वास्तविक रहस्य तो अन्तःचेतना को विकसित एवं परिशोधित करके ही जाना जा सकता है। इस दिशा में प्रयास जारी रखे जा सकें एवं विज्ञान द्वारा प्रदत्त भौतिक उपादानों का आश्रय लेकर अध्यात्म अवलम्बन से अर्जित इन विभूतियों पर अनुसंधान किया जा सके तो सृष्टा के भाण्डागार में छिपे बहुमूल्य मणि-माणिक्य मानव जाति को हस्तगत हो सकते हैं।


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